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________________ सूत्र २३६-२४२ एकाशन प्रत्याख्यान सूत्र संस्मी जीवन [er १. अन्नपणा मोगेणं, २. सहसागारेणं, ३. पच्छन्नकालेणं, (१) अनाभोग, (२) सहसाकार, (३) प्रच्छनकाल, ४. दिसामोहेणं, ५. साहषयणेणं, ६. महसरागारेणं, (४) दिशामोह, (५) सरधुवचन, (९) महत्तराकार, ७. सम्बसमाहियत्तियागारेणं योसिरामि । (७) सर्वसमाधिप्रत्ययागार। इन सात आगारों के सिवाय -आव. अ. ६. सु६८ पूर्णतया चारों आहारों का त्याग करता हूँ। एगासण पच्चक्खाण-सुत्तं-- एकाशन प्रत्याख्यान सूत्र२४०. एगासण पाचक्खामि तिविहं पिाहारं असणं, खाइम, २४०. एकाशन तप स्वीकार करता हूँ', अशन, खादिम, स्वादिम, साइम, इन तीनों प्रकार के आहारों का प्रत्याख्यान करता हूँ। १ अन्नस्याणाभोगेणं, २. सहसागारेणं, (१) मनाभोग, (२) सहसागार, ३. सांगारियागारेगं, ४. आउंटण-पसारणेणं, (३) सागारिकाकार, (४) आकुंचनप्रसारण, ५. गुरु-अगट्टाणेणं, ६. पारिद्वावणियागारेणं, (५) गुर्दावन पारिष्टापनिकाकार, ७. महत्सरागारेणं, ८. सध्यसमाहिवत्तियागारेणं, (७) महत्तराकार, () सर्व-समाधिप्रत्ययाकार, बोसिरामि। -आव. अ. ६, सु. ६ इन आठ आगारों के सिवाय पूर्णतया तीनों माहारों का त्याग करता हूँ। एगट्ठाण पश्चक्खाण-सुतं एकस्थान प्रत्याख्यान सूत्र२४१. एक्कासन एगट्ठाणं पञ्चपखामि, परिवह पि आहारं असणं, २४१. एकाशन रूप एकस्थान ग्रहण करता हूँ', बशन, पान, . पाणं, खाइम, साइमं । खादिम और स्वादिम इन चारों प्रकार के माहारों का प्रत्यासयान करता हूँ। १. अन्नस्थाणामोगेणं, २. सहसागारेणं, (१) अनाभोग, (२) सहसाकार, ३. सागारियागारेणं, ४. गुरुआमुट्ठाणेणं, (३) सागारिकाकार, (४) गुर्बभ्युत्थान, ५. पारिद्वाषणिपागारे, ६. महत्तरागारेणं, (३) पारिष्टापनिकाकार, (६) महत्तराकार, ७. सम्बसमाहित्तियागारेणं वोसिरामि। (७) सर्वसमाधि-प्रत्ययाकार, इन सात आगारों के सिवाय -आव. अ. ६, सु. १०० पूर्णतया चारों आहारों का त्याग करता है। आयंबिल-परचक्खाण-सुतं आयंबिल प्रत्याख्यान सूत्र२४२. आयंबिल पच्चस्लामि' तिविहं पि आहार असणं, खाइम, २४२. आयंबिल तप स्वीकार करता हू', अशन, खादिम, साइमं । स्त्रादिम इन तीनों आहारों का त्याग करता हूँ। १. अन्नस्थाणाभोगेणं, २. सहसागारेणं, (१) अनामोग, (२) सहसाकार, ३. सेवालेवेणं, ४. उक्वित्तविवेगे, (३) लेपालेप, (४) उत्क्षिप्त विवेक, ५. गिहत्य संसट्ठग, ६. पारिवावगियागारेणं. (५) गृहस्थसंसृष्ट, (६) पारिष्ठापनिकाकार, ७. महत्तरागारेणं, ६. सव्वसमाहित्तियागारेणं, (७) महत्तराकार, (८) सर्वसमाधिप्रत्ययाकार, बोसिरामि। -आव. अ. ६, सु.१०१ इन आठ आगारों के अतिरिक्त तीनों आहार का त्याग करता हूँ। १ पौरुषी या पूर्वार्ड के बाद दिन में एक बार भोजन करना उसके बाद तीनों आहारों का त्याग करना 'एकाशन' तप होता है। एकाशन का अर्थ है-एक अशन अर्थात् दिन में एक बार भोजन करना अथवा एक आसन से भोजन करना। १ दिन में एक बार एक ही बासन से भोजन एवं पानी ग्रहण करना उसके बाद चारों आहार का त्याग करना 'एक स्थान एगलवाण तप होता है। १ दिन में एक बार, रूमा, नीरस एवं विगय रहित एक आहार ही ग्रहण करना और उसके बाद तीन आहार का त्याग करना 'पायबिल' तप कहा जाता है । दूध, दही, घी, तेल, गुड़, शक्कर और पक्वान आदि किसी भी प्रकार का स्वादु भोजन आयंबिल व्रत में ग्रहण नहीं किया जा सकता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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