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e चरणानुयोग – २
अभत्तट्ट-पच्चखाण-मुत्तं
२४३. मसहूर पन्चस्वामि,
असणं, पाणं, खरइमं साइमं
१. अमो
३. पारिहाणियारेण
५. सव्वस माहित्तियागारेणं योसिरामि ।
२. महलणारे,
४. महत्तरागारे,
१.
३. महसरागारे,
वोसिरामि ।
१. अन्नत्थामोगेणं, पै. महत्तरागारेणं, वोसिरामि ।
उपवास प्रत्याख्यान सूत्र
१ अभक्तार्थदास
=
दिवसचरिम-पच्चक्खाण-सुतं
२४४. विसरिमं पच्चक्खामि चविहं पि आहारं असणं, २४४ दिवस नरिम का व्रत ग्रहण करता हू, अशन, पान, खादिम और स्वादिम चारों आहार का त्याग करता हूँ ।
पाणं, खाइमं साइमं ।
भोगे
उपवास प्रत्याख्यान सूत्र - आहार २४३. सूर्योदय से उपवास तप ग्रहण करता हूं, अशन, पान, खादिम, और स्वादिम चारों ही आहार का त्याग करता हूँ । (२) सहसाकार, (४) महत्तराकार,
(२) सत्यवाकार इन पांच आगारों के शिवान
(१) बनाभोग,
(२) सहसरकार (४) सर्व समाधियक्षतर
(३) महतराकार, इन चार आगारों के सिवाय सब प्रकार के आहार का स्थान करता हूँ । भवचरिम प्रत्याख्यान सूत्र -
नवचरिम-परचक्खाण-मुस्त
२४५. चरिमं पञ्चकखामि पि आहार करता हूँ, अशन, पान, खादिम और पाणाम साह
स्वादि चारों आहार का त्याग करता हूँ ।
-
- आव. अ. ६, सु. १०२ सब प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ ।
दिवसचरिम प्रत्याख्यान सूत्र
२.
सागारे
३. सब्वस माहित्तियागारेणं,
-
(१) अनाभोग,
(३) परिष्ठापनिकाकार,
सूत्र २४३-२४६
. ६ सु. १०३ (१)
(१) अनाभोग,
(२) सहसाकार
(२) महत्तराकार,
(४) सर्व समादित्यागार,
इन चार आगारों के सिवाय सब प्रकार के आहार का त्याग करता हूँ ।
अभिग्गह-पञ्चवाणं गुस्तं-
अभिग्रह प्रत्याख्यान सूत्र
२४९. अहं पञ्चस्यामि चउध्विहं पि आहारं असणं २४६. अभिग्रह ग्रहण करता हूँ, अशन, पान, खादिम, और पाणं, साइमं साइमं । स्वादिम चारों ही आहार का त्याग करता हूँ ।
२. सारे
४. सत्यसमाहिपतियागः रे
- आय. अ. ६, सु. १०३ (२)
नहीं भक्त आहार का अर्थ
प्रयोजन
तीनों का सम्पूर्ण अर्थ यह होता है कि भक्त का प्रयोजन नहीं है जिस व्रत में वह 'उपवास' है। सूर्योदय से दूसरे दिन सूर्योदय तक चारों बहार का त्याग करना उपवास तप है । पानी के आधार से उपवास करना हो तो प्रत्याख्यान सूत्र में "उब्विहं पि आहार" के स्थान पर "तिविहं पि आहारं" ऐसा पाठ महना चाहिए।
२ यह चरम प्रत्याख्यान सूत्र है। "चरम" का अर्थ "अन्तिम भाग" है। वह दो प्रकार का है - दिवस का अन्तिम भाग और भव अर्थात् आयु का अन्तिम भाग | सूर्य अस्त होने से पहले ही दूसरे दिन सूर्योदय तक साधु को चारों आहार का त्याग करना और गृहस्थ को चारों अथवा तीनों आहारों का त्याग करना "दिवस चरम " प्रत्याख्यान है ।
३ 'भवचरम' प्रत्याख्यान का अर्थ है जब साघु को यह निश्चय हो जाय कि आयु थोड़ी ही शेष है तो यावज्जीवन के लिए चारों या तीनों आहारों का त्याग कर दे और संयारा ग्रहण करके संयम की आराधना करे भवचरम का प्रत्याख्यान जीवन भर का संयम साधना का उज्ज्वल प्रतीक है। भव चरम चउविहार या तिविहाहार दोनों प्रकार से होते हैं
४] गवेषणा के सामान्य नियमों के सिवाय अन्य व्यक्ति, वस्तु और वर्ण आदि के संकेतों से युक्त भिक्षा ग्रहण करने के लिए नियम करना 'अभिग्रह' तप होता है। संकल्प निश्चित करने के बाद उक्त पाठ से प्रत्याख्यान किया जाता है। अभिग्रह पूर्ण होने पर ही आहार ग्रहण किया जाता है एवं अभिग्रह पूर्ति के पूर्व अभिग्रह विषयक संकल्प प्रकट नहीं किया जाता है ।