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इस ओरालिए असम्झाए
१०२.
इस प्रकार के औवारिक सम्बन्धी अस्वाध्याय
ओलिए नए पते तं जहा
१. बट्ट, २. मंसे, ३. सोणिते, ४. असुरसामंते, ५. सणसामंते, ६. चंदोवराए, ७. सुरोबराए,
ानाधार
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दस प्रकार के औदारिक सम्बन्धी अस्वाध्याय१०२. औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय दस प्रकार का कहा गया है। जैसे—
१.२.३.४ ५. स्मशान के समीप होने पर, ६.७. सूर्यग्रहण
शोणित, मांस, चर्म और अस्थि वे चार अस्वाध्याय कहे हैं । अस्वाध्याय के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव :
द्रव्य - अस्थि, मांस, शोणित और चर्म ये चार अस्वाध्याय के द्रव्य हैं।
क्षेत्र - अस्वाध्याय का क्षेत्र-साठ हाथ की सीमा में रहे हुए अस्थि आदि चार पदार्थ हैं।
काल- अस्थि आदि जिस समय दिखाई दें, उस समय से तीन प्रहर का अस्वाध्याय काल है। भाव – कालिक, उत्कालिक आगमों का स्वाध्याय न करना ।
१ मनुष्य और तिर्यञ्च के औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्याय है । यहाँ केवल पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च के औदारिक शरीर सम्बन्धी अस्वाध्यायों का उल्लेख है ।
टीकाकार
२ (क) आगमोत्तरकालीन ग्रन्थों में
यह कथन पंचेन्द्रियतियंञ्च की अस्थि आदि के सम्बन्ध में है। मनुष्य की अस्थि आदि के सम्बन्ध में द्रव्य और भाव का कथन तिर्यञ्च के समान है। क्षेत्र और काल के सम्बन्ध में कुछ विशेषताएं हैं, वे इस प्रकार हैं :
क्षेत्र अस्थि आदि द्रव्य से सौ हाथ की सीमा पर्यन्त का क्षेत्र अस्वाध्याय क्षेत्र है ।
काल- मनुष्य की अस्थि दिखाई दे उस समय से अधि पर्यन्त का काल अस्वाध्याय काल है ।
(ख) स्त्री-रज का अस्वाध्याय काल-तीन दिन । यदि तीन दिन पश्चात् भी रजोदर्शन होता रहे तो अस्वाध्याय नहीं है । उपाश्रय या स्वाध्याय भूमि से दोनों पाश्र्वे भाग में या पृष्ठ भाग में सात गृह पर्यन्त बालक-बालिका के जन्म का अस्वाध्याय क्रमशः सात आठ दिन का अस्वाध्याय काल माना गया है। उपाश्रय के जिस ओर राजमार्ग हो उस ओर अस्वाध्याय नहीं
माना जाता ।
मनुष्य की अस्थि सौ हाथ तक हो तो उसका अस्वाध्याय बारह वर्ष तक रहता है चाहे वह पृथ्वी में ही क्यों न गड़ी हो । विता में जली हुई एवं जल प्रवाह में बही हुई हड्डी स्वाध्याय में बाधक नहीं है ।
३. स्वाध्याय स्थान के समीप जब तक मल-मूत्र की दुर्गन्ध आती हो या मल-मून दृष्टियोवर होते हों तब तक अस्वाध्याय नहीं है ।
४ ममशान में चारों ओर सौ-सौ हाथ तक अस्वाध्याय क्षेत्र है । ५ (क) और ग्रहणको आधारिक
(ख) चन्द्रग्रहण का अस्वाध्याय दो प्रकार का है— जघन्य
१. यदि उदयकाल में चन्द्र ग्रसित हो गया हो तो चार अस्वाध्याय के हैं ।
२. यदि चन्द्रमा प्रभाव के समय ग्रहण ग्रसित अस्त हो तो चार प्रहर दिन के चार प्रहर रात के एवं चार प्रहर द्वितीय दिवस के। इस प्रकार बारह प्रहर अस्वाध्याय के हैं ।
लिए बिना है कि उनके विमान पृथ्वीका के बने हुए हैं। आठ प्रहर, उत्कृष्ट बारह प्रहर ।
प्रहर उस रात के एवं चार प्रहर आगामी दिवस के ये भाठ प्रहर
(ग) सूर्यग्रहण का अस्वाध्याय दो प्रकार का है- १. जघन्य – बारह प्रहर, उत्कृष्ट सोलह प्रहर ।
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१. सूर्य अस्त होते समय प्रसित हो तो चार प्रहर राव के और आठ प्रहर आगामी अहोरात्र के इस प्रकार बारह प्रहर अस्वाध्याय के हैं।
२. यदि उगता हुआ सूर्य ग्रसित हो तो उन दिन-रात के आठ और आगामी दिन-रात के आठ - इस प्रकार सोलह प्रहर अस्वाध्याय के हैं।
मेाच्छन्न आकाश के कारण यदि ग्रहण दिखाई न दे और सायंकाल में सूर्य ग्रसित हो, अस्त हो तो उस दिन रात और आगामी दिन-रात के सोलह अद्दर अस्वाध्याय के हैं ।
(ग) अन्य अन्तरिक्ष अस्वाध्याय कि है किन्तु और सूर्यग्रहण आकस्मिक नहीं है इसलिए अन्तरिक्ष अपाध्याय
से भिन्न माना है ।