SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 160
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परणानुयोग-२ सर्वत्र आचार्यावि की आज्ञा से जाना, बिना आज्ञा के नहीं जाना सूत्र १८०-१२ वर्षावास आहार समाचारी-३ सम्वत्थ आयरियाईण आणाए गमणं अणाणाए अगमणं- सर्वत्र आचार्यादि की आज्ञा से जाना, बिना आज्ञा के नहीं जाना१८०. वासावासं पज्जोसबिए भिक्खू इच्छिज्जा गाहावहकुलं १८०. वर्षावास रहा हुआ भिक्षु ग्रहस्था के घरों में भन-पान भताए वा. पाणाए वा, निक्खमिलाए वा, पविसित्तए पा। के लिए निजमण और प्रवेश करना चाहे तोनो से कप्पइ अणापुच्छित्ता, (१) आयरियं वा, (२) उवज्झायं वा, (३) थेरं वा, (१) आचार्य, (२) उपाध्याय, (३) स्थविर (४) पवत्तयं दा. (५) गणि वा. (६) गणहरं वा, (४) प्रवर्तकः, (५) गणित (5) रणधर या (७) गणावन्छअयं वा, जं च वा पुरओ का विहरह। (७) गणावच्छेदक अथवा जिसको अग्रणी मानकर वह विचार रहा हो, उन्हें पूछे बिना आना-जाना नहीं कलाना है। कम्पह से आपुरिछउं-आयरियं वा-नाव गणावच्छेअयं वा, जं किन्तु आचार्य यावत्-गणावच्छेदक अथवा जिराको च वा पुरओ का विहरह अग्रणी मानकर वह विचर रहा हो उन्हें पूछकर ही आना-जाना कल्पता है। (आज्ञा लेने के लिए भिम प्रकार कहे-) "इच्छामि ण मते ! तुभेहि अन्नणुण्णाए समाणे गाहावइ- "हे भगवन ! आपको आपकी आज्ञा मिलने पर गृहस्थों के कूतं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए घरों में भक्ता-पान के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना चाहता हूँ।" वा ?" ते य ते वियरेज्जा, एवं से कप्पा गाहायइफुलं भत्ताए वा, यदि आवार्यादि आया दे तो गृहस्थों के घरों में भक्तान पाणाए वा, निक्वमित्तए वा. पबिसिलए वा। के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना कल्पना है। ते ये से नो वियरेज्जा, एवं से नो करपट गाहावाकुलं यदि आचार्यादि आज्ञा न दें तो गृहस्थों के घरों में भक्तपान भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा। के लिए निष्क्रमण-प्रवेश करना नहीं पता है। प०-से किमाहू भंते ! प्र.--हे भगवन् ! ऐसा क्यों कहा? उ.-आरिया पच्चवायं जाणंति । उ.-आचार्यादि आने वाली विघ्न बाधाओं को जानने है । एवं विहारभूमि बा, थियार भूमि का, अन्न या किवि इसी प्रकार स्वाध्याय भूमि और णांचभूमि या अन्य भी गओअणं, एवं गामाणु गार्म दुइग्जित्तए । किसी प्रयोजन के लिए उक्त आनार्मादि को आज्ञा लेकर ही -दसा. द. ८, गु. ५१-६१ आना-जाना कल्पता है। इसी प्रकार ग्रामानुगाम जाने के लिए भी उक्त आचार्यादि की आज्ञा लेकर जाना-बाना कल्पता है । भिक्खायरियाए गमण जोग्गखेत मिक्षाचर्या के लिए जाने योग्य क्षेत्र१८१. वासावासं पज्जासचियाण कम्पह निग्गंथाण वा, निग्गयोण १५१. वर्षावास रहने वाले निर्ग्रन्व-नियंन्थियों को एक कोय वा सम्बओ समता सकोस जोधणं भिक्खायरियाए गतं पडि- सहित एक योजन' क्षेत्र में चारों और भिक्षा नर्या के लिए जाना नियत्तए। -दसा. द. ८, सु. ६ एवं लौटकर आना कल्पना है । भिक्खारिया दिसंकहिता भिक्खागमण बिहाणं- भिक्षाचर्या की दिशा वाहकर भिक्षार्थ जाने का विधान ... १८२. वासावासं पज्जोसचियाणं नियंयाण चा, निग्गंथीण वा १८२, वर्षावास रहे हए नियन्थ-निर्ग्रन्थियों को किसी एक दिशा कप्पई अण्णरि विसं वा अणुदिसं वा अवगिज्झिय भत्तपाण या विदिशा का निश्चय करके आहार पानी की गवेषणा करना गवेसित्तए। कल्पता है। १०-से किमाह भते! १०- हे भगवन् ! आपने ऐसा क्यों कहा? उ.-उस्सणणं समणा भगवंतो मासासु सवसंपत्ता भवति । उ-वर्षाकाल में श्रमण भगवन्त प्रायः तपश्चर्या करते रहते हैं।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy