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________________ सूत्र २१६ चार प्रकार के आवश्यक संयमो जीवन [१ वस्थमाइयाई दवावस्सयाई करेत्ता ततो पच्छा राय- संवार कर, धूप, पुष्प, माला, सुगन्ध, पान वस्त्र आदि द्रव्य कुसंवा, देवकुलं वा, आराम वा, उज्जाणं वा, समं आवश्यक करके राजकुल में, देवकुल में, आराम, उद्यान, सभा वा, पर्व या गच्छति । में तं लोइयं दब्वावरसयं । या क्रीडास्थल पर जाते हैं । यह लौकिक व्यावश्यक है। १०-से कि तं कुम्पावणिय दवावस्मयं ? H०-कुप्रावनिक द्रव्यावश्यक क्या है ? उ०-कुष्पावयोगय दवावस्सयं--जे इमे चरण-चौरिग-धम्म- उ.-कुप्रावनिक व्यावश्यक जो ये पिदण्डी, फटे खंजिय - भिन्छुलग-पंचरंग-गोत्तम-गोन्बतिय-गिहिधम्म पुरान वस्त्र पहनने वाले, भिक्षुक, चर्म घारी, भिकारी, वैनयिक धम्मचितग-अविवाविरुद्ध-बुद्ध-सावगप्पधितयो पास- भिक्षु गौतम गोत्रीय गोत्रतिक, अनिरुद्ध धर्म चिंतक अविरुद्ध वृद्ध डत्या कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए-जान-तेयसा जलते श्रावक ब्राह्मण वतधारी-प्रातःकालीन प्रभायुक्त प्रभात में-यावत्इंवस्स वा, खंबस्स वा, रहस्स बा, सिवस्स या, बेस- सूर्योदय होने पर इन्द्र, स्कन्द, रुद्र, शिव, वैश्रमण, देव, नाग, यक्ष, मणस्स बा, देवस्स बा, नामस्स वा, जस्लम्स बा, भूत, मुबंद, पार्वती या दुर्गादेवी के चन्दन का लेपन, मार्जन, मूयस्स वा, मुनस्ल था, अजाए वा, को? किरियाए सिंचन, धूप, पुष्प, गन्ध, माल्य आदि ध्यावश्यक करते हैं। या उबलेवण-सम्मज्जणावारिसण-धून-पुष्फ गंघभल्लाइयाई दवावस्सयाई करेंति । से तं कुणावयणि दव्यावस्मयं । यह कुप्रावनिक व्यावश्यक हुआ । 40 से कि तं लोगुत्तरियं यम्वावस्सयं? प्र०-लोकोत्तरिक द्रच्यावश्यक क्या है? जल-लोगुत्तरियं दावस्स-जे हमे समणगुणमुक्कजोगो 3.- लोकोत्तरिक तव्यावश्यक- जो ये भ्रमण के गुणों से छक्कायनिरणुकंपा हया दव उद्दामा, गया इष रहिरा प्रवृत्ति वाले, छः काय पर अनुकम्पा न करने वाले, अश्य निरंकुसा, घट्ठा, मट्ठा, तुप्पोट्ठा, पंडरपउपाउरणा, के गमान स्वच्छन्द, निरंकुश गज के समान, पित-म्रश्चित जियाण अणाणाए सच्छंद विहरिऊणं उमसोकालं शरीर वाले, चूत से सिग्ध ओष्ठ नाले, धूले स्वच्छ वस्त्र धारण आवस्सगस्स उषदेति । सेतं लोगुनरियं दबा- करने वाले, जिग्गाज्ञा से विपरीत स्वच्छन्द विचरण कर उभयबस्सयं । से तं जाणगसरीर भवियसरीर बारितं काल आवश्यक करते है। यह लोकोत्तरिक व्यावश्यक इमा। दबावस्मयं । सेत नोआगमओ दच्यावस्सयं । सेनं मह जायकशरीर भव्यशरीर व्यतिरित व्यावश्यक हुआ । दवावम्सयं। यह नोखागम से ब्यावश्यक हुआ। यह द्रष्यावश्यक हुआ। ५०-से कितं भावावस्सय? प्र०-भाव आवश्यक क्या है? उ.-भावावस्सयं विहं पण्णसं-तं जहा .. .-भाव आवश्यक दो प्रकार का कहा गया है, यथा - (१) आगमतो य, (२) नोयागमतो य । (१) आगम से, (२) नोआगम से । ५०-से कि त आयमातो भावावस्स? प्र.-आमम से भावावश्यक क्या है? उ.-आगमतो भावावस्मयं-जाणए उपउत्ते 1 से त आर- उ०-जो जानकार है और उपयोग युक्त है बह आगम से मतो भावावस्मयं । भावावश्यक है । यह आगम से भावावश्यक हुआ। पत-से किं तं नोआगमतो भावावस्सयं? प्र०-नोआगम से भावावश्यक क्या है? उ.-नोआगमतो भावावस्सयं तिविहं पण्णते, तं जहा- 3०-नोआगम से भावावश्यक तीन प्रकार का है, यथा(१) लोइय, (२) कुप्पावणियं, (१) लौकिक, (२) कुप्रावनिक, (३) लोगुत्तरियं । (३) लोकोत्तरिक । प०-से कितं लोइयं भावावस्सय? प्र० - लौकिक भावावश्यक क्या है? उ.-लोइयं भावावस्सयं-पुतण्हे भारहं, अबरण्हे रामा- उ०-लोकिक भावावश्यक पूर्वाण्ट (प्रातःकाल से मध्यांर यणं से तं लोइयं भावानस्सयं । तक) में महाभारत का पारायण, अपराह (मध्यान्ह के बाद सार्यकाल तक) में रामायण का पारायण। यह लौकिक भाषा वश्यक हुआ। १०-से कि त कुप्पावणियं भावावस्सय? प्र-कुशावनिक भारावश्यक क्या है?
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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