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चरगानुयोग-२
सप्तसप्ततिका भिक्षु प्रतिमाएं
सत्र ६१८-६१६
३. अहावरा तच्चा पडिमा जस्स णं भिक्खस्स एवं भवति ३. इसके बाद तीसरी प्रतिमा यह है कि --जिस भिक्षु का "अहं च खलु अण्णेसि भिक्खू गं अट्ठाए उगह ओगिहिस्सामि, इस प्रकार का अभिग्रह होता है कि "मैं दूसरे भिक्षुओं के लिए अण्णेसि घ जग्गहिते चाहे जो उबल्लिस्सामि।" तन्ना अबग्रह की याचना करूंगा परन्तु अन्य भिक्षुओं के द्वारा याचित पडिमा ।
स्थान में नहीं ठहरूंगा," यह तृतीय प्रतिमा है। ४. अहावरा. चउत्या परिमा-- जस्स में भिक्षुस्स एवं ४ इसके बाद चतुर्थ प्रतिमा यह है--जिस भिक्षु का इस मवति "अहं च खलु अण्णेति भिक्खूर्ण अट्ठाए उग्गहें जो प्रकार का अभिग्रह होता है कि " दूसरे भिक्षुओं के लिए ओगिहिस्सामि, अण्णेसि च जग्गहिते उगहे उल्लिास्सामि" अवग्रह की याचना नहीं करूंगा परन्तु अन्य साधु द्वारा याचित चजस्या पडिया।
स्थान में ठहरूंगा।" यह चतुर्थ प्रतिमा है। ५ अहावरा पंचमा पडिमा-जस्स गं भिक्षुस्स एवं ५. इसके बाद पांचवीं प्रतिमा यह है-जिस भिक्षु का इस भवति "अहं च खलु अप्पणो अट्ठाए जग्गहं णोओपिण्हि- प्रकार का अभिग्रह होता है कि - "मैं अपने लिए ही अवग्रह की स्सामि, णो दोहं, गो सिहं, षो चउन्हं, जो पंचम्ह" याचना करूंगा अन्य दो, तीन, चार, पांच के लिए नहीं।" यह पंचमा पडिमा ।
पांचवी प्रतिमा है। ६. महावरा छट्ठा पडिमा । से भिक्षू वा भिक्खूणी वा ६. इसके बाद छट्ठी प्रतिमा यह है-भिक्षु या भिक्षणी जिस जस्सेब उगहे उवल्लिएज्जा, जे सत्य अहासमण्णागते। अवग्रह की याचना करके ठहरता है उस स्थान में पहले से ही तं महा
जो शय्यासंस्तारक विद्यमान है। जैसे-- पकडे वा-जाव-पराले वा, तस्स लाभे संवसेना, तस्स इबकड नामक तृण विशेष –यावत्-पराल आदि इनके अलाभे उक्कुराए वा प्रेसज्जिए वा विहरेजजा । छट्टर मिलने पर उनका अवग्रह प्रहण करके रहे और नहीं मिलने पर पडिमा।
उत्कटकासन या निषद्यासन आदि आसनों से बैठकर राव
व्यतीत करें। यह छ्ट्री प्रतिमा है। ७. अहावरा सत्तमा पडिमा-से मिक्खू वा भिक्खूणी था ७. इसके बाद सातवी प्रतिमा यह है-भिक्षु या भिक्षुणी अहासंथरमेव उग्गहं जाएग्जा, तं जहा
जिस स्थान की अनुशा ने वहाँ वदि पृथ्वी शिला, काष्ठशिला पुचिसिल पा, सिलं वा महासंथडमेव वा संथारग तथा पराल आदि बिछा हुआ प्राप्त हो तो उसका अवग्रह ग्रहण तस्स लाभे संबसे ज्जा, तस्स अलाभे उक्कुटुए वा णेसज्जिए कर वहाँ रहे यदि प्राप्त न हो तो उत्कटुका आसन मा निषाद्यासन वा विहरेज्जा । सत्तमा पडिमा।
द्वारा रात्रि व्यतीत करे । यह सातवी प्रतिमा है । इन्वेयासि ससहं पडिमाणं अण्णतरं पटिम पडिवज्जमाणे इन सात प्रतिमाओं में से किसी एक प्रतिमा को धारण करने -जाव-अण्णोण-समाहीए एवं च ण विहरति ।
वाला साधु-यावत्-सभी अपनी-अपनी समाधि के अनुसार -आ. सु. २, अ. ७, उ. २, सु. ६३३-६३४ विचरण करते हैं।
दत्ति-पडिमाएँ-८(४)
सत्त-सत्तमिया भिक्खुपडिमा
सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा६१९. सत्त-सत्तमिया णं मिक्युपडिमा एगणपन्नाए राइंत्रिएहि ६१६. सप्त-सप्तदिवसीय भिक्ष-प्रतिमा (४६) उन्चास अहोरात्र
एगेणं छन्नउएणं भिक्खासएणं अहामुत्सं-जाव-आणाए अणु- में मिक्षा में प्राप्त हुए आहार की (१९६) एक सौ छियानवे पालिता प्रवाह
-ठाणं अ.५, सु ५४५ दत्तियों से सूत्रानुसार--यावत् -जिन आज्ञा के अनुसार पालन
की जाती है।
१ (क) सम. सम. ४६, सु.१
(ख) बव. उ.६, मु. ३७