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________________ विषय सूत्राक १०७ १०८ १४८ ५७ ११० १५० १५२ ५९ १११ ११२ ११४ १५५ १५६ १५७ १६ ११७ १५८ ११८ १५९ १६० ११९ १२० १६१ १२१ १२२ १२३ १२४ १२५ १६२ १६३ १६४ १६५ १६६ १६७ १६८ अध्यात्म जागरण से मुक्ति श्रमणों की तीन भावनाये श्रमणों के बत्तीस योग संग्रह भयम योग में आत्मा की स्थापना संयमी जीवन के अठारह स्थान-७ संयम के अठारह स्थान प्रयम 'अहिंसा स्थान द्वितीय 'सत्य' स्थान तृतीय 'अस्तेय' स्थान चतुर्थ 'ब्रह्मचर्य स्थान पंचम 'अपरिग्रह स्थान छठा 'रात्रि भोजन विवर्जन' स्थान सातदों 'पृथ्वीकाय अनारम्भ स्थान आठवाँ 'अप्काय अनारम्भ स्थान नवमा 'तेजस्काय अनारम्भ स्थान दसवों 'वायुकाय अनारम्भ' स्थान ग्यारहवी 'बनस्पतिकाय अनारम्भ स्थान बारहवाँ वसकाय अनारम्भ स्थान तेरहवाँ 'अकल्प्य आहारादि वर्जन' स्थान चौदहवो 'गृहस्थ पात्र में भोजन निषेध 'स्थान गृहस्थ के पात्र में भोजन करने का प्रायश्चित्र 'सूत्र पन्द्रहवाँ 'पल्यक निषद्या वर्जन स्थान गृहस्थ की शय्या पर बैठने का प्रायश्चित्त सूत्र सोलहवाँ'गृह निषद्या वर्जन स्थान गृह निषद्या के अपवाद सत्रहवाँ 'अस्नान' स्थान अठारहवों 'अविभूषा' स्थान संयमी जीवन का फल-८ सर्वगुण सम्पन्नता का फल सामायिक का फल संयम की आराधना का फल धरािधना का फल संवृस भिक्षु का फल निर्गन्ध की मुक्ति सुश्रमण की समाधि और कुश्रमण की असमाधि अज्ञानी श्रमण की गति भिक्षु के अहिंसा का परिणाम भिक्षु के हिंसानुमोदन का फल भोगासक्ति का परिणाम सुव्रती साधु का संसार पार कुश्रमण की दुर्गति और सुश्रमण की सदगति मद्य सेवन का और विवर्जन का परिणाम . मद्यादि सेवन का निषेध १२६ १२७ १२८ १२९ पृष्ठाक (३) समाचारी विवस रात्रिक समाचारी-१ समाचारी का महत्त्व पकार की समाचारी समाचारी का प्रवर्तन दिवस समाचारी पौरुषी विज्ञान चः क्षय तिधियों छः वृद्धि तिथियाँ पात्र-प्रतिलेखना का काल प्रथम पौरुषीकी समाचारी प्रतिलेखना की विधि प्रतिलेखना के दोष अन्यूनाधिक प्रतिलेखना प्रतिलेखना-प्रमत्त विराधक प्रतिलेखना में उपयुक्त आराधक तृतीय पौरुषी समाचारी चतुर्थ पौरुषी समाचारी देवसिक प्रतिक्रमण समाचारी ४८ निद्राशील पापश्रमण ४९ रात्रि-समाचारी रात्रिपौरुषी विज्ञान ४५ रात्रि के चतुर्थ प्रहर की समाचारी ४९ रात्रि प्रतिक्रमण समाचारी उपसंहार ५० वर्षावास-समाचारी-२ वर्षाकाल के आ जाने पर विहार का निषेध वर्षावास के अयोग्य क्षेत्र वर्षावास योग्य क्षेत्र वर्षावास के बाद विहार के अयोग्य काल वर्षावास के बाद विहार के योग्य काल वर्षावास के अवग्रह क्षेत्रका प्रमाण वर्षावास में विहार करने का विधि-निषेध वर्षावास में ग्लान हेतु गमन का क्षेत्र प्रमाण प्रथम-द्वितीय प्राबृट् में बिहार करने के प्रायश्चित सूत्र वर्षावास आहार समाचारी-३ सर्वत्र आचार्यादि की आज्ञा से जाना, बिना आजा के नहीं जाना ५५ भिक्षापयर्या के लिए जाने योग्य क्षेत्र भिमाचर्या की दिशा कहकर भिक्षार्थ जाने का विधान नित्य भोजी के गोचरी जाने का विधान नित्यभोजी के लिए सर्व पेय ग्रहण करने का विधान अज्ञावान घरों में अदृष्ट पदार्थ मांगने का निषेध ५७ १७० १७१ १७२ الله १७३ १७४ १७५ १७६ १७७ १७८ १३४ الله الله १३५ १३६ الله १३७ فله نعم ५४ १७९ १८० ५५ १८२ १४४ १८४ १८४ १८५ १४७ (७८)
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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