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धरणानुयोग-२
विराधक अकाम कष्ट भोगने वाले
सूत्र ३१७
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..पायरिणगा, ७. कमां-गा, ८. अक्कछिष्णगा, ९.मोटुगिंगा, १०. जिम्मछिपणगा, ११. सीसहिष्णया, १२. मुसछिपणा, १३. माठिणगा, १४. वेकाछिपणगा,
१५. हिययउपाश्मिगा, १६. मयप्पाखियगा, १७. बसणुपाखियगा, १८. असगुप्मारियगा, १६.गेवग्गिा , २०. तंबुलन्छण्णगा,
२१. कामणिमसखाषियगा,
२२. ओलंबियगा,
(६) जिनके पैर काट दिये जाते हैं, (७) जिनके कान काट दिये जाते हैं, (1) जिनके नाक काट दिये जाते हैं, (8) जिनके होंठ छेद दिये जाते हैं, (१०) जिह्वाएँ काट दी जाती हैं, (११) मस्तक छेद दिये जाते हैं, (१२) मुंह छेद दिये जाते हैं, (१३) मध्य भाग (पेट) छेद दिये जाते हैं,
(१४) वायें काधे से लेकर दाहिनी काख तक में रह-भाग मस्तक सहित विदीर्ण कर दिये जाते हैं,
(१५) हृदय चीर दिये जाते हैं, (१६) आँखें निकाल ली जाती हैं, (१७) दांत तोड़ दिये जाते हैं, (१८) अंडकोष उखाड़ दिये जाते हैं, (१६) गर्दन तोड़ दी जाती है,
(२०) चावलों की तरह जिनके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिये जाते हैं,
(२१) शरीर का कोमल मांस उखाड़ कर जिन्हें खिलाया जाता है।
(२२) जो रस्सी से बांधकर कुए खडे मादि में लटका दिये जाते हैं,
(२३) वृक्ष की शाखा में हाथ बांध कर लटका दिये जाते हैं। (२४) चन्दन की तरह पत्थर आदि पर घिस दिये जाते हैं, (२५) पात्र स्थित दही की तरह जो मप दिये जाते हैं, (२६) काठ की तरह कुल्हाड़े से फाड़ दिये पाते हैं, (२७) जो गन्ने की तरह कोल्हू में पेल विमे भाते हैं, (२८) जो सूली में पिरो दिये जाते हैं,
(२६) जिनके देह से लेकर मस्तक में से सूसी निकाल दी जाती है,
(३०) जो खार के बर्तन में गल दिये जाते हैं, (३१) जो गीले चमड़े से बांध दिये जाते हैं,
(३२) सिंह की पूंछ से बाँध जाते है, अथवा जिनके जन । नेन्द्रिय काट दिये जाते है,
(३३) जो दावाग्नि में जल जाते हैं, (३४) जो कीपर में दून जाते है, (३५) जो कीचड़ में फंस जाते है, (१६) जो गला मोड़कर मरते हैं, (३७) जो थातध्यान से पीड़ित होकर मरते है, (15) जो निदान करके मरते हैं, (१९) जो भाले बादि से अपने भापको वेधकर मरते है,
२३. संघियगा, २४. पंसियगा, २५. धोसियगा, २६. फालिया, २७. पीलिपगा २८, मूलाइयगा, २९. सुसभिणगा,
३०. सारवत्तिया, ३१. बमबत्तिया, १२. सौहपुग्छियगा'
३३. स्वग्गिबागा, १४.पंकोसमगा, ३५. पंकेसगा, ३. बलयमयगा, २७. बसमयगा, ३८. गियानमयगा, ३६. अंतोसल्लमयमा,