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________________ सत्र २२३ ग्यारह उपासक प्रतिमाएं गृहस्थ धर्म (१९ से तं छठा उवासग-पतिमा। यह छठी उपासक प्रतिमा है । अहावरा सत्तमा उवासग-पडिमा--- अब सातवीं उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैंसष-धम्म-सर्ग यावि भवति-जाव दिया य राओ य वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचि वाला होता है-यावत्मयारी। वह दिन में और रात्रि में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। सचित्ताहारे से परिणाए भवति । वह सचित्ताहार का परित्यागी होता है, आरम्भे से अपरिणाए भवति। किन्तु वह आरम्भ करने का परित्यागी नहीं होता है। से पं एयारूपेणं विहारेणं विहरमाणे जहणणं एगह वा इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ, यह जघन्य एक दुआई वा तिमाहं वा-जाव-उक्कोसेणं सप्तमासे विहरेज्जा । दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट सात मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। से तं ससमा उवाप्लग-पडिमा । यह सातवीं उपासक प्रतिमा है। अहावरा अट्ठमा उवासग-पडिमा अब आठवीं उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैंसम्ब-धम्म-रुई यावि भवति-जाव-विधायराओवभयारी, बह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मगचिवाला होता है-यावत् वह दिन में और रात में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। सचित्ताहारे से परिणाए भवइ । वह सचित्ताहार का परित्यागी होता है, आरम्भे से परिणाए भवइ । वह सर्व बारम्भों का परित्यागी होता है। पेसारम्भ से अपरिग्णाए भवइ । किन्तु वह दूसरों से आरम्भ कराने का परित्यागी नहीं होता है। से गं एयारवेणं विहारेण विहरमागे जहण्योणं एगाहं वा इस प्रकार के बिहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक बुआहं वा सियाहं वा-जाब-उवाकोसेणं अदमासे बिहरेज्जा। दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट आठ मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। से तं अट्रमा उबासग-पडिमा । यह आठवीं उपासक प्रतिमा है। अहावरा नवमा उवासग-पडिमा अय नवमी उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैंसम्ब-धम्म-वई यावि भवइ-जाव-विया य राओ म वह प्रतिमाधारी श्रावक सबंधमचिदाला होता है-यावत्बंभयारी। बह दिन में और रात्रि में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है। सचित्ताहारे से परिणाए भवद । वह सचित्ताहार का परित्यागी होता है। आरम्भे से परिणाए मवह । वह आरम्भ का परित्यागी होता है । पेसारम्भे से परिणाए भवइ । वह दूसरों के द्वारा आरम्भ कराने का भी परित्यागी होता है । उद्दि-मसे से अपरिणाए मवह । किन्तु वह उद्दिष्ट भक्त का परित्यागी नहीं होता है। से गं एपालवेणं विहारेणं विहरमाणे जहणणं एगाहं वा इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दुआहं वा तिमाहं वा-जाव-उपकोसेणं नव मासे विहरेज्जा। दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट नो मास तक इस प्रतिमा का पालन करता है। से तं नवमा उवासग-पडिमा । यह नवमी उपासक प्रतिमा है । अहवरा दसमा उवामग-पडिमा अब दसकी उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैंसध्य-प्रम-नई यावि भवन-जाव-उहिट-मसे से परिम्पाए वह प्रतिमाधारी श्रावक सर्वधर्मरुचिबाला होता है-यावत्भव। वह उद्दिष्ट भक्त का परित्यागी होता है। से गं खुरमुंडए वा, सिहा-धारए वा, तस्स र्ण आभट्ठस्स या वह शिर के बालों का झुर मुंडन करा देता है अथवा शिखा समाभटुस्स वा कप्पंति बुवे मासाओमासिसए। (बालों) को धारण करता है, किसी के द्वारा एक बार मा अनेक संजहा बार पूछे जाने पर उसे दो भाषा बोलना कल्पता है। यथा
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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