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________________ ३६८] घरमानु---- परोषह सहने से कर्मों का सय सूत्र ७३५-७३७ पासहेगे समपणागतेहि सह असमण्णागए, णममाहिं अणम- यह भी देख ! संयम से व्युत होने वाले कई मुनि उत्कृष्ट माणे, विरतेहि अविरते, ववितेहि अवविते । आपार वालों के बीच शिथिलाचारी समर्पित मुनियों के बीच असमर्पित, विरत मुनियों के बीच अविरत तया साधुओं के बीच चारित्रहीन होते हैं। अभिसमेच्चा पंडिते मेधावी णिट्ठिपट्टी वौरे आपमेणं सवा इस प्रकार संपम-घ्रष्ट साधकों को तथा संयम-प्रष्टता के परिषकमेक्जालि। परिणामों को भली भांति जानकर पण्डित बुद्धिमान और मोक्षार्थी -आ. सु. १, अ. ६, उ. ४, सु. १६३-१६५ वीर मुनि सदा संयम में पराक्रम करे । परोषह-जय--२ परीसहेहि कम्मलओ परीषह सहने से कर्मों का क्षय७३६. कविता अहमेव लुप्पए, लुप्र्पती लोगसि पाणिणो। ७३६. "इस संसार में मैं ही केवल दुःस्त्रों से पीड़ित नहीं हूँ, एवं सहिएऽधिपासते, अगिहे से पुट्ठोऽधिसाए । परन्तु लोक में दूसरे प्राणी भी पीड़ित है"-इस प्रकार ज्ञान --सूय. सु. १, अ.२, उ. १, गा. १३ सम्पन्न पुरुष अन्त दृष्टि से देख्ने और वह परीषहों से स्पृष्ट होने पर राग द्वेष रहित होकर उन्हें सहन करे । न य संखयमाहु जोविर्थ, तह वि य बालजणे पपरमसी । टूटे हुए जीवन-सूत्र को जोड़ा नहीं जा सकता। फिर भी बाले पावेहि मिज्जती, इति संखाय मुणो ण मज्जती ॥ अज्ञानी मनुष्य (हिंसा आदि करने में) धृष्ट होता है। वह अज्ञ जीव अपने पाप-कमों से मरता जाता है—यह जानकर मुनि मद नहीं करता। छंदेश पलेतिमा पया, बहुमाया मोहेण पाउड़ा। अत्यन्त माया और मोह से घिरे हुए ये प्राणी अपनी इच्छावियरेण पलेति माहणे, सोउम्हं वयसा हियासए ॥ नुसार आचरण कर विभिन्न गतियों में पर्यटन करते हैं किन्तु -सूय. सु. १, अ. २, उ. २, गा. २१-२२ मुनि सरल भाव से संयम में लोन रहकर मन वचन और काया से शीत और उष्ण आदि परीषहों की सहम करता है। परीसहप्पगारा परीषह के प्रकार७३७. बावीस परीसहा पणत्ता, तं जहा ७३७. बावीस परीषह कहे गये हैं, यया१ दिगिच्छा-परीसहे, २. पिवासा परीसहे, (१) क्षुधा-परीषह, (२) पिपासा-परीषह. ३. सीय-परीसहे, ४. उसिग-परीसहे. (३) शीत-परीषह, (४) उष्ण-परीषह ५. बंस-मसय-परीसहे, ६. अचेल-परीसहे, (५) वंश-मशक-परीषह, (६) अचेल-परीषद, ७. अरह-परीसहे, ८. इत्थी-परीसहे, (७) अरति-परीषह, (८) स्त्री-परीषह, ९. चरिया-परीसहे. १०. मिसीहिया-परोसहे. (6) चर्या-परीषह, (१०) निषद्या-परीषह, ११. सेज्जा-परीसहे, १२. अकोस-परोसहे, (११) शय्या-परीषह, (१२) आक्रोश-परीषह, १२. वह-परीसहे, १४. जायणा-परीसहे. (१३) बध-परीषह, (१४) याचना-परीषह, १५. अलाम-परोसहे, १६. रोग-पररेसहे, (१५) बलाभ-परीषह, (१६) रोग-परीषह. १७. तणफास-परीसहे, १८. जल-परीसहे. (१७) तृण-स्पर्श परीषह् (१८) जल-परीषह, १६. सक्कारपुरस्कार-परीसहे, २०. पन्ना-परीसहे, (१९) सत्कार-पुरस्कार परीषद, (२०) प्रज्ञा-परीषह,
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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