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________________ सूत्र ६५६ २. पुषि पडिसेवियं पच्छा आलोयं, २. पच्छा पहिलेवियं पृथ्वि आलो ४. पच्छा परिसेवियं पच्छा आलोइयं । १. अपलिम्बिए अपलिन्चियं, २. अयं प्रस्थापना में प्रतिसेवना करने पर आरोपणा ३. पलिए अपलिचियं ४. चिनिचियं । आलोएमाणस्स सरमेयं सकयं साहणियं आरुयथ्ये । जे एमए पढाए पनिए निस्सिमाणे एडिलेड, से कसाव आया। भिक्खु बहुसो बचाउमावि या बहुवि सारेग मामासि वा बहुसो वि पंचमासियं वा बहुसो वि साइरेग पंचमासि या एएस परिहारट्ठानाणं अश्यरं परिसेवित्ता आलोएज्जर, पालोमा वडियं । १. पुनि पडिसेवि वि आलोइय २ वि डिसेविय पच्छा आलोय', २. पापविलिय ४. पच्छा डिसेविय' पच्छा आलोय, १. अपलिचिए अपलिनिय २. अपए तिम्बिय ३. परिधिए अपलिन्चिय', ४. लिपिसि लाकरणिया ठाए पिडितेविता से विकसितत्वेव सिया । तपाचार [३२६ (२) पूर्व में दिवस दोष की पीछे आलोचना की हो. (३) पीछे से प्रतिवेदित दोष की पहले आलोचना की हो, (४) पीछे से प्रतिसेवित दोष को पीछे आलोचना की हो । (१) माया-रहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो, (२) प्राया रहित आलोचना करने का संकल्प करके मायासहित आलोचना की हो, (३) माया सहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो, (४) माया-महित मालोचना करने का संकल्प करके भाया सहित आलोचना की हो। इनमें से किसी भी प्रकार के भंग से आलोचना करने पर उसके सर्व स्वकृत अपराध के प्रायश्चित्त संयुक्त करके पूर्व प्रदत प्र में सम्मिलित कर देना चाहिए । जो इस प्रायश्चित्त रूप परिहार तप में स्थापित होकर वन करते हुए भी पुनः किसी प्रकार की प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त भी पूर्व प्रदत्त प्रायश्चित्त में आरोपित कर देना चाहिए। जो भिक्षु चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक-इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की अनेक बार प्रतिसेवना करके आलो चनः करे तो उसे माया सहित आलोचना करने पर कति प्रतिसेवना के अनुसार प्रारूप परिहार तप में स्थापित करके उसकी योग्य वैदा करनी चाहिए। यदि वह परिहार तप में स्थापित होने पर भी किसी प्रकार की प्रतिरोधना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित भी पूर्व प्रद प्रायश्चित्त में कर देना चाहिए। (१) पूर्व में प्रतिसेति दोष की पहले आलोचना की हो. (२) पूर्व में प्रतिसेवत दोष की पीछे आलोचना की हो, (३) पीछे से प्रतिसेवित दोष की पहले आलोचना की हो, (४) पीछे से प्रतिसेवित दोष की पीछे आलोचना की हो। (१) माया-रहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो, (२) मायारहित आलोचना करने का संकल्प करके मायासहित] आलोचना भी हो, (३) माया सहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो, (४) माया सहित आलोचना करने का संकल्प करके माया सहित] आलोचना की हो
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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