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________________ सूत्र १३५-१३६ धर्माराधना का फल संयमी जीवन [५३ चउम्मासपरियाए समणे निग्गंधे नक्षत्ततासस्वाणं चार मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण- मिल ग्रहगणजोतिसियाण देवाणं तेयलेस्सं श्रीयीवति । नक्षष तारारूप ज्योतिष्क देयों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करना है। पंचमासपरिवाए समणे निम्गथे चंदिमरियाणं पांच मारा की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्य ज्योतिष्कन्द्र जोतिसियाण जोतिसर ई. ससस वीवा म.विकराल ६५ और सूर्य की तेजोलश्या का अतिक्रमण करता है। छम्मासपरियाए समणे निम्मये सोहम्मीसागाणं देवाणं छह मास की दीक्षा-पर्याय बाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सौधर्म और तेयलेसं बोयोवति । ईशानवल्पनासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। सत्तमासपरियाए समणे निग्गंधे सणंकुमार माहिकाणं सात माम की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सनत्कुमार देवाणं तेयलेस्स वीयीवति । और माहे.द्र देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। अट्रमासपरियाए बंभलोग-संतगाणं वेवाणं तेयलेस्सं आठ मास की दीक्षा-पर्याय वाला थमण-निर्गन्य ब्रह्मलोक वोयीवपति । और लान्तक देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। नवमासपरियाए समणे निगंथे महासुक्क-सहस्साराणं नौ मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महाशुक्र और देवाण तेयनेस्स बीयोवति । सहस्रार देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। दसमासपरियार समणे निम्मंये आणय-पाणय-आरण- दस मास की दीक्षा पर्याय वाला श्रमण-निग्रन्थ आनत, अच्चुयाणं देवाणं तेयलेस्सं बोयीययति । प्राणत, आरण और अच्युत देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। एमकारसमासपरियाए समणे निग्गये गेबेज्जगाणं म्यारह मास की दीक्षा-पर्याय वाला थमण-निन्, बेयक देवाणं तेयलेस्स चोयीपयति । देवों की तेजोलेधया का अतिक्रमण करता है। बारसमासपरियाए समणे निग्गंधे अणुत्तरोपवातियाणं बारह मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण निन्थ अनुत्तरोदेवाणं तेयलेस्स वीतोषयति । पपातिक देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। तेणं पर सुक्के सुक्काभिजातिए भविता ततो पच्छा इसके बाद शुक्ल एवं परम शुक्ल होकर फिर वह सिद्ध सिमति-जाव-अंतं करेति । होता है,-यावत्-समस्त दु:खों का अन्त करता है। -विया. स. १४. उ. ६. सु. १७ धम्मराहणाए परिणामो धर्माराधना का फल१३६. अणागयमपस्संता, पच्चप्पलगयेसगा। १३६. भविष्य में होने वाले दुःख को न देखते हुए जो लोग ते पच्छा परितप्पंति, खोणे आइम्मि जोग्यणे ।। वर्तमान सुख के अन्वेषण में रत रहते हैं वे बाद में आयु और युवावस्था क्षीण होने पर पश्चात्ताप करते हैं । जेहि काल परक्कत, न पच्छा परितप्पए। जिन पुरुषों ने धर्मोपार्जन के समय पर ही धर्माचरण में ते धीरा बंधणुमुक्का नायकंखति जीवियं । पराक्रम किया है, वे पीछे पश्चात्ताप नहीं करते। वे धीर पुरुष -सूय. सु १, अ. ३, उ.४, गा. १४-१५ बन्धनों से उन्मुक्त होकर असंयमी जीवन की आकांक्षा नही करते हैं। तिहि ठाणेहि संपणे अणगारे तीन स्थानों से सम्पन्न अनगार अनादि अनन्त अतिविस्तीर्ण १. अणावीय, २. अणवदग्गं, ३. दोहमद। भातुर्गतिक मंसार कातार से पार हो जाता है-(१) अनिदानता पाउरत संसारकतार वोईवएज्जा, जहा --भोग प्राप्ति के लिए संकल्प नहीं करने से, (२) दृष्टि सम्पन्नता १. अणिवाणयाए, २. विद्विसंपग्णयाए ३. जोगवाहियाए। -सम्यग् दृष्टि से, (३) योगवाहिता-योग का वहन करने या -ठाणं. अ. ३, उ. १, सु. १४४ समाधिस्थ रहने से।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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