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सूत्र ३१६-३२१
विराधक बाल तपस्वी
आराधक-विराधक
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ताओ गं इपियायो एयारवेणं विहारेण विहरमाणीमो बहई इस प्रकार के आचरण द्वारा जीवनयापन करती हुई बहुत बासाई आज पालेति, पालित्ता कासमा कालं किश्या वर्षां का आयुष्य पूरा कर, मृत्यु काल आने पर देह-त्याग कर अण्णयरेसु बाणमंतरेसु देवलोएसु देवताए-उववत्तारोओ वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न पर्वति, तहि तेसिं गई-जाव-चउसटि वास सहस्सा ठिई होती है। वहाँ अपने स्थान के अनुरूप उनकी गति होती है जाव-परलोगस्स बिराहगा ।
-उव. सु. ७२ .-पावत्-उनकी स्थिति पोसठ हजार वर्ष की होती है यावत्
वे परलोक की विराधक होती हैं 1 विराहगा वाल तबस्सी
विराधक बाल तपस्वी३२०. से जे हमे गामागर-जाव-सणिवेसेसु मगुया अवंति, ३२०. जो ये ग्राम, आकर-पावत्-सन्निवेश में मनुष्य होते संजहा--
यथा१. वगविहया,
(१) उदक द्वितीय-एक खाद्य पदार्थ तथा दूसरा जल सेवन
करने वाले, २. वगतदया,
(२) उदक तृतीय-दो खाद्य पदार्थ तथा तीसरे जल का
सेवन करने वाले, ३. बैंगससमा,
(३) उदक सप्तम-छह खाद्य पदार्थ तया सातवे जल का
सेवन करने वाले, ४. वेगएक्कारसमा,
(४) उदकैकादश-भात भादि दस पदार्थ तथा ग्यारहवें जल
का सेवन करने वाले, ५. गोयम,
(५) गौतम -प्रशिक्षित बैल द्वारा मनोरंजक प्रदर्शन प्रस्तुत
कर भिक्षा मांगने वाले, ६. गोव्याय,
(६) गोद्रतिकः-गो-सेवा का विशेष प्रत स्वीकार करने वाले, ७. गिहिसम्म,
(७) अतिथि सेवा दान आदि गृहस्थ-धर्म को ही कल्याण
कारी मानने वाले, ८. धम्मचितग,
(2) धर्मचिन्तक-धर्मशास्त्र के पाठक, ६. अविरुख,
(8) अबिरुद्ध-वैनयिक-भक्ति मार्गी, १०. विद्ध,
(१०) विरुद्ध-अक्रियावादी-क्रिया-विरोधी,
(११) वृद्ध तापस, १२. सावगप्पभितयो, तेसि गं मण्याग गो कप्पंति इमाओ (१२) श्रावक-धर्मशास्त्र के श्रोता, ब्राह्मण आदि, नवरसविगहओ आहारत्तए, तं जहा-. १. सोरं २. वहि, ३. वणीयं, ४. सप्पिं, ५. तेलं जो (१) दूध, (२) दही, (३) मक्खन, (४) घृत, (५) तेल, ६. कापियं, ७. महूं. ८. मज १. मंसं, जो अपगस्थ (६) गुरु, (७) मधु, (८) मद्य तया (8) मांस को अपने लिए एक्काए सरिसवविगहए। ते गं मण्या अप्पिच्छा जाव- अकल्प्य-अग्राह्य मानते हैं, सरसों के तेल के सिवाय इनमें से घउरासीई वाससहस्साहं ठिई-जाव-परलोगस्स विराहगा। किसी का सेवन नहीं करते, जिनकी आकांक्षाएं बहुत कम होती
-उव. सु. ७३ हैं, ऐसे मनुष्यों की-पावत्-८४ हजार वर्ष की स्थिति होती
है-यावत्-वे परलोक के विराधक होते हैं। विराहगा वाणपत्था -
विराधक वानप्रस्थ३२१. से जे इमे गंगाकुसगा वाणपत्या ताबसा अवंति, तं जहा- ३२१. जो ये गंगा के किनारे रहने वाले वानप्रस्थ तापस होते
है, यथा१, होतिया,
(१) अग्नि में हवन करन वाले, २. पोतिया,
(२) वस्त्र धारण करने वाले,