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सूत्र ६५-६६
ज्ञान की उत्पत्ति और अनुत्त
जमणं वाभिणियोहियनाणावरणाचं कामगं - जान केवल नागावर चिकना कम्मा खओवसमे नो कछे भव से णं सोचा केवलिल्स वा जाबसत्यवासिया मा केवल आभिणियोयिता -जय-चलनाणं मो उपजा ।
-- वि. स. ९, उ. ३१. सु. १३ जिणपषयणं असो वा आभिणियोयिणाणस्स जाय केवलनाणस्स उपसि-अनुत्पत्ति-
८६. ० - असोच्चा णं भंते! केवलिस्स वर जाव तम्पविषय उपविधाए पर केवलं आभिणिवीहियनाथं जाय केवलनाव उपा?
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उ०- गोयमा ! असोच्या णं केवसिस्स या जान-तप्पनिसिपाए वा अलिए वोह नागनाथं उपजा मत्येवलिएव आभिणि बोहियनागं जाव- केवलनाणं नो उप्पाडेज्जा । प० ग भ एवं
असोच्या
केलिस या जान उपवासियाए वामिविया जान केवल नाणं उत्पादएव आभिणिदहिय ना-जान केवलनानं मी उपाक ? उ०- गीयमा ! अस्स णं आभिणिवोहिय नाणावर णिज्जाणं कम्माणं- जाव- केवलनाणावर णिज्जाणं कम्माणं खम उसमे कडे भव से णं असोच्छा केवलिस वा जाव प्यासिवाए केवलं मिडिया - जाव- केवलनाणं उपज्जा | जस्त पं अभिणिबोहियनाणावरणियाणं कायार्ण - जाव के बलना । घर णिज्जाणं कम्माणं सओयसमे तो कडे मवह, से णं असोच्चा केवसिस्स वा जाव तप्प लिसिया या केवलं आणि नरोहियनाणं-वार
से लेग में गीयमा ! एवं
जस्स णं आभिणिबोहियनश्णावरणिजाणं कम्माणं जाय केवलनायावरणिया माणं खोकामे कडे मवई, से णं असोच्चा केवलिस वा जाव सप्पक्खियउपासियाए या केवलं आभिणिब्रोहियनागं जावकेवलनाणं उत्पाडेज्जा ।
असणं आभिणियोहियनागावर कम्माणं बाद केवलनाणावर निमार्ण मोगले नो
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ज्ञानाचार [५७
जिसके अभिनिवोधिक ज्ञानावरणीय कर्मों का यावत्केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ है नह केवली से- यावत् केमली पाक्षिक उपासिका से सुनकर कई जीव माभिनिवोधिज्ञान शायद केवलशान प्राप्त नहीं कर सकता हैं।
जिनप्रवचन सुने बिना आभिनिवोधिक ज्ञान यावत् केवलज्ञान की उत्पत्ति और अनुत्पत्ति
८६ प्र भन्ते ! केवली से याबद - केवली पाक्षिक उपासे सुने बिना कोई जीव आभिनियोधिज्ञान-माकेवलज्ञान प्राप्त कर सकता है ?
उ०- गौतम ! केवली केली पाक्षिक उपा से बिना कई बीमाभिनियोधिज्ञान-पातकेवलज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और कई जीव आभिनिवोधिकज्ञान - यावत् केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं ।
प्र० भन्ते । किस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है
केवली के यावत् केवली शक्षिक उपासिका से सुने बिना कई जीव अभिनिवोधिकज्ञानात्केवलज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और जीव आभिनियोजन पायकेवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं ?
उ०- गौतम ! जिसके अभिनिवोधिक ज्ञानावरणीय कम का पावत्- केवलज्ञानावरणीय कर्मो का क्षयोपशम हुआ है वह केवली से - यावत् केवली पाक्षिक उपासिका से सुने बिना कई जीव आभिनियोधिकज्ञानवाद केवलज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
जिसके आभिनिबोधक ज्ञानावरणीय कर्मो का यावत्केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ है वह केवली से पायत् — केवली पाक्षिक उपासिका से सुने बिना कई जीव अभिनिबोधिताना केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं ।
गौतम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है। जिसके अभिनिवोधिक ज्ञानावरणीय कर्मों का केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ है वह केवली से - यावत्- केवली पाक्षिक उपासिका से सुने बिना कई जीव आभिनिबोधिकज्ञान यावत् — केवलज्ञान प्राप्त कर सकते हैं ।
जिसके अभिनिबोधक ज्ञानावरणीय कर्मों का पावत्केवलज्ञानावरणीय कमों का क्षयोपशम नहीं हुआ है वह केवली