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________________ ६६ वरणानुयोग औवारिक सम्बन्धी अस्वाध्याय सूत्र १०२-१०३ ८. परगे, ६. रोयषुग्गहे" १०. उबस्सपास अंतो ओरा- ८. पतन-मरण प्रमुख व्यक्ति के मरने पर, ह. राजविप्लव होने लिए सरीरगे। पर १०, उपाश्चय के भीतर सो हाथ औदारिक कलेबर के होने -ठाणं. अ. १०, सु. ७१४ पर स्वाध्याय करने का निषेध किया गया है। अप्पणो असज्झाए सज्झाय-निसेहो--: शारीरिक कारण होने पर स्वाध्याय का निषेध१०३.मो कापड निरगंधाण वा निग्गंधीण वा १०३. निर्ग्रन्था और निर्ग्रन्थियों को स्वशरीर सम्बन्धी अस्वाअपणो असमाइए समायं करेसए। ध्याय होने पर स्वाध्याय करना नहीं कल्पता है, किन्तु (वणादि कप्पा मं अन्नमनिस्स वायगं बलइसए। को विधिवत् आच्छादित कर) वाचना देना कल्पता है। -वब. उ. ७, सु.१५ १ (क) गाँव के मुखिया बड़े परिवार वाले और शव्यातर (जिसकी आज्ञा से मकान में ठहरे हो) की तथा उपाधय से सात घरों के अन्दर अन्य किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाय तो एक अहोरात्रि का अस्वाध्याय काल है । (ख) राजा की मृत्यु होने पर जब तक दूसरा राजा राज्य सिंहासन पर न बैठे तब तक स्वाध्याय करना निषिद्ध है। इसी प्रकार प्रमुख राज्याधिकारी (अमात्य, सेनाधिपति आदि) की मृत्यु होने पर जब तक नया राज्याधिकारी नियुक्त न कर दिया जाम तब तक स्वाध्याय करना निषित है। (4) जब तक अराजकता, अव्यवस्था एवं अशान्ति बनी रहे तब तक स्वाध्याय करने का निषेध है। २ (क) राजा या सेनापतियों के संग्राम, प्रसिद्ध स्त्री-पुरुषों की लड़ाई, मल्लयुद्ध या दो गांव के जन समूह का पारस्परिक युद्ध व कलह हो तो युद्ध समाप्ति के पश्चात् एक अहोरात्रि पर्यन्त अस्वाध्याय काल है। (ख) युद्ध में यदि अत्यधिक मनुष्य आदि मारे गये हों तो उस स्थान में बारह वर्ष तक स्वाध्याय करना निषेध है। ३ (क) उपाश्रय में पंचेन्द्रिय तिर्यच या मनुष्य का पारीर पड़ा हो तो सो हाथ पर्यन्त अस्वाध्याय क्षेत्र है। (ख) उपाश्रय के सामने से मृत शरीर ले जा रहे हो तो जब तक सौ हाथ से आगे न निकल जाय तब तक स्वाध्याय नहीं ___ करना चाहिए। (ग) छोटे गांव में मृत देह को जब तक गाँव से बाहर न ले जावें तब तक स्वाध्याय निषेध है। (घ) बड़े शहर में मोहल्ले से बाहर जब तक मृत शरीर को न ले जावे तब तव स्वाध्याय करने का निषेध है। (ङ) मृत शरीर दो प्रकार का है-१. दृष्ट---जो मृत शरीर दृष्टिगोचर हो वह, २. थुत अमुक स्थान में मृत शरीर पड़ा है-ऐसा किसी से सुना हो। दृष्ट और श्रुत मृत शरीर के सम्बन्ध में चार विकल्प १. मृत शरीर दिखाई नहीं देता है किन्तु दुर्गन्ध आती है। २. मृत शरीर दिखाई देता है किन्तु दुर्गन्ध नहीं आती है। ३. मृत शरीर दिखाई भी देता है और उसकी दुर्गन्ध भी आती है। ४. मृत शरीर दिखाई भी नहीं देता है और दुर्गन्ध भी नहीं पाती है। इनमें अन्तिम चतुर्थ भंग का अस्वाध्याय नहीं है, शेष तीनों भंगों का अस्वाध्याय है। प्रथम भंग में मृत शरीर की जहाँ तक दुर्गन्ध आती है वहां तक स्वाध्याय करने का निषेध है। द्वितीय भंग में साठ हाथ या सो हाय पर्यन्त अस्वाध्याय क्षेत्र है। पारदर्शक आवरणों से आवृत कलेवर अथवा विविध प्रकार के लेप से दुर्गन्ध रहित बनाया हुआ कलेवर द्वितीय भंग का विषय है। तृतीय भंग में जहाँ तक मृत शरीर दिखाई दे और जहां तक मृत शरीर को दुर्गन्ध आवे वहाँ तक अस्वाध्याय क्षेत्र है । चतुर्थ भंग स्वाध्याय का क्षेत्र है। ४ निर्मन्थ के आत्मसमुत्थ अस्वाध्याय एक प्रकार का है—यथा-व्रण, अर्श, भगन्दर आदि से बहने वाला रक्त, पूय आदि । निर्ग्रन्थी के आत्म-समुत्य अस्वाध्याय दो प्रकार का है—यथा-प्रथम-व्रण, अर्ण, भगन्दर आदि, द्वितीय-आर्तव, रजःलाव । ५ (क) निर्ग्रन्थ को स्वाध्याय स्थल से मौ हाय दूर जाकर व्रण आदि का प्रक्षालन कर उस पर राख के तीन आवरण बांधने के पश्चात याचना देना कल्पता है। (शेष टिप्पण अगले पृष्ठ पर)
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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