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________________ मरणानुयोग २ पढम पोरिसो समायारी १२६.मम्मा परिनेहिला भण्ड गुरु वन्दित्तु सभायं कुज्जा बुक्खमि ॥ - पहिलेमा बिही १५७. मुहपोतियं पडिलेहिता, पडिले हिज्ज गोच्छ । ओ बत्या पडिलेहए || पोरिसीए उन्माए बन्धिमाण तओ गुरु । अपविकमिला कालम भाषणं पहिए ॥ उत्त. अ. २६, ग. २१-२२ करे । 1 उचिरं अतुरियं पुख् ता मत्यमेव पहिले सोहित व पुणो ॥ अनादियं बलिय रिमा नव खोडा, प्रथम final को समाधारी पहिणा दोसाई१५. (१) र (२) सम्म पाणीपाणविसरेहणं ॥ — उत्त. अ. २६ गा. २३-२५ वज्जेयाय मोसली (३) नइया | परफोरणा (४) चस्थी, (५) बेवा (1) छट्टा (७) पसिडिल (८) पल (१) सोला (१०) एगामोसा (११) अगलवधुणा । (१२) पार्थ संकिए गणणोगं (१३) कुज्जा ।। - उत्स. अ. २६, गा. २६-२७ ww.w प्रथम पौरुषी को समाचारी १५६. दिन के प्रथम प्रहर के प्रथम प्रति को स्वाध्याय करे । सूत्र १५१-११० प्रतिलेखना को विधि wwwwwww पौन पौरुषी बीत जाने पर गुरु को बन्दना करके स्वाध्याय काल का प्रतिक्रमण कायोत्सगं किए बिना ही पात्र की प्रतिलेखना चतुर्थ भाग में उपकरणों का दुःख से मुक्त करने वाला १५७. मुखका को प्रतिलेखना कर गोच्छग की प्रतिलेखना करे और गोच्छ को अंगुलियों से पकड़कर वस्त्रों की प्रतिलेखना करे । प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊंचा रखे, स्थिर रखे और शीघ्रता किए बिना उसकी प्रतिलेखना करे। दूसरे में वस्त्र को झटकाए और तीसरे में वस्त्र को प्रमार्जना करे । प्रतिलेखना करते समय - १. वस्त्र या शरीर को न नचाए, २. वस्त्र कहीं मुड़ा हुआ न रहे, ३. वस्त्र पर निरन्तर उपयोग रखे, ४. भीत आदि से वस्त्र का स्पर्श न करे, ५. वस्त्र के छह पूर्व और नौ वोट करे और ६. जो कोई भी हो उसको हाथों पर लेकर वो करे। प्रतिलेखना के दोष - १५८. (१) आरमदा--उतावल से प्रतिलेखना करना । (२) सम्मर्दा उपधि पर बैठकर प्रतिलेखना करना । (३) मोसली — प्रतिलेखन करते समय वस्त्र को ऊपर, नीचे, तिरछे दिवाल आदि से संघट्टित करना । (४) प्रस्फोटना -- अयतना से वस्त्र को झटकना (५) विक्षिप्त प्रति अतिथि वस्त्रों को एक साथ रखना । (६) बेदिका विपरीत आसन से बैठकर प्रतिलेखना करना । (७) प्रशिथिल - वस्त्र को ढीला पकड़ना । (८) प्रलम्ब वस्त्र की प्रतिलेखना दूर से करना । (१) लोल - प्रतिलेख्यमान वस्त्र का भूमि से संघर्ष करना (१०) एकामशा - एक दृष्टि में ही समूचे वस्त्र को देख लेना । (११) अनेक रूप धूनना--वस्त्र को अनेक बार झटकाना । (१२) प्रमाण-प्रमाद प्रस्फोटन प्रमार्जन का जो प्रमाण बताया है उसमें प्रमाद करना । (१३) गणनोपगणना प्रस्फोटन और प्रमार्जन के निर्दिष्ट प्रमाण में शंका होने पर उसकी गिनती करना ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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