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सूत्र १०२
सहि मूहि वयाणुरूपी, किसमे परितो परेज, भिवधूनमाहिदिए ।
सावन्नजोगं
काले ब
संजयनं मयारी |
बसावलं जाणिय अप्पयो । सोहो व सद्देण न संतसेज्जा,
लोग सोच्या न समा
बुसिए य विषयगेही आयाणं सं ( सम्म) रखखए । परिमाण भत्तपाणे य अंतसो ॥
उत्त. अ. २१, गए. ११-१४
सिपाएका अनियि बोटुकाए बिहरेज्जा जाव कालस्स पज्जओ ॥
एतेहि तिहि ठाणेह, संजए राततं पुणी । उeri जलणं णूमं मज्जत्वं च विशिषए । समिए य सया साहू पंच सिविल अमोश्याय परिष्वजानि ॥ सू. सु. १. अ. १. उ. ४ मा १२-१३ अणिएयवासी सम्प्राणचरिया अभ्यायचं यह रिक्क्या य अलाहाररियादसि परवा
-वश. चू. २, गा. ५
सम अपरम्य संजसं सम परि जे आवकला समाहिए, दबिए कालमकासि पंडिए । वरं अनुपस्सिया मुणी, तीतं धम्ममणागयं तहा पुट्ठे फरह माहणे, अति हष्णु समयंस शेयइ ॥
संयम योग्य जन
पण सवा एघारे मुगी । मुहमे उस अलूस जो कुछ को माणि मागे ॥
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जय-मम्मि परे हर व या अभाविपाकासि फास ||
बनेपामा होदिया, पतेयं समयं महा मेोरिति तत्यमा पक्षिते ॥ .सु. १.२२४६
उन. म. ३५, ३. ४, गा. ११-१३ करे ।
संयमी जीवन
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प्रति करुणाशील रहे, क्षमा से से संयत हो, ब्रह्मचारी ही करता हुआ विचरण करे ।
इन्द्रियों का सम्यक संदरण करने वाला भिक्षु सब जीवों के दुर्वचनादि को सहन करने वाला यह सत्र सावययोग का परि
मुनि यथासमय क्रियानुष्ठान करता हुआ राष्ट्र में विचरण करे। अपनी आत्मा के बलाबन को जानकर तप में प्रवृत्ति करे तथा प्रतिकूल शब्दों की सुमर सिंह की भांति किसी से त्रस्त न हो तथा असभ्य वचन भी न कहे ।
दस प्रकार की साधु समाचारी में स्थित और आहार बादि की आसक्ति से रहित मुनि आत्मा की सम्यक प्रकार से रक्षा करे तथा चर्या, आसन और शय्या के सम्बन्ध में जीवन पर्यन्त विवेक रखे ।
इन तीनों स्थानों में सतत संयत मुनि क्रोध, मान, माया और लोभ का त्याग करे ।
सदा पाँच समितियों से युक्त पाँच संबर से संत भिक्षु गृहस्थों में मुर्छा न रखता हुआ मोक्ष प्राप्त होने तक संयम में पुरुषार्थ करे।
ऋषियों के लिए अनिता सामुदानिको भिक्षा बजात कुलों की भिक्षा, साधारण आहार ग्रहण एकान्तमाप उपकरणों की अल्पता और कलह का वर्जन इत्यादि संयम चर्या कल्याणकारी कही गई है।
मुनि शुक्लध्यान ध्याए । अनिदान और ऑकंचन रहे । वह जीवन पर्यन्तस्य देहायास से मुक्त होकर बिहार
जो शुद्ध भ्रमण प्रत्येक संयम स्थान में जीवन पर्यन्त प्रवृत्त रहे वह समाधिस्य पंडित काल करके मुक्त होता है।
मुनि दोषं दृष्टि से भूत और भविष्य का तथा जीवों स्वभाव का अवलोकन करके कठोर वाक्यों को समभाव से सहन करे तथा मारे जाने पर भी दृढ़ता से संयम में ही विचरण करे । कुशल प्रज्ञावाला और सदा अप्रमत्त मुनि समता धर्म का निरूपण करे वह सूक्ष्मद मुनि सदा कोध करे और न अभिमान करे ।
रहे
अनेक लोगों द्वारा नमस्करणीय मुनि समस्त पदार्थों में अतिवद्ध होकर सरोवर की तरह सदा निर्माण रहता हुआ काश्यप गोत्रीय भगवान महावीर के धर्म का कथन करे
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संसार में अनन्त प्राणी है। इनका अस्तित्व पृथक-पृथक है, प्रत्येक प्राणी में समानता है अर्थात् उन्हें सुख जय है और इस है यह विचार कर जो मुनि पद में उपस्थित है वह पंडित अप्रिय उनसे विरति करे अर्थात् किसी प्राणी का उपघात न करे । J