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________________ १४४] चरणानुयोग-२ विराधक स्त्रियाँ सूत्र ३१८-३१६ बहई वासाई नारायं पागें, पाविता मालमासे का बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हुए, आयुष्य पूरा कर, मृत्युकिच्या अण्णयरेसु बाणमंतरेसु देखलोगेसु देवसाए उववत्तारो काल आने पर देह त्याग कर वानव्यन्तर देबलोकों में से किसी भर्वति । तहि तेसिं गई-जाव-बउद्दसवासहस्साई ठिई-जाव- देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होते हैं। वहां अपने स्थान के अनुरूप परलोगस्स विराहगा। -उव. सु. ७१ उनकी गति होती है-यावत-इनकी स्थिति चौदह हजार वर्ष की होती है-पावत्-वे परलोक के विराधक होते हैं। विराहगाओ इत्थियाओ विराधक स्त्रियां३१६. से माओ इमाओ गामागर-जाव-सणिवेसेसु इस्थियाओ २१६. लो ये ग्राम, आकर-यावत् - सन्निवेश में स्त्रियाँ होती भवंति, तं जहा-- हैं, यथा--- १. अतो अंतेउरियाओ, (१) जो अन्तःपुर के अन्दर निवास करती हों, २. गयपइयाओ, (२) जिनके पति परदेश गये हों, ३. मयपइयाओ, (३) जिनके पति मर गये हों, ४. बालविहवाओ, (४) जो बाल्यावस्था में ही विधवा हो गई हों, ५. छडिडपल्लियाओ, (५) जो पतियों द्वारा परित्यक्त कर दी गई हों, ६. माइरक्ष्यिाओ, (६) जिनका पालन-पोषण, संरक्षण माता-पिता द्वारा होता हो, ७. पियर क्लियाओ, (७) जो पिता द्वारा रक्षित हों, ८. भायरक्खियाओ, (८) जो भाइयों द्वारा रक्षित हों, ६. परक्खियाओ, (8) जो पति द्वारा रक्षित हों, १०. कुलधररक्खियाओ, (१०) जो पीहर के अभिभायकों द्वारा रक्षित हों, ११. सरकुलरक्खियाओ, (११) जो श्वसुर कुल के अभिभावकों द्वारा रक्षित हों, १२. मित्तनाइनियगसंबंधिरक्खियाओ, (१२) जो पति या पिता आदि के मित्रों, अपने हितषियों, भामा, नाना आदि सम्बन्धियों, अपने सगोत्रीय देवर, जेठ आदि पारिवारिकजनों द्वारा रक्षित हों, १३. परुदणहकेसकक्खरोमाओ, (१३) विशेष परिष्कार के अभाव में जिनके नख, केश, कोख के बाल बर गपे हों, १४. यवगयघूयपुष्फगंधमालाकाराओ, (१४) जो धूप, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, मालाएँ धारण नहीं करती हों, १५. अहागसेयजल्लमल्लपंकपरितावियाओ, (१५) जो अस्नान, स्वेद, मल्ल, पंक से पीड़ित रहती हो, १६ ववगयधीर-दहि-गवधीयसप्पि-तेल्ल-भुल-लोण-मह. (१६) गो दूध, दही, मक्खन, घृत, तेल, गुड़, नमक, मधु, मज-मस-परिचत्तकयाहाराओ, मद्य और मांस रहित आहार करती हों, १७. अपिच्छाओ, (१७) जिनकी इच्छाएँ बहुत कम हों, १८. अध्यारंभाओ, (१०) जो कम हिंसा करने वाली हों, १६. अप्पपरिग्महाओ, (१६) जिनके धन, धान्य आदि परिग्रह बहुत कम हो, २०. अप्पेगं आरम्भेणं, (२०) जो अल्प आरम्भ, २१. अप्पेणं समारम्भेणं, (२१) जो अल्प समारम्भ, २२. अप्पेणं आरम्भसमारम्भेणं वितिकप्पेमाणीओ, (२२) जो अल्प जीव-परितापन द्वारा अपनी जीविका चलाती हो, २३. अकामबमचेरयासेणं, (२३) मोक्ष की अभिलाषा या लक्ष्य के बिना जो बहाचर्य का पालन करती हो, २४. सामेव परसेग्जं जाइफ्फमंति, (२४) जो पति शय्या का अतिक्रमण नहीं करती हो ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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