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________________ सूत्र १७.१०१ निप्रन्थिनी के लिए स्वाध्यापिका नवागार १६३ R निग्गंयोणं विगिट्टकाले सज्झायविहाणं-- निर्गन्थिनी के लिए स्वाध्याय विधान१७. कम्पा निग्गंधीणं विगिट्ठए कासे समायं करेतए निरगंय ६७. निर्ग्रन्थ की निश्रा में निन्थियों को व्यति कुष्टकाल में (भी) निस्साए। -बव. उ. ७ सु. १५ स्वाध्याय करना कल्पता है । निग्गंथ-निग्गंथीण सज्शाययिहाणं निन्थ निर्ग्रन्थिनी हेतु स्वाध्याय काल विधान-- १. कप्पह निागंथागं वा निगंथीर्ण मा सझाइए सज्झार्य ९८. निर्ग्रन्थों और निर्गन्थियों को स्वाध्यायकाल में (ही) करेतए। - वद. उ. ७, मु. १७ स्वाध्याय करना कल्पता है । कप्पड गिरगंथाणं पाणिग्गंधीण वा चाउदककाले समायं निग्रन्थों और निग्रंथियों को चार कालों में स्वाध्याय करना करेसए, तं जहा कल्पता है, जैसे-- पुस्खण्हे, १. पूर्वाह्न में-दिन के प्रथम प्रहर में। अवरव्हे, २. अपराह्न में-दिन के अन्तिम प्रहर में। पओसे, ३. प्रदोष में-रात के प्रथम प्रहर में। परचूसे। -टाणं, उ. सु. २८५४. प्रत्यूष में रात के अन्तिम प्रहर में। निग्गंथ-निग्गंथीणं असज्झायकाल विहाणं निम्रन्थ-निग्रन्थिनी हेतु अस्वाध्याय काल विधान-- &t. नो कप्पद निग्गंधाण वा लिगंभोण बा असज्माइए समायं ६९. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थिनियों को अस्वाध्याय काल में करेत्तए । -वच. उ. ७, सु. १६ स्वाध्याय करना नहीं करूपता है। चन्यिहो असनमायकालो चार प्रकार का अस्वाध्याय-काल-. १००, णो कप्पणिग्गंधाण या णिम्गमीण वा चहि समायं १००. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को चार सन्ध्याओं में स्वाध्याय करेत्तए, तं जहा-. करना नहीं करूपता हैं, जैस१. पढमाए, १. प्रथम सन्ध्या-- सूर्योदय का पूर्वकाल । २. पच्छिमाए. २. पशिचम सन्ध्या-सूर्यास्त के पीछे का काल । ३. माहे २. मध्यान्ह सन्ध्या---दिन के मध्य समय का काल । ४. अरसे । , -ठाणं. ४, र. २, मु. २८५ ४. अर्धरात्र-सन्या-आधी रात का समय । चउसु महापाडियएसु सम्झायणिसेहो चार महाप्रतिपदाओं में स्वाध्याय निषेध..१०१ णो कप्पद णिग्गंयाण वाणिग्गयोण वा चहि महापाडिवएहि १०१, निर्ग्रन्थ और निन्थियों को चार महामतिपदाओं में समायं करेसए, तं जहा स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है, जैसे-- १. आसाङपाडियए, १. आषाढ़ प्रतिपदा- आषाड़ी पूर्णिमा के पश्चात् आने वाली सावन की प्रतिपदा । २. इंदमहपाहिए, २. इन्द्रमह प्रतिपदा-आसौज मास की पूर्णिमा के पश्चात् आने बाली कार्तिक को प्रतिपदा । ३. कतियपाविषहे, ३. कार्तिक-प्रतिपदा-~~-कातिक पुर्णिमा के पश्चात् आने वाली मगसिर की प्रतिपदा । V १ क्षेत्र व्यतिकृष्ट और भाव व्यतिकृष्ट ये दो प्रकार के शिष्य होते हैं. इन्हें आगमों का अध्ययन करना निषिद्ध है। २ इन चार मन्ध्याकालों में एक-एक मुहूर्त अस्वाध्याय काल रहता है, सन्ध्याकाल से पूर्व एक घड़ी और पश्चात् एक घड़ी इस प्रकार एक मुहूर्त होता है। IRAL
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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