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________________ त्र ७७०-७७३ तिर्यचकृत उपसर्ग धौर्याधार [३८१ तिरिक्खाजोणिया अवसग्गा-- तिर्यचकृत उपसर्ग७७०.तिरिक्त्रजोणिया अवसग्गा नउस्विहा पण्णत्ता, तं जहा - ७७०. तिचकोनिक उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे - १. भया, (१) भय से किया गया उपसर्ग : २ पदोसा, (२) 'ष से किया गया उपसर्ग । ३. आहारहे, (३) आहार के लिए किया गया उपसर्ग । ४. अवच्च-सेण सारस्वणया । (४) अपने बच्चों के एवं आवास-स्थान की सुरक्षा के लिए -ठाणं. अ. ४, उ. ४, सु. ३६१(४) किया गया उपसर्ग । अधिवेमुग्भुया उपसग्गा - अविवेकोदभूत उपसर्ग७०६. आपसंचयणिज्जा उपसागा बिही पता, महा- ७७१. अपने द्वारा होने वाले उपसर्ग चार प्रकार के कहे गये हैं। जैसे१. पणता, (१) आँख में रज-कण चले जाने पर उसे मलने से होने वाला कष्ट । २.पवरणता, (२) मार्ग में चलते हुए असावधानी से गिर पड़ने का कष्ट । ३. थमणता, (३) हस्त-पाद आदि के शून्य हो जाने से उत्पन्न हुआ कष्ट । ४. लेखणता। -ठाणं. अ. ४, उ.४, सु. ३६१(५) (४) सन्धि स्थलों के जुड़ जाने से होने वाला कष्ट । पडिकूलोबसगा प्रतिकूल उपसर्ग--- ७७२. सूरं मन्नति अप्पागं, जाव तं न पत्सति । ७७२. जब तक जुझते हुए दृढ़ सामर्थ्य वाले विजेता को नहीं जुळतं वधम्मा, सिसुपाले व महारहं ।। देखता तब तक कायर मनुष्य भी अपने आपको शूर मानता है, जैसे कि कृरुण को देखने से पूर्व शिशुपाल ।। पयाता रा रमसोसे, संगामम्मि उहिते । अपने आपको शूर मानने वाले वे युद्ध के उपस्थित होने पर माता पुतण याणा, जेतेण परिविपछए । उसके अग्र भाग में जाते हैं। किन्तु भयंकर दुःख से घबराकर माताएं भी अपने पुत्र को भुल जाती हैं और उन्हें छोड़कर भाग जाती है वैसे ही भयंकर युद्ध में विजेता पुरुष के द्वारा घायल कर दिये जाने पर वे भान भूल कर दीन बन जाते हैं। एवं सेहे वि अप्पु, भिक्खाचरिया अकोविए। ___ इसी प्रकार भिक्षु को चर्या में अनिपुण तथा परीषहीं और तर मन्नति अप्पाणं, ज्वाय चूहं न सेवई ।। उपसगों को अप्राप्त नव दीक्षित भी तब तक अपने मापको शुर-सूय. सु. १, अ. ३, उ.१, सु. १.३ वीर मानता है जब तक वह संयम की कठिनाइयों का सेवन नहीं करता। मोहजासंगा उपसम्गा मोह संग सम्बन्धी उपसर्ग७७३, अहिले सुहमा संगा, मिक्खूर्ण जे बुरुत्तरा। ७७३, ये सूक्ष्म ज्ञातिजन सम्बन्धी संग भिक्षुओं के लिये दुस्तर जस्थ एगे विसीयंति, ण चयप्ति जाविसए ।। होते हैं। वहाँ कुछ साधक विषाद को प्राप्त होते हैं, वे संयम -सूम. सु. १, अ. ३, उ.२, सु, १ जीवनयापन करने में समर्थ नहीं होते। अप्परे णायओ विस्स, रोयति परिवारिया । ___साधु के शातिजन उसे देखकर रोते हुए कहते हैं "हे तात! पोसगे सात पुट्ठोऽसि, कस्स तात चयासि ।। हमने तुम्हारा पालन पोषण किया है, अब तुम हमारा पोषण करो। फिर तुम हमें क्यों छोड़ रहे हो? पिता ते येरओ तात, ससा त सुष्ठिया इमा । हे ताल ! ये तुम्हारे पिता वृद्ध हो रहे हैं, तुम्हारी यह मायरा ते सगा तात, सोयरा कि चयासिणे 11 बहिन छोटी है। ये तुम्हारे सहोदर सगे भाई हैं, फिर तुम हमें क्यों छोड़ रहे हो?
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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