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________________ mm ज । २१८ २२१ ६०२ १२१ २२५ १३१ २२६ mr १९७ १२१ m २२६ २३० १३५ विषय सूत्रक पृष्ठोक विषय सूत्रांक पृष्ठोक शील सम्पन्न और दुश्शील सम्पन्न, शील सम्यक्त्व के दस प्रकार (रुचि) २१३ १२६ प्रज्ञावान और दुशील प्रज्ञावान तीन प्रकार के दर्शन २१४१२७ दर्शन का फल शुद्ध और शुद्ध प्रशायान, अशुद्ध और अशुद्ध २१५ १७ दर्शनावरणीय के क्षय से बोधिलाभ और क्षय प्रज्ञावान न होने से अलाभ २१६ वचन दाता अदाता, ग्रहिता, अग्रहिता १२७ दर्शन प्राप्ति के लिए अनुकूल काल २१७ १२६ सूत्रार्थ ग्राहक अग्राहक दर्शन प्राप्ति के लिए अनुकूल वय १२६ प्रश्न कर्ता, अकर्ता दर्शन प्राप्ति के लिए अनुकूल दिशाएँ १२६ सूत्रार्य ध्याख्याता, अव्याख्याता पाँच दुर्लभबोधि जीव २२० श्रुत और शरीर से पूर्ण अथवा अपूर्ण १२६ पाँच सुलभबोधि जीव श्रुत से पूर्ण और अपूर्ण, पूर्ण सदृश या अपूर्ण तीन दुर्बोध्य २२२ सदृश __१६३ १२१ तीन सुबोध्य २२३ श्रृत से पूर्ण और अपूर्ण, श्रमण वेष से पूर्ण सुलभबोधि और दुर्लभदोधि २२४ __और अपूर्ण १६४ बोधि लाभ में बाधक और साधक श्रुत से पूर्ण और अपूर्ण, उपकारी और अपकारी १६५ श्रद्धालु-अश्रद्धालु श्रुत से पूर्ण और अपूर्ण, श्रुत के दाता और सम्यादी थमण का परीषह-जय अदाता असम्यग्दर्शी श्रमण का परीषह पराजय २२७ श्रुत से और शरीर से उन्नत और अवनत सम्यक्त्व पराक्रम के प्रश्नोत्तर २२८ जाति सम्पन्न, जातिहीन, अत सम्पन्न, संवेग आदि का फल श्रुतहीन १६८ १२२ निर्वेद का फल कुल सम्पप भौर कुलहीन, श्रुत सम्पन्न और सम्यक्त्वी का विज्ञान २३१ १३५ सम्यक्त्वदर्शी मुनि २३२ श्रुतहीन १३५ सुरूप और कुरूप, श्रुत सम्पन्न तथा श्रुतहीन २०० सम्यक्त्वदर्शी पाप नहीं करता २३३ १३५ कूर्म दृष्टान्त बल सम्पन्न भोर बल हीन, श्रुत सम्पन्न और सम्यक्त्वी की चार प्रकार की श्रद्धा २३५ श्रुतहीन १२२ सम्यक्त्व के पांच अतिचार सूत्रधर, अत्यधर १२२ प्रवज्या पूर्व साधक की निर्वेद दशा छहों दिशाओं में ज्ञान वृद्धि एकरन्न भावना से प्राप्त निर्वेद १४० ज्ञान वृद्धिकर दस नक्षत्र १२३ अनुलोत और प्रतिस्रोत २३६ तीन प्रकार के निर्णय १२३ अस्थिरात्मा की विभिन्न उपमाएँ २४० १४२ तीन प्रकार की दिवत्ति २०६ १२३ साधुता से पतित की दशा १४२ तीन प्रकार का विषयानुराग १२३ संयम में रत' को सुख अरत को दुःख तीन प्रकार का विषय सेवन १२३ संयम में अस्थिर श्रमण की स्थिरता हेतु चिंतन २४३ १४५ ज्ञानाचार तालिका मिध्यादर्शन विजय का फल १४७ वर्शनाचार: सूत्र २०६-३०२ पृ. १२५-२०४ चार अन्यतीथियों को श्रद्धा का निरसन १४८ सम्यक्वर्शन : स्वरूप एवं प्राप्ति के उपाय प्रथम तज्जीव तत्शरीरवादी की श्रद्धा का निरसन दर्शन स्वरूप २०६ १२५ द्वितीय पंच महाभूतबादी की श्रद्धा का निरसन २४७ सम्यक्त्व को द्वीप की उपमा २१० १२५ तृतीय ईश्वरकारणिकवादी की श्रद्धा का दर्शन का लक्षण २११ १२५ निरसन २४ सम्यक्त्व के आठ (प्रभावना) अंग १२६ चौथा निर्यातवादी की श्रद्धा का निरसन २०१ २०२ १३८ १२३ २३८ १४२ -rrrr २४१ २४२ १४५ . १४६
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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