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विषय सूत्रोक पृष्ठांक विषय
सूत्रांक पष्ठाक केव ले प्रज्ञप्त धर्म श्रवण के अनुकूल कान ५२४० ज्ञान की उत्पत्ति के अनुकूल काल धजाराधना के अनुकूल क्षेत्र
४० जिन प्रवचन सुनकर आमिनिबोधिक ज्ञान यावत्धर्म का परित्याग करने वाले को और अधर्म को
केवलज्ञान की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति ८५ स्वीकार करने वाले की गाड़ीवान से तुलना ५४
जिन प्रवचन सुने बिना आभिनिबोधिक ज्ञान रमाउलार से तुलना
यावत् केवलज्ञान की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति ५. अधर्म करने वाले की निष्फल रात्रियाँ
निभंगज्ञान की उत्पत्ति धर्म करने वाले को सफल रात्रियों
ज्ञान की प्रधानता धर्म पाथेय से सुखी अपाथेय से दुखी
ज्ञान से संयम का परिज्ञान दुर्लप-धर्म
५८-५९ ४२-४५ ज्ञान से मंसार भ्रमण नहीं धर्म साधना में सहायक
श्रुत आराधना का फल श्रद्धा के स्वरूप का प्राण
ज्ञान से निर्माण प्राप्ति
१२ ५६ वरण के प्रकार उपक्रम के भेद
प्रथम : काल ज्ञानाचार
६३-१०५ ६२-६६ व्यवसाय (अनुष्ठान) के प्रकार
काल प्रतिलेखना का फल संयतादि को धर्मादि में स्थिति
स्वाध्याय बाल प्रतिलेखना प्रत्युपकार दुष्कर, प्रत्युपकार सुकर
स्वाध्याय ध्यानादि का काल विवेक धर्मार्जित व्यवहार
ध्यतिकृष्ट काल में निर्ग्रन्थ के लिए स्वाध्याय
निषेध चार-चार प्रकार के धार्मिक और अधार्मिक पुरुष
६५ '
निम्रन्थ-निर्ग्रन्थिनी के लिए स्वाध्याय विधान
Y धर्म निन्दाकरण प्रायश्चित्त
निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों हेतु स्वाध्याय काल विधान १८ अधर्म प्रशंसाकरण प्रायश्चित्त
निर्बन्थ-निग्रन्थियों हेतु अस्वाध्याय काल विधान १६
चार प्रकार का अस्वाध्याय काल आचार-प्रज्ञप्ति
७०-८०५१-५४
चार महापातिदाओं में स्वाध्याय निषेध १०१ आचार धर्म प्रणिधी
दस प्रकार के औदारिक सम्बन्धी अस्वाध्याय १०१ आचार के प्रकार
शारीरिक कारण होने पर स्वाध्याय का निषेध १०३ पाँच उत्कृष्ट
५१ इस प्रकार के अन्तरिम अस्वाध्याय चार प्रकार का मोक्ष मार्ग
अकाल स्वाध्याय करने और काल में स्वाध्याय आराधना के प्रकार
५१ नहीं करने का प्रायश्चित्त
१०५ ६८-६६ आराधना के फल की प्ररूपणा तीन प्रकार की बोधि
द्वितीय : विनय नानाचार
१०६-१४५ ७०-१६ तीन प्रकार के बुद्ध
विनयाचार कहने की प्रतिज्ञा तीन प्रकार के मोह
विनय प्रयोग तीन प्रकार के भूख
अविनय का फल आचार-समाधि
५३ विनय को मूल की उपमा कल्पस्थिति (आचार-मर्यादा)
आचार्य की विनय प्रतिपत्ति
शिष्य की विनय-प्रतिपत्ति ज्ञानाचार : सूत्र ५१ से २०८, पृष्ठ ५५.१२४
विनय के भेद-प्रभेद
११२ पार पकार की धुत समाधि
विगय प्रतिपन्न पुरुष आठ प्रकार के ज्ञानाचार
५५ विनीत के लक्षण ज्ञान की उत्पत्ति के अनुकूल वय
५५ आठ प्रकार के शिक्षाशील
५३
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