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भाग-२
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उ०- लोमविज एवं संतोसीभावं जणपत्र, लोभवेय णिज्जं कम्मं न बन्धइ, पुव्ववद्धं च निम्नरे ।
अट्टहास पायच्छित तुलं
३७.
कि हंसने का प्रायश्चित सूत्र
---उत्तम. २६, सु. ७२ क्षीण करता है।
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अनाचार प्रायश्चित १२
मुहं विष्फालिम विष्फालिय हस हस या
1
साइज्जइ ।
देवमाणे आवज मासिवं परिहारद्वान उदाह
- नि. उ. ४, सु. २७
सिप्पाई सिक्खावणं पायच्छित सुत्तं-३८८. जे भिक्खू अण्णजत्थियं वा गारथियं वा१. सिप्पं वा, २.सिलो वा ३. ४. फक्कडगं था, ५. हं वा ६. सलाहं वा सिक्खाबेड, सिक्खायें या साइज्जइ ।
तं सेवमाने आज चाउम्माशिमं परिहारद्वाणं उत्पाद नि. उ. १३, सु. १२ आगाढ - फरसययण पायच्छित सुसाई ३८९. जे भिक्खू अण्णउत्थियं वा गारत्वियं वा जागा ववइ, वसं
वा साइज्जइ ।
भिक्खू अण्णस्थियं वा गारस्थियं वा फचर्स वयद्द,
या साइज्जइ ।
जे भिक्खू अन्गउत्चियं वा तारस्चियं वा आमा फरर्स मह वयंसं या साइज्जइ ।
वर्यतं
तं सेवमाणे आवज चाउमा सियं परिहारद्वत्वं उपधादयं । - नि. उ. १३, सु. १३-१५ अवासायण पायचिछत्त सुतं - ३६०. जे भिक्खु अण्णउत्थियं वा गारस्थियं वा अण्णवीए अच्चासामगार अच्या अन्यासाएं या साइन।
उ०- लोभ विजय से वह सन्तोष को प्राप्त करता है। वह लोभ- वेदनीय कर्म का बन्ध नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्म को
सं रोवमाणे आवज बातम्यालियं परिहारद्वाणं पाइयं । - नि. उ. १३, सु. १६
सूत्र ३८६-३१०
अधिक हंसने का प्रायश्चित सूत्र३०. जो शिशु मुँह फाड़ कर (गोर-जोर से हंसता है, हंसाता है या हंसने वाले का अनुमोदन करता है । उसे मासिक परिहासथान (प्रायश्चित) आता है।
शिल्पकलादि सिखाने का प्रायश्चित्त सूत्र-३८८. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को— (१) शिल्प, (२) गुण कीर्तन, (४) कांकरी बेलना,
खेलना,
(३) जुला (५) युद्ध करना,
( ६ ) पद्य रचना करना सिखाता है, सिखवाता है या सिखाने वाले का अनुमोदन करता है।
उसे चातुर्मासिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) ता है।
अपशब्द और कठोर वचन के प्रायश्वित सूत्र—
३८. जो भिक्षु अन्यतीयिक वा महस्य को आवेश युक्त वचन कहता है, कहलाता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है।
जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्थ को कठोर वचन कहता है, कहलवाता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है।
जो भिक्षु अम्यतीयिक या गुहत्य को आदेश युक्त कठोर शब्द कहता है, लाता है या कहने वाले का अनुमोदन
करता है ।
उसे चातुर्मासिक उद्घाटिक परिहारस्थान ( प्रायश्चित्त) आता है । आमातना का प्रायश्चित्त सूत्र
३०. जो भिक्षु अन्यतीर्थिक या गृहस्य की किसी भी प्रकार की आयातना करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
उसे चातुर्माक्षिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है ।