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असत्या
विवय सूत्रांक पृष्ठांक विषय
सूत्रांक पृष्ठांक लोक रचना के अनेक प्रकार
२५० १५६ मोक्ष मार्ग में अप्रमत भाव से गमन का उपदेश २७ १९४ अकारकवाद २५१ १६० निर्वाण का मूल सम्यग्दर्शन
२८८ १६४ एकात्मवाद
१६. प्रधान मोक्षमार्ग आत्मपष्टवार
१६१ उन्मार्ग से गमन करने वालों की नरक गनि २६० अवतारवाद १६१ निर्वाण मार्ग की माधना
२६५ नोकवाद-समीक्षा १६१ सन्मार्ग-उन्मार्ग का स्वरूप
२६२ पांच स्कन्धवाद
१६१ मोक्षमार्ग जिज्ञासा स्व-स्व-प्रवाद-प्रशंसा एवं सिद्धि लाभ का दावा २५७ १६२ निर्वाण मार्ग
२६४ विविध वाद निरसन
२५८ १६२ अनुत्तर ज्ञान दर्शन मिथ्यादर्शनों से संसार का परिभ्रमण २५९ १६३ मैत्री भावना
१६७ मिथ्यात्य अशान अनावरण २६०-३०२१६४-२०४ सिद्ध स्थान का स्वरूप
२६७ १९६ मिथ्या दर्शन के भेद-प्रभेद
२६० १६४ सत्यवक्ता, अमत्यवक्ता, दर्शनसत्या दर्शनमिथ्यात्व के भेद-प्रभेद २६१-२६२
२६८ मोहमूह को बोध दान
२६३ १६५ सुशील और दुश्शील, सुदर्शन और कुदर्शन २६६ मोहमूढ़ की दुर्दशा
१६५ शुद्ध और अशुद्ध, शुद्ध दर्शन वाले कुदर्शन वाले ३०० विवाद-शास्त्रार्थ के छह प्रकार
१६६ जन्नत और अवनत, उग्रत दर्शनी और विपरीत प्ररूपणा का प्रायश्चित्त
१६७ अवनत दर्शनी अन्यतीथियों के पार वाद
१६७ सरल और वक्र, सरल दृष्टि और वक्र क्रियावादियों की श्रद्धा १६७ दृष्टि आदि
३०२ २०१ एकान्त क्रियावादी
दर्शनाचार परिशिष्ट
२०२-२०३ एकान्त क्रियावाद और सम्यक क्रियावाद
सम्यक् दर्शन तालिका प्ररूपक
२७० १६८ सम्यक किवादाद के प्रतिपादक और अनुगामी २७१
चारित्राचार : सूत्र ३०३ से १३३८ (प्रथम भाग तक) अक्रियावादी का स्वरूप
पृष्ठ २०५ से ७३८ (प्रथम भाग तक) अक्रियावादियों की समीक्षा
२७३ १७२ चरण विधि का महत्व अत्रियावादियों का मिथ्या दण्ड प्रयोग २७४
संवर की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति एकान्त ज्ञानवादी
२७५ १७८ आथव और संवर का विवेक अज्ञानवाद
पांच संवर द्वारों का प्ररूपण
०६ एकान्त अज्ञानवाद-समीक्षा
२७७ पाप स्थानों से जीनों की गुस्ता
२१२ एकान्त बिनयदादी की समीक्षा
२७८ विरति स्थानों से जीवों की लघुता
२१२ पौडरिक रूपक
२७६ दस प्रकार के असंवर
३०९ २१२ श्रेष्ठ पुण्डरीक को पाने में असफरन चार पुरुष
पाँच संवर द्वार उत्तम श्वेत कमल को पाने में सफल नि:स्पृह भिक्षु । १८५
महायज दृष्टान्तों के दान्तिक की योजना
२८० दस प्रकार के संवर
३१२ २१३ एकान्त-दृष्टि निषेध
२८१ दस प्रकार की असमाधि
३१३ २१३ पावस्थादि बन्दन-प्रशंसन प्रायश्चित्त
१९० दम प्रकार की समाधि अन्यतीथियों की मोक्ष प्ररूपणा और उसका
असंवृत अणगार का संसार परिभ्रमण ३१४ २१४ परिहार
संवत अणगार का संसार परियमन ३१५ २१४ अन्यतीथिकों की प्ररूपणा और परिहार २८४ १९२ चारिख सम्पन्नता का फल मोक्ष विशारद का उपदेश
२५५ १९२ कुछ लोग चारित्र के जानने से ही मोक्ष निर्वाण ही साध्य है २८६ १६४ मानते हैं
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