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________________ २०० ] चरणानुयोग – २ ७. सस मासिया भिक्यु-एडिमा, ५. पत्रमा माया दिया २. दया परिमा १०. सादिया ११. हराया-पडिमा १२. एम-राइया मिक्लु-पडिमा सम सम. १२, सु. १ पडिमा आरहणकाले बसणा१७१. मासि णं भिक्खु-पडि बोकाए चित्त देने से केला १ (क) दसा. द. ७, सु. १-२ (दी प्रतिमा आराधन काल में उपसर्ग पडिवप्रस्स अणगारस्स निश्वं जा · (०) मा (८) प्रथम सप्त (१) द्वितीया (१०) तृतीया सूत्र ५७८-५७६ प्रतिमा रात्रिदिवा भिक्षु प्रतिमा । राशिविया प्रतिमा। -रात्रिदिया भिक्षु प्रतिमा। २ दिया. स. १०, उ. २, सु. ६ (११) अहोरात्रकी भिक्ष, प्रतिमा । (१२) एक प्रतिमा प्रतिमा आराधन काल में उपसर्ग - ५७६. नित्य शरीर को परिचर्या एवं ममत्व भांव से रहित एक मासिक-धरीना को जो कोई उपसई यावे, जैसे कि - है, इनमें पहली दूसरी तीसरी और में प्रतिमाओं का चौथी प्रतिमा के आराधना काल का स्पष्ट कथन नहीं है, किन्तु पांचवीं प्रतिमा से इम्यारहवीं प्रतिमा तक का जघन्य और उत्कृष्ट आराधना काल स्पष्ट कहा है । वह उत्कृष्ट काल इस प्रकार हैपाँचवी प्रतिमा का उत्कृष्ट आराधना काल पाँच मास और छठी प्रतिमा से इम्यारहवीं प्रतिमा तक एक-एक मास क्रमशः बढ़ाने पर इग्यारहवीं प्रतिमा का उत्कृष्ट आराधना काल इग्यारह मास होता है । उपासक दशा के टीकाकार ने आनन्द श्रमणोपासक का संपूर्ण पहली प्रतिमा का आराधना काल एक मास और इसी क्रम से कहा है। प्रतिमा आराधना काल साड़े पाँच वर्ष का कहा है, वहाँ इग्यारहवीं प्रतिमा का आराधना काल इग्यारह मास तस्कन्ध की सातवीं दशा में भिक्षु की बारह प्रतिमाओं का वर्णन है, वहीं उनका जघन्य उत्कृष्ट आराधना काल स्पष्ट नहीं कहा है । किन्तु पहली भिक्षु प्रतिमा का नाम मासिक भिक्षु प्रतिमा, दूसरी का दो मासिक भिक्षु प्रतिमा और क्रमशः सातवीं भिक्षु प्रतिमा का नाम सप्तमासिको भिक्षु प्रतिमा कहा गया है। तथा आठवी-नीयों और दसवीं का नाम प्रथम सप्तअहोरात्रकी, द्वितीय सप्तमहोरावि दीयत महोरागिनी प्रतिमा, इग्यारहवीं का एक अहोरात्र की और बारहवीं का एक रात्रि की भिक्षु प्रतिया कहा है। किन्तु पहली प्रतिमा की भाराधना के विधानों में प्रतिमा आराधक को परिचित क्षेत्र में एक रात से अधिक और अपरिचित क्षेत्र में एक या दो रात से अधिक रहने पर दीक्षा भेद का या परिहार उप का प्रायश्चित विधान है। तुम में इन प्रतिभा का माराधन नहीं किया जा सकता है। टीकाकार आदि ने इन प्रतिमाओं का सम्पूर्ण आराधन काल नहीं बताया है अतः उसका तीन प्रकार से अनुमान किया जा सकता है। १. पहली प्रतिमा से सातवीं प्रतिमा तक प्रत्येक प्रतिमा का नाम प्रथम मासिकी भिक्षु प्रतिमा यावत्-सप्तम मासिकी भिक्षु प्रतिमा मान कर उनका एक-एक मास आराधन काल मानें तो आठ महिने में ही बारह प्रतिमाओं का आराधन हो सकता है । २. उपलब्ध नाम के अनुसार काल मानकर तथा चातुर्मास में प्रतिमा आराधन न करने पर सम्पूर्ण आराधन काल ५ म होता है। ३. चातुर्मास में भी प्रतिमाराधन करना माना जाये तो सम्पूर्ण आराधन काल २ वर्ष ५ मास होता है । इनमें प्रथम अनुमान-सूच विधान से निर्विरोध है। दूसरा अनुमान कम दीक्षा वालों के आराधन वर्णन से विरोध प्राप्त है। तीसरा अनुमान भी चातुर्मास में बिहार करने रूप होने से निर्विरोध नहीं रहता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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