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________________ २५२] धरणानुयोग -२ अणलिंग ग्रहणाणंतरे गणे पुनरागमण५२२. माओवम्म परमापतिं संपत्तिथं विरित्तए, अस्थिय इर सेसे, पुणो आलो- उसी गण में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो यदि उसका एन्ना, पुमो पस्किसेज्जा, पुणो परिहारस्सा चारित्र कुछ शेष हो तो वह उस पूर्व अवस्था की पूर्ण मालोचना -वच उ १, सु. ३० एवं प्रतिक्रमण करे तथा आचार्य उसकी आलोचना दीक्षा 'सुनकर छेद या तप रूप जो प्रायश्चित्त दें उसे स्वीकार करे । अम्यलिग ग्रहण के बाद गण में पुनरागमन ५२२. यदि कोई पेग से निकलकर किसी परिस्थिति से अन्यलिंग को धारण कर विहार करे और कारण समाप्त होने पर पुनः स्वलिंग को धारण कर गण में सम्मिलित होकर रहना चाहे तो उसे आलोचना के अतिरिक्त लिंग परिवर्तन का दीक्षा - जब उ. १, सु. ३१ छेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। 图图 बिया से इच्छेला बोच्च पि तमेव गणं उपज साणं विहरिए, नत्थ में तरस तप्यत्तयं केंद्र या परि हारे वा नगाए आसोबचाए । संफिलेसपगारा--- ५२. पण, तं जहर २. उपस्सय संकिले से, २. कसाय संकिले से, ४. मत्तपण-संकिले से, ५. मण-संकिलेसे, ६. - ७. संकि e. सण-संकिलेसे, १०. परिस-संकिये। असंकिले सपगारा ५२४. असे जहा अन्यलिंग ग्रहण १. २. कसे, ३. कसायनसंकिले से, ४. पाणअसं किले से, ५. मणअसंकिलेसे, ६. असं किले से १ ठाणं. अ. ३, उ. ४, सु. १६८ । के बाद गण में पुनरागमन .-- ठाणं. अ. १०, सु. ७३६ कलह और उसकी उपशान्ति - १४ सूत्र ५२१ ५२४ — क्लेश के प्रकार ५२३. दस प्रकार की कलह कहा गया है। यथा(१) उपधि के निमित्त से होने वाला क्लेश । (२) उपाधय के निमित्त से होने वाला वेश । (३) कोधादि के दत्त से होने वाला (४) आहारादि के निमित्त से होने वाला क्लेश । | (५) मन के निमित्त से होने वाला क्लेश्थ । (६) वचन के निमित्त से होने वाला क्लेश । (७) शरीर के निमित्त से होने वाला क्लेश । (८) ज्ञान के निमित्त से होने वाला कलेजा । (१) दर्शन के निमित्त से होने वाला क्लेश । (१०) चरित्र के निमित्त से होने वाला क्लेश । अक्लेश के प्रकार- ५२४. असंक्लेश ( कलह का अभाव ) दस प्रकार का कहा गया है। जैसे (१) उपधि के निमित्त से बलेश न होना। (२) निवासस्थान के निमित से कलेश न होता । (३) पान के निमित्त से लेन होना। (४) आहारादि के निमिन सेलेशन होना । (५) मन के निमित्त से क्लेश न होना । (६) वचन के निमित्त से क्लेश न होना ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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