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१०० ]
उ०
योग – २
२० सयमपञ्चश्वा भंते! कति?
गोयमा ! पंचविहे पणते, तं जहा
१. साओ पापा म
२. साओ पाओ बेरम
२. सवामी अविभावर्ण
४. साओ मेगा
५. साओ परिव्हाओ बेरमणं ।
प० - बेस मूलगुणपरत्वाने णं भंते! कतिविहे पण ?
उ०- गोधमा ! पंचवितं जहा
लाओ पाणावायाओ वेरमणं - जाव-यूलाओ परिण हामी वेरमणं ।
प० उत्तरगुणपचखाणं ते कतिविहे?
उ०- गोषमा विहे पण तं जहा-
१. सम्युत्तरगुणपच्चरवाने प
२. देसर गुण परचमाणे य
-
प० गुणा
७० गोपमा | वसविणतं जहा -
प्रत्यास्थान के मेव प्रमेव
१२.
३. कोडीसहि
१६. सागारमणागार,
७. परिमाणकचं
मंते ] कतिविहे पण्णले ?
४. नियंटियं शेष,
८. निरवसे,
९.
१०. मढाए पछचक्खाणं भने सहा' । ५० सुसरणं यं
उ०- गोमा | सत्तविहे पण जहा
१ ठाणं. अ. १०, सु. ७४८
कतिविहे पण ?
१.
३. अणत्थवंड-वेरमणं, ४. सामाइयं, ५. वेश्वगायिं
२. उपयोग- परिभोगपरिमाण,
६. पोसोबास,
प्र० - भगवन् ! सर्वमूलगुणप्रत्याख्यान कितने प्रकार का
कहा गया है ?
उ०- गौतम ! पाँच प्रकार का कहा गया है वह इस प्रकार है
(१) सर्व - प्राणातिपात से विरमण (२) सर्व विरमण (३) सर्व अवसान से दिरमण
(४) सर्व – मैथुन से विरमण,
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(५) सर्व परिग्रड् से विरमण ।
प्र० - भरनन् । देशमूलमुपप्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ०- गौतम ! पाँच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार है
स्कूल प्राणातिपात से विरमण यावत्स्थूल परिग्रह से विरमण |
सूत्र २५०
प्र०
-भगवन् ! उत्तरगुण प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ०- गौतम ! दो प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार
(१) सर्व-उत्तरगुण प्रत्याख्यान,
(२) देश-उत्तरगुण प्रत्याख्यान |
प्र० - भगवन् ! सर्व उत्तरगुण प्रत्याख्यान कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ०- गौतम हा गया है, वह इस प्रकार है(१) अनागत, (३) कोटिसहित, (५) सातार (७) परिमाणकृत,
सर्व उत्तरगुण प्रत्यास्मान दस प्रकार का
(१)दिपरिमाण (३) अनर्थदण्डविरमण, (५) देशावकाशिक,
(२) अतिकान्त, (c) frufine,
(६) अनागार, (-) निरवशेष,
(९) संकेत,
(१०) श्रद्धाप्रत्याख्यान ।
अ०] [भगवन् ! देश-उत्तरान कितने प्रकार का कहा गया है ?
उ०- गौतम ! सात प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रसर है
(२) उपभोग परमोपरिमाण,
(४) सामायिक,
(६) पोपवास,