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पत्र ३३२-३३३
निर्ग्रन्थी का पुरुषत्व के लिए निदान करना
आराधक-विराधक
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"जर इमस्स सुनरिय तय-नियम-यंभरवासस्स फलवित्ति- "यदि सम्यक् प्रकार से आचरित मेरे इस तष-नियम एवं विसेसे अस्थि तं अहमवि आगमेस्साए माई एयाहवाह उरा- ब्रह्मचर्य पालन का विशिष्ट फल हो तो मैं भी भविष्य में स्त्री लाई इस्थिमोगाई मुंजमाणे विहरामि-से तं साहू।" सम्बन्धी इन उत्तम भोगों को भोगता दुआ विचरण करू, तो यह
श्रेष्ठ होगा।" एवं खलु समणाजसो ! णिगंथे णियाणं किच्चा तस्स ठाणस्स हे आयुष्मान् श्रमणो ! बह निर्गन्ध निदान करके उसकी अणालोइय अपरिक्कते-जाव-'बागमेस्साए दुल्लहबोहिए आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना... यावत्- उसे आगामी काल यावि भवद।
में सम्यत्व की प्राप्ति भी दुर्लभ होती है। एवं खलु समणाउसो तस्स पियाणस्स इमेयारवे पावए हे आयुष्मान् श्रमणो ! उस निदान का यह पापकारी परिफलविवागे जं नो संचाएह केवसिपण्णत धम्म परिसु- णाम है कि वह केवनि प्ररूपित धर्म को नहीं सुन सकता है। गिसए।
-दसा द, १०. सु. ३०-३२ णिग्गंथोए पुमत्तट्टा णियाण करणं
निर्गन्धी का पुरुषरब के लिए निदान करना३३३. एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते इणमेव णिग्गथे ३३३. हे आयुष्मान श्रमणो ! मैंने धर्म का प्रतिपादन किया है। पावयणे सच्चे-जाव-सव्वयुक्खाणं अंतं करति । यही निर्ग्रन्थ प्रवचन मत्य है यावत् --सब दुःखों का अन्त
करते हैं। जस्स णं धम्मस्स निग्गंधी सिक्खाए उवट्टिया विहरमाणी उस केवलि प्रजप्त धर्म की आराधना के लिए कोई निग्रन्थी जाबः पासेज्जा- हमे उम्मपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता उपस्थित होकर विचरती हुई-यावत्-एक पुरुष को देखत्ती महामाउया-जाव-"ज पासिसा निबंधी विदाणं करेति । है जो कि विशुद्ध मातृ-पितृ पक्ष बाले उग्रवंशी या भोगवंशी है
यावत्-उसे देखकर निग्रंन्थी निदान करती है कि"युक्खं खलु स्थितणए,
"स्त्री का जीवन दुःखमय है" गुस्संचराई गाभतराई-जाव-सिभिवसंतराई।
पयोंकि किसी अन्य गाँव को-यावत्-अन्य सन्निवेश को
अकेली स्त्री नहीं जा सकती है। से जहानामए अंव-पेसियाइ या, मालिपपेसियाद वा, जिस प्रकार आम, बिजौरा या आम्रतक की फाँके, इक्षु अंबाडग-पेसियाइबा, उच्छुखंडिया वा, संबलि-लि- खण्ड और शाल्मली की फलियां अनेक मनुष्यों के आस्वादनीय, याइवा, बहुजणस्स आसायणिज्जा, पत्थणिज्जा, पौणिज्जा, प्राप्तकरणीय, इच्छनीय और अभिलषनीय होती है। अभिलसपिज्जा। एवामेव हस्थिया बि महजणस्स असायणिज्जा-जाव- इसी प्रकार स्त्री का शरीर भी अनेक मनुष्यों के आस्वादअभिलसणिज्जा तं दुपखं खलु इस्थितगए, पुमत्तणए मं नीय-यावत्-अभिषलनीय होता है। इसलिए स्त्री का जीवन
दुःखमय है और पुरुष का जीवन सुखमय है।" "जा इमस्स सुचरित-तव-नियम-बमचेरवासस्स फलवित्ति "यदि सम्यक प्रकार से आचरित मेरे तप, नियम एवं विसेसे अस्थि, तं अहमबि आगमेस्साए इमाई एमास्वाई ब्रह्मचर्य पालन का कल्याणकारी विशिष्ट फल हो तो मैं भी उरालाई पुरिस-भोगाई मुंजमागी विरामि से त साहू।" आगामी काल में इस प्रकार के उत्तम पुरुष सम्बन्धी काम भोगों
को भोगते हुए विचरण करूं तो यह श्रेष्ठ होगा।" एवं मातु समणासो | गिगंभी गिदाणं किसचा तस्स इस प्रकार हे आयुष्मान श्रमणो | वह निर्गन्थी निदान ठाणस्स आणालोहय अप्परिकता-जाव'-आगमेस्साए करके उसकी आलोचना प्रतिक्रमण किये बिना--पावत्-उसे बुल्लहबोहिया यावि भवा ।
सम्यक्त्व की प्राप्ति भी दुर्लभ होती है। २ द्वितीय निदान में देखें
२ प्रथम निदान में देखें ३ प्रथम निदान में देखें
४ आ. श्रु.२, ब, १, उ.२, सु. ३३८ ५ इसी निदान में देखें
६ प्रथम निदान में देखें। '. प्रथम निदान में देखें ।