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________________ २३१ १ २ ३ ४ (१) आहारसाए (१) मे. (३) पविमामि च (२) मय सण्णाए, (४) परिमाणाए 12 विकलाहिं (३) सका (४)-- (१) अणं शाणेणं, (३) धम्मेणं आणेणं, (१) मा (1) WER (४) रामकहा। किरियाह (२) द्दणं (४) सुक्केणं शा तेतीस प्रकार के स्थानों का प्रतिक्रमण सूत्र (१) काडया (४) पारितानिया (२) मा हि कामगुणेहि (२) अहिरवा (३) बालोसियाए (५) पाणावारियाए ।* (१) सद्द ेणं. (२) हवेणं, (३) गंधेणं, (४) रसेणं. (५) फासेणं । (२) पंचमिवहि (१) पाणावायाओ बेरम (२) मुसाबायाओ वेरमणं, (३) अविण्णावाणाओ वेरमणं, (४) मेहुणाओ बेरमणं, (२) परिमाणं ।" (४) माथि हि समिि (१) इरियासमिईए (२) भासामईए (३) एसणासमिईए (४) आपागमंडल निश्वेवासमिईए. परिहाणिया (५) उपचार-पा समिए (१) पडिवकमामि छह जीवनिकाएहि सम सम ४, सु. १ (क) वर्ण. अ. ४, उ. २, सु. २८२ (क) ठाणं. अ. ४, उ. १, सु. २४७ सम. सम. ५, सु. १ ५ (क) ठाणं. अ. ५, उ. १, सु. ३६० ६ (क) ठाणं. अ. ५, उ. १, सु. ३५६ (१) पुढविकाएणं, (२) आउकाएणं (३) लेखकाएणं, (४) वाकारणं. (५) अगस्लहकारण, (६) तसा एवं ।" ७ ८ (क) ठाणं. भ. ६, सु. ४५० (क) ठाणं. म. ५, उ. २, सु. ४५७ (१) आहार संशा, (२) भय वंशा (४) परिसंज्ञा । (३) मैथून संज्ञा, (३) चार विकथाओं के द्वारा जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूं (१) स्त्री कथा, (२) भक्त कथा, (३) देश कथा, (४) राज कथा | (४) चार ध्यानों में से दो के करने पर और दो के न करने पर जो भी अतिचार लगा हो तो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ(१) मा ध्यान, (२) रो (४) शुक्ल ध्यान | (३) धर्म ध्यान, (१) पांच त्रियामों के द्वारा जो भी अतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ (१) कायिकी (२) अधिकरी, (२) चिकी, (४) पारितानिकी ( ५ ) प्राणातिपात क्रिया । (२) पाँच काम गुर्जो के द्वारा जो भी अतिचारला हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ -- (२) रूप, संयमी जीवन (३) ना (४) रस (५) स्पर्श । (३) पाँच महाव्रतों का सम्यक् रूप से पालन न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ -- (१) सर्व प्राणातिपात विरमण, (२) सर्वं मृषावाद - विरमण, (२) सर्व भादानविरमण (४) सर्व मैथुन- विरमण, (५) सर्व परिग्रह-विरमण । (४) पाँच समितियों का सम्यक् पालन न करने से जो भी अतिचार लगा हो, उसका प्रतिक्रमण करता हूँ (१) ईर्ष्या समिति, (२) भाषा समिति, (३) समिति (४) वादान-निक्षेपणमिति, (५) उच्चार-प्रस्रवण श्लेष्म जल्ल- सिंघाण पारिष्ठापनिका समिति (ख) सम. सम. ४, सु. १ (ख) सम सम ४, सु. १ (१) छह प्रकार के जीवनकायों की हिंसा करने से जो भी अतिचार लगा हो उसका प्रतिक्रमण करता हूँ(१) पृथ्वीकाय, (२) अप्काय, (३) तेजस्काम, (४) वायुकाय, (५) वनस्पतिकाय, (६) सकाय । (ख) सम सम. ५, सु. १ * (ख) सम सम ५, सु. १ [ce ब) सम, राम (ख) सम. सम ५ सु. १ t ६, सु. १ (ग) तपाचार
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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