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________________ १५.२ चरणानुयोग - २ १. अकोसिया, २. परपरिवारमा ३. भूमिया ४. कारमा से एक विहारेण विहरमाणा बहुदा साम परियागं पाजणंति पाउणिता तस्स ठाणस्स अणालीद अकाल का fear उसको ये आमिलोगिएम देवेषु पलाए उपसारो अए सहितैसि गईयामा म विराया जहा १. बहुरा २. जोएसिया, ३. अवलिया, ४. सामुच्छेदया, १. दोहिरिया बिरामिह ६. ७. जब दिया । -जाब-परलो मु. १२ विरागा जिल्हा १२. हामगर जागा मत २२० ग्राम करसन्निवेश में होने हैं, यथा (१) स्वयं के प्रशंसक, (२) दूसरों के निदक, (३) भूमिकर्मिक और (४) बार-बार कौतुक कर्म करने वाले, इस प्रकार की चर्या से विचरते हुए वे बहुत वर्षों तक करते है और पालन करके अपने पाप स्थानों की आलोचना प्रतिक्रमण नहीं करते हुए मृत्यु काल वा पर देह त्याग कर उत्कृष्ट अच्युत कल्प में अभियोग वर्ग के देवों में देव रूप में उत्पन्न होते हैं। १. एकान्त बाल नरव गामी, ३. वन्दी आदि ५. स्त्रियाँ, ७. वानप्रस्थ नहीं अपने स्थान के अनुरूप उनकी गति होती है-पात् बाईस सागरोपम की स्थिति होती है यावत् परलोक के विराधक होते हैं । विराधक निन्हव इज्ते सप्त पवयणिण्गा केवल रियालिंग सामण्णा, मिच्छाfिast. वहूहि असम्भावुभावनाहि मिच्छताभिणिने सेहिया परं भामाणा बुध्याएमाणा विहरिता बहूई घासाहं सामण्णपरियागं पाउगंति, पाणिता कालमासे कालं fear उक्कोसेणं उवरिमेसु देवताना जयंत 1 सत्र ३२६-३२७ गईली सागरोपमा जाव-परसु. १२२ लोग विरागा । (१) अनेक समयों से कार्य की निप्पत्ति मानने वाले, (२) अन्तिम एक प्रदेश को ही जीव मानने वाले, (३) सम्पूर्ण बाह्य व्यवहार को संदिग्ध मानने वाले, (४) प्रतिक्षण नरकादि अवस्था का विनाश मानने वाले, (५) एक समय में दो फिया का अनुभव होता है यह मानने वाले, (1) डोब, जीप और मिश्र यों दीन राशि मानने वाले (७) जीव और कर्म को बद्ध न मानकर मात्र स्पष्ट मानने वासे । प्रस्तुत राधसम्बन्धी वर्णन में तीन आराधक है एवं तेरह विराधक है १. संद्रिय २. अपारंपरि ३. अन ये सात प्रवचन निम्ह हैं ये केवलचर्या और वेष से संयमी होते हैं किन्तु मिध्यादृष्टि हैं । असत् प्ररूपणाओं और मिथ्या आग्रहों द्वारा अपने को, दूसरों को और दोनों को भ्रमित करते हैं, पथभ्रष्ट करते हैं और इस प्रकार का आचरण करते हुए बहुत वर्षों तक श्रमण पर्याय का पालन करते हैं तत्पश्चात् कालमास में काल करके उत्कृष्ट उपरितन as विमानों में देवरूप से उत्पन्न होते हैं । वहाँ अपने स्थान के अनुरूप उनको गति होती है यावत्को सरोप की स्थिति होती है-या परलोक के विराधक होते है। २. अकाम निर्जरा करने वाले, ४. प्रकृति ६. बाल तपस्वी, दि मेटअप पृष्ठ पर
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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