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________________ ३६२] घरगानुयोग--२ तप से प्राप्त चारण लब्धि का वर्णन सूत्र ७२५ ज०-गोयमा ! अयण्णं जंबुद्दीचे बोबे एवं जहेव विज्जा- उ०—गौतम ! यह जम्बुद्वीप नानक द्वीप-यावत-(जिसकी चारणस्स नवरं तिसत्तनुत्तो अणुपरियट्टित्ता णं हस्त- परिधि तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से कुछ) मागमछेज्जा, अंघाचारणस्स गं गोयमा ! तहा सीहा विशेषाधिक है, इत्यादि समा वर्णन विद्याचारण के समान गति तहा सीहे गतिविसए पग्णते। जानना चाहिए। विशेष यह है कि कोई महद्धिक-यावरचुटकी बजाए, उतने समय में इस समय जम्बूद्वीप की (इक्कीस बार परिक्रमा करके शीघ्र वापस लौटकर आ जाता है, हे गौतम ! जंघाचारण की इतनी शीघ्रगति और इतना शीघ्रगति विषय कहा है । शेष कथन सब पूर्ववत है। 40-जंघाचारणस्स गं भंते ! तिरिय फेवतिए गतिविसए प्र. - भगवन ! जपाचारण की तिरछी गति का विषय पष्णते? कितना कहा है। ७०-गोयमा | से गं इओ एगेण उपाएणं रूपगवरे दो उ०-गौतम ! वह (जंघावारण मुनि) यहाँ से एक उत्पात समोसरण करेति, करेता तहि चेइमाई बंदति बंदिता से रुकवर द्वीप में ममवसरण करता है फिर वहाँ ठहरकर वह तमओ पडिनिपत्तमाणे बितिएणं उप्पाएणं नंदीसरवर- चत्य (ज्ञानियों) की स्तुति वन्दना करता है । चैत्य (शानियों) की बीते सपोसाक करताना तेहयाई वदति, स्तुति करके लौटते समय दूसरे उत्पात से नन्दीश्वर द्वीप में वंदित्ता इमागच्छद, आगचिछत्ता इहं चेइयाई वदति ! समवसरण करता है तथा वहाँ स्थित होकर चत्य (ज्ञानियों) की जंघाचारणस्स णं गोयमा ! तिरिय एवतिए गतिविसए स्तुति करता है। तत्पश्चात वहां से लौटकर यहाँ आता है। पष्णते। यहाँ आकर वह चैत्य (ज्ञानियों) की स्तुति करता है । हे गौतम ! जंघाचारण की तिरछी गति का ऐसा (शीघ्र) गतिविषय कहा है। ५७ -जंघाचारणस्स पं मंते ! उरई केवतिए गतिविसए प्र.- भगवन ! जंपाचारण की ऊर्ध्वगति का विषय कितना पाणते? कहा गया है? उ. - गोयमा ! से णं इओ एगेणं उत्पाएक पंडगवणे समो- ३०-गौतम ! वह (जंघाचारण मुनि) यहाँ से एक उत्पात सरणं करेति, करता तहिं चेहयाई ददति बंदिसा में पण्डकपन में गमवसरण करता है। फिर यहाँ ठहर कर चैत्य तओ पडिनियत्तमाणे वितिएण उपाएणं रणवणे (ज्ञानियों) की स्तुति करता है। फिर वहाँ से लौटते हुए दूसरे समोसरणं करेति. करेता तहिं चेइयाई बंदति, बंदित्ता उत्पात से नन्दनवन में समवसरण करता है। फिर वहाँ चत्य इहमागच्छद, आगच्छित्ता इह चेइयाई वंदति, जंघा- (ज्ञानियों) की स्तुति करता है 1 तत्पश्चात वहाँ से वापस यहाँ चारणस्स पं गोयमा ! उजवं एवतिए गतिविसए आ जाता है। इतना कर्व गति का विषय कहा गया है। पण्णते। से पं तस्स ठाणस्स अणालोइय-पडिक्क खते कालं यह जंघाचारण उस लिब्धि-प्रयोग-सम्बन्धी प्रमाद) स्थान करेति नस्थि तस्स आराहणा। से गं तस्स ठाणस्स की आलोचना तथा प्रतिक्रमण किये बिना यदि काल कर जावे आलोइय-पडिस्कते कालं करेति अस्थि तस्स तो उसकी (चारित्र) आराधना नहीं होती। (इसके विपरीत) बाराहणा। -विया. स. २०, उ. यदि वह जंवाचारण उस प्रमाद स्थान की आलोचना और प्रति क्रमण करके काल करता है तो उसकी आराधना होती है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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