________________
सूत्र ७२६-१७२८
वीर्य का स्वरूप
वीर्याचार
[३६३
-
-
--
वीर्याचार
वीर्य का स्वरूप-१
बोरिय सरूवं
वीर्य का स्वरूप७२६. वुहा चेयं सुयक्लायं, वीरियं ति पच्चति । ७२६. तीर्थकर भगवान् के द्वारा प्ररूपित जिन मार्ग में वीर्य दो किं नु वीरस्स वीरतं, केण धीरो ति चुपचति ।। प्रकार का कहा गया है। पोर पुरुष की वीरता क्या है और
उसका वर्णन किस प्रकार है? कम्ममेरे पवेदति, अकम्मं वा वि सुम्यता ।
तीर्थकर भगवान् दो प्रकार के वीर्य का प्रतिपादन करते एतेहि बोहि ठाणेहिं, जेहिं विराति मच्चिया ॥ है-कर्म धीर्य और अकर्मवीर्य । सभी मनुष्य इन दो स्थानों में
विद्यमान हैं। पमा कम्ममाहंसु, अपमायं सहाऽवर ।
तीर्थंकरों ने प्रमाद को कर्मवीर्य (कर्मों की वृद्धि कराने तभावावेसतो वा वि, बालं पंडितमेष वा ।। पाला) और अप्रमाद को अकर्मवीर्य (फर्म रहित बनाने वाला) -सूय. सु. १, अ., गा.१३ कहा है। कर्मवीर्य के सद्भाव की अपेक्षा से मनुष्य 'बाल' और
अकर्मवीयं के सद्भाव की अपेक्षा से वह 'पंडित' कहलाता है। बालवीरियाईणं विवक्ता--
बालवीर्य आदि की विवक्षा७२७. १० - अण्णउस्यिया में भंते ! एवंआइक्खंति, एवं भासंति, ७२७. प्र०-भन्ते ! अन्यतीथिक इस प्रकार कहते हैं, इस प्रकार
एवं पण्णवति, एवं पोति "समणा पंडिया, समणो- विशेष रूप से कहते हैं, इस प्रकार बताते हैं और इस प्रकार वासया शलपंडिया" ? जस्स णं एगपाणाए वि व प्ररूपित करते हैं कि-"श्रमण पण्डित कहलाते हैं और श्रमणोअणिक्खित्ते से णं "एसबाले" ति बसवं सिया। पासक बाल-पण्डित कहलाते हैं तथा जिस के एक जीव के वध से कहमेयं भते । एवं?
की भी अविरति है वह 'एकान्त बाल" कहलाता है, भन्ते !
क्या अन्यतथियों का यह कथन सत्य है? उ.--गोयमा | जंगं ते अण्णउत्थिया एवं आइपखंति-जाव- उ०-हे गौतम । अन्यतीथिकों ने जो इस प्रकार कहा है
एगतमाले ति वत्तवं सिमा, जे ते एषमासु मिच्छं ते कि-- श्रमण पण्डित" है-यावत्-एकान्त बाल" कहलाता एवमासु ।
है, उनका यह कथन मिथ्या है। अहं पुण पोयमा ! एवं आहक्वामि-जाव-परूवेमि हे गौतम ! मैं इस प्रकार कहता हूँ-यावत् प्ररूपित "एवं खलु सममा पजिया', समणोवासया 'बालपडिया' करता हूँ कि "श्रमण पण्डित है और श्रमणोपासक बाल-पण्डित जस्स गं एगपागाए वि व णिक्खित्ते से पं गो एगत- है और जिस जीव ने एक भी प्राणी के वध की विरति की है, बाले ति बत्तव्य सिया"।
वह जीव एकान्त बाल नहीं कहलाता है" (किन्तु वह बाल पण्डित
-वि. स. १७. उ. २, मु. १० फहलाता है।) बालयोरियसरुवं
बालवीर्य का स्वरूप७२८. जे थाऽबुद्धा महाभापा, वीरा मसम्मसवंसिणो। ७२८. जो महाभाग वीर पुरुष अबुद्ध और असम्यक्त्वदी है। असुख तेसि परक्कत, सफस होइ सम्बसो ।। उनका पराक्रम अशुद्ध और सर्वथा कर्मबन्धयुक्त होता है ।
- सूय. सु.१, अ.८, गा. २२ खुते हवाले गम्भाति रज्जति ! अस्सि घेतं पचंति मोक्ष-साधना से भ्रष्ट होने वाला अज्ञानी साधक गर्भ आदि रूपंसि वा छसि था।
में फंस कर दुःख पाता है। इस माहंत शासन में यह कहा गया -आ. सु. १, अ. ५, उ. ३, सु. १५६ है कि–'रूप में एवं हिंसा में आसक्त होने वाला गर्भादि में
जाता है।'