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________________ विराधक अकाम निर्जरा करने वाले आराधक-विराधक १४१ विराहया अकाम निज्जरा कारगा विराधक अकाम निर्जरा करने वाले३१६. प.-जीवे मंते ! असंजए अविरए अपरिहयपच्च- ३१६. प्र०-भगवन् ! जिन्होंने संयम नहीं साधा है, जो हिंसा, सायपावकम्मे इओ खुए पेच्चा देवे सिया ? असत्य आदि से विरत नहीं है, जिन्होंने सम्यक् श्रद्धापूर्वक पापों का त्याग कर उन्हें नहीं मिटाया है, वे यहाँ से मृत्यु प्राप्त कर आगे के जन्म में क्या देव होते हैं? ३०-गोयमा ! अत्धेगड्या देवे सिया, अस्थेगहमा णो देवे --गौतम ! कई देव होते है, कई देव नहीं होते है। सिया। १०-से केषट्ठ मंते ! एवं बुच्चइ प्र.-भगवन् ! आप किस अभिप्राय से ऐसा कहते हैं कि "अत्गइया देदे सिया, अत्यगइया णो देवे सिया ?" कई देव होते हैं, कई देव नहीं होते हैं ? उ०---योयमा ! जे इमे जीषा यामागर-नगर-निगम-राय- उ०-गौतम ! जो जीव मोक्ष को अभिलाषा के बिना या हाणि - खेर कमाइ-ब-दोणमुह-पट्टणासम-संबाह- कर्मक्षय के लक्ष्य के बिना ग्राम, आकर, नगर, निगम, राजधानी सण्णिवेसेसु अकामतण्हाए, अकामछुए, अकामबन- खेट, कर्बट, मडंब, द्रोणमुख, पत्तन, आश्रम, संवाह और सनिवेष घेरखासेणं, अकामअहाणग-सीवाण्वसमसग-सेय- में तृषा, क्षुधा ब्रह्मचर्य, अस्नान, शीत, आतप, डांस, मच्छर, जल्ल-मल्ल-पंकपरितावेणं अप्पतरों वा भुज्जतरो वा पसीना, रज, मैल, पंक इन परितापों से अपने आपको थोड़ा या कासं अप्पाणं परिकिलेसंति, अप्पतरो वा भुजतरो अधिक क्लेश देते हैं, कुछ समय तक अपने आपको फ्लेखित करके वा काल अप्पाणं परिफिलेसित्ता कालमासे काल मृत्यु का समय आने पर देह का त्याग कर वे यानन्यन्तर देवकिश्वर अग्णयरेसु वाणमंतरेसु देवलोएस वेबसाए लोकों में से किसी देवलोक में देव के रूप में उत्पन्न होते है। उववत्तारो भवंति । तहि सेसि गई, तहिं सेसि ठिई, बहाँ उनकी अपनी विशेष गति, स्थिति तथा उपपात होता है। तहिं सेसि उयवाए पण्णते। प०-तेसि णं मते 1 देवाणं केवइयं काल लिई पण्णता? प्र-भगवन् ! वहाँ उन देवों की स्थिति कितने समय की बतलाई गई है? उ०-गोयमा दसवाससहस्साई टिई पष्णता । उ.--गौतम ! वहाँ उनकी स्थिति दस हजार वर्ष की बतलाई गई है। प०-अस्थि णं भंते ! तेसि देवाणं इतो हवा, जुई इ वा प्र--भगवन् ! क्या उन देवों की ऋति, युति, पण, बल, असे इ या, बले इबा, बोरिए इ घा, पुरिसपकार- दीर्य, पुरुषार्थ तथा पराक्रम होते हैं ? परक्कमेदवा? उ०–हता अस्थि। उ. हां, गौतम ऐसा होता हैं। प०-ते गं भंते ! देवा परलोगस्स आराहगा? प्र०-भगवन् ! क्या बे देव परलोक के आराधक होते है ? उ०-खो हग? सम?। -उव. सु. ६८-६९ उ.-गौतम ! ऐसा नहीं होता अर्थात् के आराधक नहीं होते हैं। विराहगा अकाम परिकिलेसगा विराधक अकाम कष्ट भोगने वाले३१७. से जे इमे यामागर-जाव-सणिवेसेस मज्या भवंति, तं ३१७. जो ये ग्राम, आकर-यावत्-सन्निवेश में मनुष्य होते है, यया१. अंबड़गा, (१) जिनके किसी अपराध के कारण काठ या लोहे के बन्धन से हाथ धर बांध दिये जाते हैं, २. गिमलबडगा, (२) जो बेड़ियों से जकड़ दिये जाते हैं, ३. हडिया , (३) जिनके पर काठ के खोड़े में डाल दिये जाते है, ४. पारगडगा, (४) जो कारागार में बन्द कर दिये जाते हैं, ५. हरपछिण्णगा, (५) जिनके हाथ काट दिये जाते है,
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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