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________________ सूत्र ४७५-४७८ निम्रन्थी को अवलम्बन देने के कारण संघ-व्यवस्था [२२६ ५. णिग्गंधीपावाइए सपणे, पिगंथेहिं अविज्जमाह "मचे (५) निर्ग्रन्थी के द्वारा दीक्षित (पुत्र आदि) अचेलक श्रमण लए सचेलियाहि" जिग्गंभीहि सचि संवसमाणे णातिक्कमति। अन्य निर्ग्रन्थों के अभाव में सचेलक निग्रंथियों के साथ रहता -ठाणे. अ. ५.३.२, सु. ४१७ हुआ जिनाज्ञा वा अतिक्रमण नहीं करता है। णिग्गाथ अवलंबणे कारणा -- निर्गन्यीको अवलम्बन देने के कारण । ४१६. पंचहि ठाणेहि समणे-णिगथे जिग्गा गिण्हमाणे वा अब- ४७६. पांच कारणों से श्रमश-निन्थ नियंधी को अवलम्बन दे लबमाणे वा णातिक्कमति, तं जहा तो जिनाजा वा अतिक्रमण नहीं करता है, जैरो१.णि चणं अण्णयरे पसुजातिए वा, पक्षिजातिए था, (१) कोई पशु या पक्षी निर्गन्धी पर आक्रमण करे तो वहां ओहावेज्जा, तस्य णिग्गथे जिग्गथि गिण्हमाणे वा अवलंब- निनन्य उसे बचाता हुआ या सहारा देता हुआ जिनामा का माणे वा गातिक्कमति । अतिक्रमण नहीं करता है। २.णिगये जिग्गंथि दुगंसि वा, विसमंसि वा, पक्खलमाणि (२) दुर्गम या विषम स्थान में फिसलती या गिरती हई वा, पक्षमाणि वा, गिण्हमाणे वा, अवलंबमाणे वा जाति- निन्धी को ग्रहण करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ निग्रन्थ पति। जिनाजा का अतिक्रमण नहीं करता है। ३. णिगंथे णिग्गाय सेयसि बा, पणगंसि वा, पंकसि वा, (३) दल-दल में, कीचड़ में, काई में फंसी हुई या जल में उदगंति वा, उपकसमाणि वा, उबुज्ममागि वा, गिव्हमाणे गिरती हुई या दूबती हुई निम्रन्थी को पकड़ता हुआ या अबलम्बन वा, प्र.क्लबमाणे वा णातिक्कमति । देता हुआ निग्रंन्य जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करता है । ४.णिगये णिथि णावं आव्हमाणिवा, ओरोहमाणि या (४) नौका पर चढ़ती हुई या नौका से उतरती हुई निर्ग्रन्थी गिण्हमाणे या अवलंबमाणे या णातिक्कमति । को निर्ग्रन्थ ग्रहण करता हुआ या अवलम्बन देता हुआ जिनाशा का अतिक्रमण नहीं करता है। ५. खिसचित्तं, वित्तचितअपवाद', उम्मायत्त, जवसाग (५) विक्षिप्त चित्त वाली, उन्मत्त चित्त वाली, भूत-प्रेतादि पत्तं, साहिगरणं, सपायरिछत, असपाणपडियाइक्खियं, से पीड़ित, उन्माद प्राप्त, उपसर्ग से भयभीत, कलह में संलग्न, अष्ट्रनाय या नियथि जिग्गय गेहमाणे यश अवलंबमाणे कठोर प्रायश्चित्त से चलचित्त, संथारा युक्त तथा दुर्लभ द्रव्यों की मा णातिक्कमति। -ठा. अ. ५, उ. २, सु. ४३७ प्राप्ति मा अप्राप्ति से अशान्त चित्त निर्ग्रन्थी को निर्मन्थ पकड़ता हुआ या सहारा देता हुआ जिनाशा का अतिक्रमण नहीं करता है। णिग्गथ-णिग्गथोणं साहम्मिय अंत किच्चाई निन्थ-निम्रन्थी के सामूहिक सार्मिक अन्त्यकर्म-- ४७७. छह ठाणेहि णिगंथा णिग्गयीओ प साहम्मियं कालगतं ४७७. छह प्रकार से निर्धन्य और निर्ग्रन्थी गाथ-साथ अपने समायरमाणा माइक्कमति, बहा .. काल प्राप्त साभिक के अन्तिम कार्य करते हुए जिनाज्ञा का अतिक्रमण नहीं करते हैं । जैसे१. अंतोहितो वा वाहि णोणेमागा। (१) उसे अन्दर से बाहर लाते हुए। २. बाहीहितो वा णिवाहिं जीणेमागा। (२) उपाश्रय से बाहर लाते हुए। ३. उवेहमाणा वा। (३) देखभाल करते हुए। ४ उपासमाणा वा। (४) शव के समीप रहकर रात्रि भर जागरण करते हुए। ५. अणुग्णवेमाणा था। (५) उसके स्वजन या गृहस्थों को संभालते हुए । ६. तुसिगीए वा संपन्वयमाणा । –ठाणं. अ. ६, सु. ४७७ (६) मौन भाव से परठने के लिए ले जाते हुए। णिगंथ-णिग्गंथीणं अण्णमण्ण-वेयावच्छ करण बिहाणा- निर्गन्थ- निन्थो के परस्पर सेवा करने के विधान४७८. निगमस्स य अहे पायंसि-खाणू वा, कंटए वा, होरए या, ४७८. निर्गन्य के पैर में तीक्ष्ण, शुष्क, छ, कंटक, तीक्ष्ण काष्ठ सक्करे वा परियावजेज्जा तं च निग्गंथे नो संघाएइ या तीक्ष्ण पाषाण खण्ड लग जावे उसे निकालने में या शोधन १ (क) ठाणं. अ. ६, सु. ४७६ (ख) कप्प. उ. ६, सु. ७.१८
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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