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परणानुयोग-२
सामायिक का फल
सूत्र १३४-१३५
सामाइय फलं
सामायिक का फल१३४. प.-सामाइएणं भंते ! जीये किजणयह?
१३४. प्र-मन्ते ! सामायिक की आराधना से जीन क्या
प्राप्त करता है? 30-सामाइएणं सावजजोगविरई जणयह ।
उ०-सामायिक से वह योगों को गारद्य प्रवृत्ति से पिरति
--उत्त. अ. २९, सु.१० को प्राप्त होता है। संजमाराहणाए फलं
संयम की आराधना का फल१३५. दुरुकराई करेत्ताणं, दुस्सहाई सहेत्तु य ।
१३५. दुष्कर आचार का पालन करते हुए और दुःमह परीषहीं के इत्थ देवलोएसु, केई सिम्मति नीरया ।।
को सहते हुए उन निर्बन्धों में से कई देवलोक में जाते हैं और
कई कर्म रहित होकर सिद्ध होते हैं। खवित्ता पुम्बकम्माई संजमेण तवेण य।
काय के रक्षक मुनि संयम और तप द्वारा पूर्व संचित सिसिमागमणुप्पत्ता ताइको परिनिथ्थु ।
कमों का क्षय करके सिद्धि मार्ग को प्राप्त कर मुक्त हो जाते हैं। __ --दस. ब. ३. गा. १४-१५ ।। सर्वति अप्पाणममोहबसिगो, तवे रया संजम अज्जवे गुगे। अमोघदशी, तप, संयम और ऋजुता आदि गुणों में रत पंति पाबाई पुरेकडाई, नवाई पावार न ते करेंति ॥ मुनि अपने प्रारीर को कृश कर देते हैं। वे पुराफुत पाप कमो
का नाश करते हैं और नए पाप कर्म नहीं करते हैं। सोवसंता अममा अकिंत्रणा,
सदा उपशान्त, ममता-रहित, अकिंचन, आत्म-विद्यायुक्त, तविज्जविज्जाणुगया जसंसिणो। यशस्वी और काया के रक्षक मुनि शरद ऋतु के चन्द्रमा की उउम्पसन्ने थिमले व विमा,
तरह निर्मल होकर मुक्त हो जाते हैं या वैमानिक देवों में उत्पन्न सिद्धि विमागाई उति ताहगो होते हैं।
—वस. अ, ६, गा. ६७-६८ एते ओथं तरिस्संति, समुई य ववहारिणो ।
जिरा संसार समुद्र में पड़े हुए प्राणी अपने कर्मों से पीड़ित जत्य पाणा विसष्णासी, किन्ती सयकम्मुणा ॥ होते हैं उम संसार को मुनि उसी तरह पार कर लेते हैं जिस
तरह कि व्यापारी समुद्र को पार कर लेते हैं । तं च भिक्खू परिणाय, सुय्वते समिते चरे।
संयम व परीपहों को स्वरूप को जानकर भिक्षु महायतों का मुसावायं च बजेम्जा, अदिखणादाणं च बोसिरे।
सम्वग् रूप से पालन करे । असत्य भाषण का पूर्ण रूप से बर्जन
करे तथा अदन ग्रहण आदि का भी पूर्ण त्याग करे । उढमहे तिरिय बा, जे केई तस-थावरा ।
ऊपर नीचे तिरछे लोक में जो कोई भी त्रस स्थावर प्राणी सम्वत्थ विरति कुज्जा, संति निय्याणमाहितं ।। है उनकी हिंसा से पूर्ण निवृत्त रहे। ऐसा करने से ही शान्ति
-सूय. सू. १, अ. ३. उ. ४, गा. १८-२० रूपी निर्वाण पद की प्राप्ति कही गई है। प.- इसे भंते ! अज्जताए समणा निरगया विहरति प्र०-भगवन् ! जो ये श्रमण निम्र न्य आर्यत्व युक्त (पाप एते गं कस्स तेयलेस्सं बीयाययंति ?
रहित) होकर विचरण करते हैं, वे किसकी तेजोलेण्या का अति
क्रमण करते हैं ? उ०-गोयमा ! मास परियाए समणे निगंथे वाणमंतराणं उ०—गौतम ! एक मास की दीक्षा पर्याय वाला श्मणदेवागं तेयलेस्सं बीयोवयति ।
निर्गन्थ बाणव्यन्तर देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। तुमासपरियाए समणे निग्गथे असुरिंदरज्जियाणं दो मास की दीक्षा-पर्याय बाला श्रमण-निग्रंन्य असुरेन्द्र के भवणवासीण देवाणं तेयलेस्सं बोयीचयति । सिवाय भवनवासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है । तिमासपरियाए समणे निगथे असुरकुमाराणं देवाणं तीन मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ, असुरकुमार तेयलेस्स बीयौवति।
देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है।
नयति।