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________________ ४] चरणानुयोग-२ प्रव्रज्या योग्य दिशा पढमे बए, मजिसमे वए, परिछमे वए। (१) प्रथम वय में, (२) मध्यम क्य में, (३) अन्तिम -ठाण. आ ३, उ. २, मु.१६३ वय में । पबज्जा जोग्गा विसा प्रव्रज्या योग्य दिशा--, ४५. दो दिसाओ अभिगिरा ति णिगि मोग ४... नि और निर्गन्धियाँ पूर्व और उत्तर इन दो दिशाओं या पक्वाक्तिए-पाईणं चेय, उजीणं चेव ।। की ओर मुंह कर प्रजित करें। दो दिसाओ अभिगिज्या कप्पति णिगाणं वाणिग्गीण निर्ग्रन्थ और निग्रन्थियाँ पूर्व और उतर इन दो दिशाओं वा, मुंडावित्तए सिक्लावित्तए उवट्ठावित्तए संभुंजित्तए संव- की ओर मुंह कर मुष्टित करें, शिक्षा दें, महाव्रतों में आरोपित सित्तए समायमुद्दिसित्तए समायं समुद्दिसित्तए समायमणु- करें, भोजन-मण्डली में सम्मिलित करें, संस्तारक मण्डली में जाणितए आलोइत्तए पडिक्कमित्तए णिदित्तए गरहित ए सम्मिलित करें, स्वाध्याय का उद्देश दें, स्वाध्याय का समुद्देश विट्टिलए विसोहितए अकरणयाए अन्मुट्टितए अहारिह दें, स्वाध्याय की अनुशा दें, आलोचना करें, प्रतिक्रमण करें, पायच्छित्तं तबोकम्भं पडिज्जित ए निन्दा करें, गहीं करें, पश्चात्ताप करें, विशोधि करें, साबद्धपाईण चेव, उदीणं चेव । प्रवृत्ति न करने के लिए उठे, यथायोग्य प्रायश्चित्त रूप तप कर्म -ठणं. अ. २. उ. १, सु. ६६ (क) स्वीकार करें । पव्दावणाईणं विहि-णिसेहो प्रवजित करने आदि के विधि-निषेध४६. नो कप्पइ णिग्गंथाणं णिम्गथि अप्पणो अट्ठाए पवावेत्तए था, ४६. निर्गन्थियों को अपनी शिष्या बनाने के लिए प्रअजित मुंडायत्तए वा, सेहावेत्तए वा, उवटाखेतए वा, संवासित्तए करना, मुण्डित करना, शिक्षित करना, चारित्र में पुनः उपस्थाघा, संभुजित्तए वा, तीसे इसरियं दिसं वा अणु विसं वा पित करना, उसके साथ रहना और साथ बैठकर भोजन करना उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा । निग्रंन्य को नहीं कल्पता है तथा अल्पकाल या यावज्जीवन के लिए पद देना या उसे धारण करना नहीं कल्पता है । कप्पत णियाण जिग्गथि अन्नेसि अट्टाए पखावेत्तए वा अन्य की शिष्या बनाने के लिए किसी निग्रन्थिनी को प्रत्र-जाव-संभुजित्तए वा, तोसे इत्तरिय विसं या अणुरिस वा जित करना--यावत्-साथ बैठकर भोजन करने के लिए निर्देश उदिसित्तए वा धारेत्तए था। देना निर्ग्रन्थ को कल्पता है तथा अल्पकाल या यावज्जीवन के लिए पद देना या उसे धारण करना कल्पता है। नो कप्पह णिगथीणं णिगंयं अपणो बट्टाए पवावेत्तए वा निर्ग्रन्थ को अपने लिए प्रजित करना-पावत्-साथ -जाव-संभुजित्तए था, तोसे इत्तरिय विसं वा अविसं वा बैठकर भोजन करने के लिए निर्देश करता निन्थी को नहीं उहिसित्तए वा धारेत्तए था। कल्पता है तथा अल्पकाल या यावज्जीवन के लिए पद देना या उसे धारण करना नहीं कल्पता है। कम्प णिग्गंधीणं णिगय अण्णेसि अदाए पवावेत्तए वा-जाव- निर्ग्रन्थ को अन्य (आचार्य-यावत्-गयावच्छेदक) के संभुज्जित्तए वा, तीसे इत्तरिय दिसं वा अणुविसं या उद्दि- लिए प्रव्रजित करना-यावत्-साथ बैठकर भोजन करने के सित्तए वा धारेत्तए खा। -वन, च.७, सु. ६-६ लिए निर्देश करना निग्रंथी को कल्पता है तथा अल्पकाल या' यावज्जीवन के लिए पद देना या उसे धारण करने के लिए अनुज्ञा देना कल्पता है। खड्डगस्स खुड्डियाए वा उवद्वाषण विहि-णिसेहो- बालक-बालिका को बड़ी दीक्षा आदि का विधि-निषेध४७. नो कप्पा णिग्गंधाण वा णिग्गंथीण वा खुट्टगं वा खुड्डिय वा ४७. निर्ग्रन्थ-निम्नन्थियों को आठ वर्ष से कम उम्र वाले बालकअगदवासमायं उचढावेत्तए वा संभुजित्तए वा। बालिका का बड़ी दीक्षा देना और उनके साथ आहार करना नहीं कल्पता है। कप्पर जिग्गंधाण वा पिनांथोण वा सुष्टुगं वा खुष्टियं वा निन्थ-नियन्थियों को आठ वर्ष से अधिक उम्र वाले बालक साइरेगअट्टवासजाय उवढावेतए वा संभूजित्तए वा। बालिका को बड़ी दीक्षा देना और उनके साथ आहार करना -वच, ३.१०. सु. २७-२१ कल्पता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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