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________________ सूत्र २३१-२३२ निनन्य धर्मातिचार शुद्धि मूत्र संयमी जीवन [६१ इक्क वीसाए सबलेहि इक्कीस शबल दोषों के सेवन से, मावीसाए परीसहेहि बाईस परीष महन न करने से, तेवीसाए सूपगड जमायणेहि सूत्रकृमांग मूत्र के तेईस अध्ययनों में प्ररूपित आचरण न करने में चउव्वीसाए वेवेहि चौबीस देवों की अवहेलना करने से, पणवीसाए मावणाहि. पाँच महाबतों की परचीस भावनानुसार आचरण न करने से, छब्बीसाए साकप्पक्वहाराणं उद्दसणकालेहि दशा-श्रुतस्वन्ध, बृहत्कल्प और व्यवहार-रक्त सूर त्रयी के छब्बीस उद्देशन कालों में प्रतिपादित विधि-निषेधों का आचरण न करने से, सत्तावीसाए अणगारगुणेहि सत्ताईम साधु के गुणों को पूर्णत: धारण न करने से, अट्ठावीसाए आयारपकहि.' आचार-प्रकल्प =आचारांग तथा निशीथ सूत्र के अट्ठाईस अध्ययनों में प्रतिपादित विधि-निषेधों का माचरण न करने से. एगणतोसाए पावसुपपसंगेहि, उन्तीस पाप-श्रुतों का प्रयोग करने से, तीसाए मौहणीयट्ठाणेहि, महामोहनीय कर्म के तीस स्थानों के सेवन करने से, एगतीसाए सिद्धाइगुणेहि11 गिद्धों के इकत्तीस गुणों की उचित श्रद्धा प्ररूपणा न करने से, बत्तीसाए जोगसंगहेहि बत्तीस योग संग्रहों का यथार्थ आचरण न करने से, तेत्तीसाए आसायणाहि, तेतीस आशातनाओं के करने से, जो मे वेवसिओ अदयारो को सस्स मिच्छामि तुस्कर । जो मुझे दिवस सम्बन्धी अतिचार दोष लगा हो उसका मेरा -आव. . ४, सु. २०-२६ पाप निष्फल हो। जिग्गंध धम्माइयार विसोहि सुतं निग्रंथ धर्मातिचार शुद्धि सूत्र२३१. ममो पजवीसाए तिस्पयराणं उसमाए-महावीरपज्जव- २३२. भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर पर्यन्त साणा। चौबीस तीर्थकर देवों को नमस्कार करता हूँ। पणमेव निग्ग पाययण यह निर्ग्रन्थ प्रवचन, समचं, अणुसरं, फेवलियं, परिपुण्णं, नेआउयं, संसुयं, सत्य है, सर्वोत्तम है, केवलज्ञानियों से प्ररूपित है, मोक्ष सल्लकातणं, सिद्धिमागं, मुत्तिमार्ग, निज्जाणमार्ग, निव्याण- प्राप्त कराने वाले गुणों से परिपूर्ण है, मोक्ष पहुँचाने वाला है या माग, अवितहमविसंधि, सव्वक्सप्पहोणमगं । न्याय से अबाधित है. पूर्ण शुद्ध है, माया आदि शल्यों को नष्ट करने वाला है, सिद्धि की प्राप्ति का उपाय है, मुक्ति का साधन है, मोक्ष स्थान का मार्ग है, पूर्ण शान्ति रूप निर्वाण का मार्ग है, असत्य नहीं है यथार्थ है, विच्छेद रहित है अथवा पूर्वापर विरोध से रहित है, सब दुःखों को पूर्णतया क्षय करने का मार्ग है। १ (क) ठाणं. अ. १०, सु. ७५५ (ख) सम. सम. २१, सु. १ (ग) अनाचार २ (क) सम. सम. २२, मु.१ (ख) वीर्याचार (ग) उत्त. १.२ ३ सम. सम. २३, सु.१ ४ सम. सम. २४, सु. १ ५ (क) सम. सम. २५, सु. १ (ख) गाँच महाव्रत ६ सम. सम. २६, सु.१ ७ (क) सम. सम, २७, सु. १ (ख) संयमी जीवन ८ सम, सभ. २८, सु. १ ६ सम. सम. २६, सु. १ १० (क) ठाणं. अ. १०,सु. ७५५ (ख) सम, मम. ३०, सु. १ (ग) अनाचार ११ सम, सम. ३१, गु. १ १२ (क) सम. सम. ३२, सु. १ (ख) संयमी जीवन १३ (क) सम, सम. ३३, सु. १ () সালাৰাৰ (ग) दशा. द.३
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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