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६२०-६२४
अट्ट दुरिया भिक्खुपतिमा
६२०. अट्ट-अट्ठमिया णं भिक्खु-पक्षिमा चउसट्टीए-राईदिएहि दोहि अट्टासिएहि मिक्लास एहि अहासुतं जाव आणाए अणुपा लिसा भव । -- अ... ६४५
नव-नवमिया भिक्खु पडिमा - ६२१. नव नवमिया णं भिक्खुपडिमा एमसीए राईदिएहिं वह य पंतहि भिखास एहि महासुतं जाव अप्पा लिता भवद्द | 2 -ठाणं. म. ६, सु. ६०० दस-दसमिया मिक्लु पडिमा ६२२. वस दसमिया णं भिक्खुपडिमा छह य मिलाएहि अहासु भव | 3
विहा चंदपष्टिमाओ
६२३. वो परिमाओ पण्णत्ताओ । तं जहा १. जबमा य चंदपडिमा
१
२
३
अष्टष्टमभिक्षु प्रतिमा
एगेणं राईदियसएवं बद्ध जाव आणाए अनुपालिता -ठाणं. अ. १०, सु. ७७७
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- वव. उ. १०, सु. १
२. बहरमा य चंबपडिमा ।* जयमन्शा पहिमा६२४. जयमणं चंदपडिमं पडिवनस्स अणगारस निच्वं मासं बोकाए पहोम समुपज्जेश्या दिव्या वा मारावा तिरिणयोगिया वा अणुसोमा वा, पडिलोमा या,
तक्ष्य अणुलोमा ताव अंबेज्जा वा नसिज्जा वा सहकारेज्जा वा सम्माणेज्जा वा, कल्लाणं. मंगलं, देवर्य, चेदयं, जुवाज्जा
(क) सम सम
(क) सम सम
पहिलोमा ताव अग्रयरेण वा अडिगा था, जो वा, वेण वा कसेण वा काए आउट्टज्जा ले सथ्ये उप्पन्न सम्म सहेज्जा, सज्जा, तितिक्ा बहिया
६४, सु. १
८१, सु. १
तपाचार [२६७
अष्ट-अष्टमिका भिक्षु प्रतिमा
६२० मष्ट अष्टदिवसीय मिक्ष - प्रतिमा (६४) चौंसठ अहोरात्र में भिक्षा में प्राप्त हुए आहार की (२८८) दो सो मठ्यासी दशियों से भानुसार यावत्-जिनाशा के अनुसार पालन की जाती है।
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(ख) वव, उ. ९. सु. ३८
(ख) अब उ ९, सु. ३६ (ख) जब. उ. ६, ४० सु.
(क) सम सम
१००, सु. १
(ग) सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा में प्रथम सात दिन में आहार की एक-एक दत्ति ग्रहण की जाती है, दूसरे सात दिन में आहार
की दो-दो दत्ति ग्रहण की जाती है, - यावत्- सातवें सात दिनों में आहार की सात सात दत्तियाँ ग्रहण की जाती हैं। अष्ट अष्टमिका भिक्षु प्रतिभा में आठ-आठ दिन से एक-एक दत्ति की वृद्धि की जाती है।
नवनवभिया भिक्षु प्रतिमा में नव नम दिन से एक-एक वत्ति की वृद्धि की जाती है। दादशमिया भिक्षु प्रतिमा में दस दस दिन से एक-एक दत्ति की वृद्धि की जाती है । ४ ठाणं. अ. २, उ. ३, सु. ७७
नव-नवमिका भिक्षु प्रतिमा -
६२१. नौलो दिवसीय भिक्षु प्रतिमा (८१) इक्कासी अहोरात्र में जिला में आहए की (००९) बार सौ पाँच दत्तियों से सूत्रानुसार - यावत्-जिनाशा के अनुसार पालन की जाती है। दादयामिका भिक्षु प्रतिमा
६२२. दश दश दिवसीय भिक्षु प्रतिमा (१००) सौ अहोरात्र में भिक्षा में प्राप्त महार की (५५० ) पाँच सौ पचास दत्तियों में सूत्रानुसार- यावत् जिनाशा के अनुसार पालन की जाती है । दो प्रकार को चन्द्र प्रतिमाएँ
६२३. दो प्रतिमायें कही गई हैं, यथा(१) यवमध्य चन्द्र प्रतिमा, (२) वज्रमध्य चन्द्र प्रतिमा । पवमध्य चन्द्र प्रतिमा
६२४. यवमध्य चन्द्रप्रतिमा स्वीकार करने वाला अणगार एक मास तक शरीर के परिकर्म से तथा परीर के ममत्व से रहित होकर रहे और देव, मनुष्य एवं तिर्यकृत अनुकूल या प्रतिकूल जिसने परीष एवं उपसर्ग होनें
जनमें अनुकूल परीषद एवं उप
हैं—
कोई वन्दना नमस्कार करें, सत्कार सम्मान करे, कल्याणरूप, मंगलरूप, देवरूप और ज्ञानरूप मानकर पर्युपासना करे । उनमें प्रतिकूल परीषद् एवं उपसर्ग ये हैं
किसी दण्ड, हड्डी, जोल, बेंत और चाबुक से शरीर पर प्रहार करे तो वह इन सब अनुकूल प्रतिकूल परीषद् एवं उपसर्गों को (प्रसन्न या खिस न होकर ) समभाव से, क्षमा भाव युक्त, वीरता पूर्वक और शांति से सम्यक् सहन करे ।