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सर्वात स्टोन
यतो धर्मस्ततो जयः । यह है आपका सर्व व्यापी, सर्व हितंकर, सर्वप्रिय एक मात्र पक्ष || ३ ॥
सूर्य की तीक्ष्ण किरणों से उत्पन्न अग्नि ताप ज्येष्ठमास में समस्त भूमण्डल को संतप्त कर देती है अर्थात् जलाती है, परन्तु जितने प्रदेश में वे प्रसारित होती हैं उतने को ही संतप्त करती हैं | परन्तु आपकी दिव्यवाणी से निःसृत सिद्धान्त जिनके कर्णकुहरों से हृदयस्थ हो जाता है तो वह अमृत बिन्दुओं के रूप में अशेष कर्म राशि को भस्मसात कर देती हैं । यद्यपि यहाँ अग्नि और शीतलसुधा विरोधी प्रतीत होती हैं, परन्तु तर्क न्याय के अनुसार यह पूर्ण अविरोधी सिद्ध होता है । लोक में भी देखा जाता है कि शीतल पाले की सीकरों (बिन्दुओं ) से हरे-भरे क्षेत्र भस्म - नष्ट हो जाते हैं । उसी प्रकार वीतराग साम्यरस से कर्मवन भस्म हो जाता है। हे जिन 1 आपने इसी से कर्माष्टक नष्ट किये ॥ ४ ॥
मिथ्या दृष्टि साधु रात्रियोग धारण कर समानश्वास से भरकर निर्जीव के समान चेष्टाहीन हो भूमि में पड़े रहते हैं । उनका यह योग साधन या कुचेष्टा मात्र शरीर शोषण के लिए होती है । आत्मसिद्धि से उसका कोई सम्बन्ध नहीं होता । परन्तु आपने यथार्थरूप में मन, वचन कायरूप योगत्रय का निरोध कर मोक्षस्वरूप अथवा शिव स्वरूप आत्मदर्शन के लिए किया । आपके सिद्धान्त से वहिर जीव आत्म तत्त्व से अनभिज्ञ हुए मन्दश्वासोच्छ्वास क्रिया द्वारा कुसमाधि कर संसार भ्रमण ही करते अथवा - आपकी देशना से विरुद्ध जन योग साधना द्वारा केवल शरीर का शोषण करते हैं । परन्तु आपने परम कल्याणकारी - शिव के साधक रूप कवच को धारण कर रात्रियोग द्वारा अशेष दुष्ट या घातिया कर्मरूप शत्रुओं को नष्ट किया || ५ ||