SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समारम्भ-असभारम्भ से संयम-असंयम के प्रकार संयमी जीवन [१५ - - - (३) तेउकास्यसंजमे, (४) बाउकाइयसंजमे, ३. तेजस्काय संयम, ४. वायुकाय संयम, (५) वणस्स इकाइयसं जमे । ५. वनस्पतिकाय संयम । एगिदिया णं जीवा समारंभमाणस्स पंचबिहे असंजमे कज्जति, एकेन्द्रिय जीवों का समारम्भ करता हुआ जीव पाँच प्रकार तं जहा - का असंयम करता है-- (१) पुढविकाइयअसंजमे, (२) आउकाइयअजमे, १. पृथ्वी काय असंयम, २. अकाय असंयम. (३) तेउकाइयअसंजमे, (४) वाउफाइयअसंजमे, ३. तेजस्काय अमयम, ४. वायुवस्य असंयम, (५) बणस्सइकाइयअसंजमे । ५, वनस्पतिकाय असंयम । --ठाणं. म. ५. उ. २, सु. ४२६ बेहवियाणं जीवा अममारममाणस चविहे संजमे काजति, द्वीन्द्रिय जीवों का आरम्भ नहीं करने वाले के चार प्रकार का संयम होता है(१) जिम्मामयातो सोक्तातो अववरोविता भवन, १. रसमय सुख का त्रियोग नहीं करने से, २) जिभामएणं दुक्खेणं असंजोगेसा भवइ, २. रनमय दुःख का संयोग नहीं करने से, (३) फासामयातो सोक्षातो अथवरोवेत्ता भवाड, ३. स्पर्शमय सुख का वियोग नहीं करने से, (४) फासामएणं दुक्खेणं असंजोगिता भवइ । ४. स्पर्शमय दुःस का संयोग नहीं करने से। बेईदिया णं जीवा समारभमायास्स चविहे असंज में अति, द्वीन्द्रिय जीवों का आरम्भ करने वाले के चार प्रकार का तं जहा असंयम होता है(१) जिन्भामयातो सोक्खातो ववरोबित्ता भवइ, १. रममय सुख का वियोग करने से, (२) जिभामएणं दुक्खेण संजोगित्ता स्वइ, २. रसमय दुःख का संयोग करने से, (३) फासामयातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवई. ३. रसमय सुख का वियोग करते रो, (४) फासामएणं युक्खेणं संजोगित्ता भवइ । ४. स्पर्शभय दुःख का संयोग करने से । -ठाण. अ. ४.उ., सु. ३६८ ते इंदिया णं जीवा असमारममाणस्म छन्मिहे संजमे कज्जति, त्रीन्द्रिय जीवों का आरम्भ न करने वाले के छः प्रकार का तं जहा-- गंयम होता है(१) प्राणामयातो सोनक्षातो अवबरोवेत्ता भबइ, १. प्राणमय सुख का वियोग नहीं करने से, (२) पाणामएणं तुक्खेणं असंजोएत्ता भवह २. घ्राणमय दुःख का संयोग नहीं करने से, (३) जिम्भामयासो सोखातो अयवरोवेत्ता भवद्द, ३. ररामय सुख का वियोग नहीं करने से, (४) जिल्मामएण दुक्खेणं असंजोएता भवइ । ४. रसमय टुःख का संयोग नहीं करने से, (५) फासामयातो सोक्सातो अबवरोबेत्ता भवदा ५. स्पर्शमय सुख का वियोग नहीं करने से, (६) कासामएणं दुक्खेणं असंजोएत्ता भवद । ६. स्पर्शमम दुःख का संयोग नहीं करने से । तेरिया णं जीवा समारभमाणस्स छबिहे असंजमे कज्जति, श्रीन्द्रिय जीवों का आरम्म करने वाले के छः प्रकार का तं जहा -- मसंयम होता है(१) घाणामथातो सोक्खासो वधरोवेत्ता भवइ, १. घ्राणमय मुल का वियोग करने से, (२) घाणामएणं चुक्खेगं संजोगेत्ता भवइ. २. प्राणमय दुःख का संयोग करने से, (३) जिम्मामयातो सोक्खातो ववरोवेत्ता भवड, ३. रसमय मुख का वियोग करने से, (४) लिटमामएणं दुक्खेण संजोगेता भवह, ४. रसमय दुःख का संयोग करने से, (५) फासामयातो सोक्खातो बबरोवेता भवर, ५. स्पर्णमय सुख का नियोग करने से, (६) फासामएणं दुक्खेणं संजोगेत्ता भवइ । ६. स्पर्शमय दुःख का संयोग करने से । -- ठाणं.स. ६, सु. ५२१, घरिबिया जे जीवा असमारनमाणस्स अटुविधे संजमे चतुरिन्द्रिय जी का आरम्म नहीं कसे वले के प्राय काजति, तं जहा प्रकार का संयम होता है
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy