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चरणानुयोग-२
धर्मकथा का प्रभाव
सूत्र ७००-७०१
कम्मं च छंदं च बिगिच धीरे,
धीर साधक श्रोता के कर्म और अभिप्राय को सम्यक् प्रकार विणएखाउ सरवतो मायमा । से जानकर उनके मिथ्यात्व अज्ञान आदि आत्मीय भावों को स्वेहि सुम्पति भयावहेहि,
सब तरह से दूर करे, तथा उन्हें यह समझाये कि-'मनोहर विजर्ण गहाय तसथावरेहि।। रूप खतरनाक होते हैं इनमें लुब्ध जीवन विनष्ट हो जाते हैं।'
इस प्रकार विद्वान पुरुष श्रोता के अभिप्राय को जानकर प्रस
स्थावर जीवों का कल्याणकारी उपदेश दे । न पूर्वणं चेव सिलोयकामी,
भिक्ष धर्मोपदेश से पूजा और श्लाया की इच्छा न करे । पियमप्पियं कस्सइ णो कहेज्जा । किरी का प्रिय या अप्रिय न करे तथा इन सब अनों का परिसध्ये अणठे परिवज्जयन्ते,
वर्जन करता हुआ आकुलता रहित एवं कषाय रहित होकर अगाउले या अफसाइ भिक्खू ॥ उपदेश दे।
-सूय- गु. १, म. १३, गा. २०-२२ रोबुज्नमाणे इह माणवेसु बाधा से परे जस्स इमाओ जिसने सबोध को प्राप्त किया है वह इस लोक में मनुष्यों जाईओ सचओ सुपडिलेहियायो भवति आघाई से णाण- को धर्म का उपदेश दे । जिसने इन जन्म-मरण के स्थानों को सब मणेलिस।
प्रकार से भली भांति जान लिया है, वही विशिष्ट ज्ञान का
कथन कर सकता है। से किति तेसि समुट्टिताणं निमित्तवंडाणं समाहिया दण्डों (पापों) का त्याग करने वाला समाधि भाव से युक्त पणाणमंतापं बह मुसिमागं ।
प्रज्ञावान् जो पुरुष धर्म सुनने के लिए उपस्थित हो उन्हें भिक्षु
मुक्ति मार्ग का कथन करता है। एवं पेगे महावीरा विपरिक्कमति ।
___ कुछ महान वीर पुरुष इस प्रकार के कथन को सुनकर -आ. सु. १, अ. ५, उ.१, सु. १७७-१७८ संयम मार्ग में पराक्रम करते हैं। आयपुसे सया बंते, छिपणसोए अणासवे ।
जो आत्मा को संवत करने वाला, सदा जितेन्द्रिय, हिंसा जे धम्म मुझमक्खाति, पजिपुग्णमर्गलिस ।।
आदि के आश्रवों को छिन्न करने वाला आधव रहित साधक है -सूय. सु. १, अ. ११, गा. २४ वही शुद्ध प्रतिपूर्ण और अनुपम धर्म का उपदेश करता है। जे भिषण मायणे अण्णतरं विसं वा अणुदिसं वा पग्विष्णे बह मात्रा को जानने वाला भिक्षु किसी दिशा या अनुदिशा धम्म आइक्खे विभए फिट्टए उद्वितेसु वा अणुवट्टितेसु वा में पहुंचकर धर्माचरण से युक्त या धर्माचरण से रहित जो भी सुस्तसमाणेसु पवेदए।
पुरुष धर्म श्रवण के लिये उपस्थित हों उन्हें धर्म का आख्यान
करे, पद विभाग कर कहे, उसका निरूपण करे ।। संति विरति उवसम निष्वाणं सोयवियं अज्जविषं महवियं मुनि सभी प्राणियों-यावत्-सभी सत्वों के हित का लापवियं अणंतिवातियं सम्बसि पाणार्ण-जाव-सत्ताणं अणुबीइ विचार कर शान्ति, विरति, उपशम, निर्वाण, शौच, आर्जब,
किट्टए धम्मं । -सूय. सु. २, अ. १, सु. ६८९ मार्दव, लाघव और अहिंसा आदि धर्मों का प्रतिपादन करे । धम्मकहा पभावो
धर्मकथा का प्रभाव७०१. इह खलु तस्म मिक्खुस्स अंतियं धम्म सोच्या णिसम्म उहाय ७०१. इस जिन शासन में भिक्ष के पास धर्म सुननर मनन कर
वीरा अस्सि धम्मे समुट्टिता, जे ते तस्स मिक्सस्स अंतियं सम्यग् उत्थान से इस्थित हो कई बीर पुरुष इस धर्म की श्रद्धा धम्म सोच्चा णिसम्म सम्म उट्टाणेणं उट्ठाय वीरा अस्सि में उस्थित हुए हैं। जो वीर पुरुष भिक्ष के पास धर्म सुनकर अम्मे समुट्टिता, ते एवं सम्वोमगता, ते एवं सम्योवरता, ते जानकर सम्यग् उत्थान से उत्थित हो संयम धर्म में उस्थित हुए एवं सम्योवसंता, ते एवं सम्वत्ताए परिनिव्वर। हैं वे इस प्रकार सर्वात्मना मोक्ष मार्ग को प्राप्त कर सर्वात्मना -सूय. सु. २, अ. १, सु. ६६१ पापों से उपरत होकर सर्वात्मना उपांत हो जाते हैं वे सम्पूर्ण
कर्म क्षय कर परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं।