________________
६४]
चरणानुयोग
चार महा प्रसिपवाओं में स्वाध्याय निषेध
सूत्र १०१
४. सुगिम्हगपाडिवए।
४. सुपीष्म-प्रतिपदा-पंत्री पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली -अणं, ४, उ. २, सु. २८५ वैशाखी प्रतिपदा ।
इन चार पूपमा म और पार मतदाओं में स्वाध्याय न करने के दो कारण है१. स्वाध्याय करने वाले के साथ मिथ्यादृष्टि देव छलना न करें। २. इन दिनों विकृतिवाला आहार अधिक मिलता है, इसलिए स्वाध्याय में मन नहीं लगता है। निशीय उद्दे. १९, सूत्र १२ में चार महाप्रतिपदाओं का कथन इस प्रकार है-चैत्र कृष्णा प्रतिपदा, आषाढ़ कृष्णा प्रतिपदा, भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा और कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा ।
स्थानांग में कथित चार महाप्रतिपदाओं में-आश्विन कृष्णा प्रतिपदा के स्थान में यहाँ भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा का कथन है । यह अन्तर या तो वाचना भेद के कारण है, या स्थानांग संकलनकर्ता के देश में इन्द्र महोत्सव आश्विन महाप्रतिपदा का होता होगा और निशीथ संकलनकर्ता के देश में इन्द्र महोत्सव भाद्रपद महाप्रतिपदा को समापन्न होता होगा, अतः इन दो भित्र प्रतिपदाओं का कथन इन दो आगमों में हुआ है।
निशीथ उद्दे. १६. सूत्र ११ में चार महा मह अर्थात् चार महामहोत्सव का कथन है । इन चार महोत्सव में स्वाध्याय करने का प्रायश्चित का विधान है । ये चार महा महोत्सव क्रमशः इन पूर्णिमाओं में होते हैं
इन्द्र महोत्सव-आश्विन पूर्णिमा तथा आश्विन कृष्णा प्रतिपदा । राजस्थान में कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा । स्कन्द महोत्सव-कार्तिक पूर्णिमा तथा कार्तिक कृष्णा प्रतिपदा । राजस्थान में- मार्गशीर्ष कृष्णा प्रतिपदा । नाग महोत्सव-आषाढ पूर्णिमा तथा आषाढ कृष्णा प्रतिपदा ! राजस्थान में श्रावण कृष्णा प्रतिपदा । भूत महोत्सव-चैत्र पूर्णिमा तथा चैत्र कृष्णा प्रतिपदा । राजस्थान में वैशाख कृष्णा प्रतिपदा । आश्विन पूर्णिमा के पश्चात् आश्विन कृष्णा प्रतिपदा गुजरात में प्रचलित पंचांग के अनुसार कही गई है।
राजस्थान में प्रचलित पंचांग के अनुसार पूर्णिमा के पश्चात् कृष्णा प्रतिपदा भित्र मास की आती है। इसलिए ऊपर दोनों प्रतिपदाएँ लिखी हैं।
इस सम्बन्ध में स्थानांग टीकाकार का लिखना इस प्रकार है
आषाढस्य पौर्णमास्या अनन्तरा प्रतिपदासानप्रतिपदमेवमन्यत्रापि । नवरमिन्द्रमहः-अश्वयुक् पौर्णमासी, सुग्रीठम:चैत्रपौर्णमासीति । इह च यत्र विषये यतो दिवसान्महामहाः प्रवर्तन्ते यत्र तदिवसात् स्वाध्यायो न विधीयते महसमाप्तिदिन यावत् तच्च पौर्णमास्येव, प्रतिपदस्तुक्षणानुवृत्ति-सम्भवेन वय॑न्त इति । उक्तं च आषाढी इंदमहो, कत्तियं सुगिम्हाए य बौद्धन्यो । एए. महामहा खलु, सम्वेसि जाव पाडिवया ।
-आचारांग श्रुत. २, अ. १, उद्दे... सु. १२ में तथा भगवती शत. ६, उद्द. ३३ में इन्द्रमह आदि उन्नीस महोत्सवों के नाम हैं, साथ ही अन्य महोत्सवों के होने का भी निर्देश है । अन्य महोत्सवों को छोड़कर केवल चार महोत्सवों में हो स्वाध्याय न करने का विधान क्यों है-यह शोध का विषय है। इन्द्र महोत्सव आदि उत्सव भिन्न-भिन्न तिथियों में भी मनाये जाते हैं, जैसे पक्ष महोत्सव आषाढ़ पूर्णिमा को मनाया जाता है, किन्तु लाट देश में प्रावण पूर्णिमा को मनाया जाता है, तो क्या लाट देश में अस्वाध्याय श्रावण पूर्णिमा के दिन रहेगा ?
'वर्तमान में इन निर्दिष्ट पूर्णिमाओं में ये उत्सव नहीं मनाए जाते हैं, इसलिए इन दिनों में अस्वाध्याय रखने का क्या हेतु है ? यह सब विचारणीय विषय हैं ।