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चरणानुयोग-२
योग-प्रत्याख्यान का फल
सूत्र २५६-२६३
जोग-पश्चाक्खाण-फल
योग-प्रत्याख्यान का फल२५९. प०-जोगपच्चरखाणेणं भन्ते ! जीवेक जणय ? २५९. प्र.-भन्ते ! योग (मन, वचन, काया की प्रवृत्ति) के
प्रत्याख्यान से जीव क्या प्राप्त करता है ? -योगपचक्लाणे अजोगतं जणयह । अजोगी उ.-योग-प्रत्याख्यान से वह अयोगत्व को प्राप्त होता है। जीवे नवं कम्म नबन्धह पुण्य निम्जरेइ। अयोगी जीव नए कर्मों का उपार्जन नहीं करता और पूर्व उपाजित
-उत्त, अ. २६ सु. ३६ कर्मों को भीण कर देता है। सरीर-पच्चक्खाण-फल
शरीर-प्रत्याख्यान का फल२६. १०-सरीर-पच्चखाणेणं भन्ते ! जीवे कि जणयह?
२६०. प्र.-भन्ते ! शरीर का स्पाग करने से जीव क्या प्राप्त
करता है? उ.--- सरीरपस्वखाणेगं सिडाइसयगुगत निश्वत्ता 3०- शरीर का त्याग करने से यह मुक्त अवस्था के अति
सिवाइसयगुणसंपन्ने प ग जोवे लोगग्गमुखगए परम- शम गुणों को प्रकट करता है, मुक्त आत्माओं के अतिशय गुणों सुही भवद ।
-उत्त, अ. २६ सु. ४० को प्राप्त करने वाला जीव लोक के शिखर में पहुंचकर परम
सुखी हो जाता है। सहाय-पच्चक्खाण-फलं
सहाय प्रत्याख्यान का फल२६१.५०-सहायपग्धताणेणं भंते जीवे कि जणयह? २६१. १०-भन्ते ! सहाय-प्रत्याख्यान (दूसरों का सहयोग न
नेने) से जीव क्या प्राप्त करता है? उ.-सहायरचक्खाणणं एगीमा जणयह । एगीमावभूए उ०-सहाय-प्रत्याख्यान से वह एकत्वभाव को प्राप्त होता
विय गं जीवे एगग्गं भावेमागे अप्पस, अप्पझो, है । एकत्वभाव को प्राप्त हुआ जीव एकत्व के बालम्बन का अप्पकलहे. अप्पकसाए, अप्पतुमंतुमे, संजमबहुले, संवर अभ्यास करता हुआ कोलाहल पूर्ण शब्दों से मुक्त, कलह से मुक्त, बहुले, समाहिए यावि भवद ।
झगड़े से मुक्त, कषाय से मुक्त, तू-तू से मुक्त, विशिष्ट संयम
-उत्त. अ. २६, सु. ४१ बाला, विशिष्ट संवर वाला और समाधि युक्त हो जाता है। मत-पच्चक्खाण-फलं
भक्त-प्रत्याख्यान (अनशन का फल२६२. पत-भत्तपरक्याणे भन्ते । जीवे कि जणयह? २६२. ३०-भन्ते ! भक्त-प्रत्याख्यान (अनशन) से जीव क्या
प्राप्त करता है ? उ.-मसपच्चक्लागं अणगाई भवसयाई निहम्मड। उ०-भक्त-प्रत्याख्यान से वह अनेक संकड़ों भवों का निरोध
उत्त, अ. २६, सु. ४२ करता है। सम्भाव-पच्चक्याण-फलं
सद्भाव-प्रत्याख्यान का फल२६३. प०-सम्भावपस्चक्खाणेणं भन्ते । जीवे कि जणवर? २६३.प्र. भन्ते ! सदभाव-प्रत्याख्यान (पूर्ण संबर रूप शैलेशी
भवस्था) से जीव क्या प्राप्त करता है? उ.-सम्भावपच्यासाणेणं अनिपट्टि जणयह । नियट्टि उ०—सदभाव-प्रत्याख्यान से बह अनिवृत्ति (शुक्ल ध्यान)
परिवन्ने यजगारे सारि केवलिकम्मसे जबेह, को प्राप्त होता है -अनिवृत्ति को प्राप्त हुआ अणगार केवली के तं जहा
विद्यमान चार कर्मों को क्षीण कर देता है । यथा१. वेयणिज्ज, २. आउयं,
(१) वेदनीय कम, (२) आयुष्यकर्म, ३. नाम, ४. गोयं ।
(३) नाम कर्म,
(४) गोत्र कर्म । तो पन्छा सिज्मइ, बुनाह, मुच्चा, परिनिवाएद उसके पषचात् वह सिद्ध होता है, बुद्ध होता है, मुक्त होता सत्यधुक्खाणं अन्तं करे। - उत्त. अ. २६, सु. ४३ है, पूर्ण शांति को प्राप्त करता है, और सब दुःखों का अन्त
करता है।
१ भक्त प्रस्याश्यान अनशन का वर्णन 'अनशन' तप में देखिये ।