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________________ १०६ १२३ विषय सूत्रांक पृष्ठांक विषय स्रयांक पृष्ठांक पन्द्रह प्रकार के सुविनीत ८२ गुरु और साधमिफ शुश्रूषा का फल १५५१०३ शिष्य के करणीय कार्य गुमकुलबास का माहात्म्य गुरु के समीप बैठने की विधि ११८ प्रश्न करने की विधि प्रश्न पूछने की विधि ११६ उत्तर विधि शिष्य के प्रश्न पर गुरु द्वारा उत्तर समाधि का विधान १०८ गुरु ने प्रति शिष्य के कर्तव्य श्रुतधर के प्रकार शिष्य के प्रति गुरु के कर्तव्य १२२ बहुश्रुत का स्वरूप अनुशासन पालन में शिष्य के कर्तव्य अबहुश्रुत का स्वरूप मुरु के अनुशासन का शिष्य पर प्रभाव १२४ चतुर्थ : उपधानाचार कुपित गुरु के प्रति शिष्य के कर्तव्य १२५ शिक्षा के योग्य चार प्रकार की विनय-समाधि १२६ पंचम : अनिन्हवाचार विनय का सुपरिणाम १२७ अभाधु का स्वरूप अविनीत के लक्षण १२८ छठा ठर्यजन-ज्ञानाचार, साता अर्थ-ज्ञानाचार तीन प्रकार के अविनय आठवां तवमय-मानाचार ११२-११२ बौदह प्रकार के अविनीत सूत्रार्थ का न दिपाना अविनीत का' स्वरूप ज्ञानाचार : परिशिष्ट १६६-२०८ ११३-१२३ गुरु आदि के प्रत्यनीक ज्ञान और आचार भेद से पुरुषों के प्रकार १६६ ११३ अविनीत की उपमाएँ ज्ञानी और अज्ञानी अविनीत और विनीत का स्वरूप ज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति १६६ ११४ अविनीत-सुविनीत के लक्षण अतिशय युक्त ज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति नहीं अविनीत और सुभिनीत के आचरण का प्रभाव' १३६ होने के कारण विनीत-अविनीत का स्वमत चिन्तन अतिशय युक्त ज्ञान-दर्शन की उत्पत्ति के कारण १७१ ११५. शिक्षा प्राप्त न होने के पाँच कारण ज्ञान-दर्शनादि की वृद्धि करने वाले और हानि शिक्षा के अयोग्य १३६ करने वाले तेतीस आशातनाएं १४० अवधिज्ञान के क्षोभक १७३ तेतीस आशातना दूसरा प्रकार) १४१६६ केवलज्ञान-दर्शन के अक्षोभक आशातना के फल का निरूपण १४२१८ ज्ञानसम्पन्न और क्रियासम्पन्न आशातना के प्रायश्चित्त ज्ञाल-युक्त और आचार-युक्त १७६ अविनय करने का प्रायश्चित्त १४५ र ज्ञान-वृक्त और ज्ञान-परिणत १७७ ११७ तृतीय : बटुमान ज्ञानाचार १४६-१५२ १००-११० शान युक्त और वेष युक्त आचार्यों की महिमा शान-युक्त और शोभा युक्त, मयुक्त आचार्य की सेवा का फल १४७ पांच प्रकार की परिज्ञा ११८ वृक्ष के भेद से आचार्य के भेद शरीर सम्पन्न और प्रशा सम्पन्न फन भेद से आचाई के भेद १४६ बाजु-ऋजुप्रश और यक्र-वऋत्रश १५२ करंडिया के समान आचार्य दीन और अदीन, दीन प्रशावान और अदीन आचार्य उपाध्याय की सिद्धि प्रज्ञावान आचार्य की उपासना १०२ आर्य और अनार्य, आर्य प्रज्ञावान और अनार्य गुरु-पूजा प्रज्ञावान तथारूप घमणों माहणों की पपासना सत्य वक्ता और असत्य वक्ता, सत्म प्रज्ञा और का फल असत्य प्रज्ञा १८५ ११६ Arr म ७५ १७८ л १७६ ११८ л ०० л я xxxx
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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