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________________ R DA .. - सूत्र ५७६-५८२ मासिको भिक्ष प्रतिमा तपाचार [२८१ - - विन्या या, माणसा वा, तिरिक्खजोणिया वा. ते उप्पणे देव सम्बन्धी, मनुष्य सम्बन्धी या तिथंच सम्बन्धी उन्हें वह सम्म सहेज्जा, खमेम्जा, तितिक्खेज्जा, अहियासेज्जा। सम्यक् प्रकार से सहन करे, झा करे, दैन्य भाव नहीं रखे, -दसा. द. ७, मु. ३ वीरता पूर्वक सहन करे। मासिया भिक्खु पहिमा-. मासिको भिक्षु प्रतिमा५८०. मासिय पं भिक्षु-पडिम पडिवनस्स अणगारस्स कापति ५८०. मासिकी भिक्षु-प्रतिमा धारी अनगार को एक दत्ति भोजन एगा दत्तो भोयणस्स पबिगाहित्तए, एगा पाणमस्स । की और एक दति पानी की लेना कल्पता हैअण्णाय उकळ, सुखोवहां वह भी अज्ञात स्थान से, अल्पमात्रा में और दूसरों के लिए बना हुआ हो तथा-- निजहिता बहवे दुप्पय-घउप्पय-समण-माहण-अतिहि- अनेक द्विपद, चतुष्पद, श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण किविण-वणीमगे, और भिखारी आदि भोजन लेकर चले गये हों उसके बाद ग्रहण करना कल्पता है। कप्पड़ से एगस्स मुंजमाणस्स पडिगाहित्तए । ___ जहाँ एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो वहाँ से आहार पानी की दत्ति लेना कल्पता है। णो दुण्हं, णो तिह, णो चउहं, जो पंचव्ह. जो गुन्विणोए, किन्तु दो, तीन, चार या पांच एक साथ बैठकर भोजन गो बालवश्छाए, जो दारम पेज्जमाणीए । करते हों वहाँ से लेना नहीं बाल्पता है। गर्भिणी, बालवत्सा और बच्चे को दूध पिलाती हुई स्त्री से लेना नहीं कल्पता है। णो से कपई अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहटु दलमाणीए जिसके दोनों पैर देहली के अन्दर या दोनों पर देहली के पो बाहिं एलुयाम दो यि पाए साहट्ट दलमाणाए। बाहर हों ऐसी स्त्री से लेना नहीं कल्पना है। अह पुण एवं जाणेज्जा एग पाय तो किच्चा, एगं पायं किन्तु यह ज्ञात हो जाये कि एक पर देहली के अन्दर है बाहि किच्चा, एलुय विक्खंभइत्ता, एवं से दलयति, कप्पति और एक पैर बाहर है इस प्रकार देहली को पराधों के मध्य में से पढिगाहित्सए, किये हुए हो और वह देना चाहे तो उससे लेना कल्पता है। एवं से नो दलयति. नो से कप्पति पडिगाहित्सए। इस प्रकार न दे तो लेना नहीं कल्पता है। --दसा .द. सू.४ पडिमापडिवण्णस्स गोयरकाला . प्रति माधारी के भिक्षा काल५८१. मासियं गं भिक्खु-पडिम पडियनस्स अणगारस्स तमो गोयर- ५८१. एक मास की भिक्ष-प्रतिमाघारी अनगार के भिक्षाचर्या काला पणत्ता, तं जहा करने के तीन बाल कहे गये हैं, यथा -- १. आइमे, २. मज्झे. (१) दिन का प्रथम भाग, (२) दिन का मध्य भाग, ३. चारमे। (३) दिन का अन्तिम भाग । १. आइमे चरेज्जा, नो मज्ने चरेज्जा, जो चरिमे चरेग्जा। (१) यदि दिन के प्रथम भाग में भिक्षाचर्या के लिए नवे तो मध्य और अन्तिम भाग में न जावे । २. मज्झे चरिज्जा, नो आइमे चरिज्जा, नो चरिमे च रेज्जा। (२) यदि दिन के मध्य भाग में भिक्षाचर्या के लिए जावे तो प्रथम और अन्तिम भाग में न जावे । ३. चरिमे च रेज्जा, नो आइमे चरेज्जा, नो मजिसमे (३) यदि दिन के अन्तिम भाग में भिक्षाचर्या के लिए जावे घरेज्जा । '- दमा. द. ७, सु. ५ तो प्रथम और मध्य भाग में न जावे । पडिमापष्टिवण्णस्स गोयर चरिया प्रतिमाधारी की गोचर चर्या५८२. मासियं गं भिक्षु-पडिम पडिवनस्म अणयारस्त छब्विहा ५८२. एव. मास की भिक्षु प्रतिमाधारी अनगार के छ: प्रकार गोयरचरिया पण्णसा, तं जहा की गोचरी कही गई है। पथा१. पेडा, (१) चोकोर पेटी के आकार से भिक्षाचर्या करना। २. अद्धपेडा, (२) अर्ध पेटी के आकार से भिक्षावर्या करना।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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