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________________ ५६] घरमामुपोग झान की उत्पत्ति और अनुत्पति भूत्र ८४-८५ तिहि जामेहि माया फेवलमार्मािणबोहिययाणं उप्पाडेजा, तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध अभिनिचोधिक ज्ञान को प्राप्त करता है--जाव-तिहि जामेहि आया केवलणाणं उत्पति - पीनों कार में भारत केवलज्ञान को सं जहा प्राप्त करता हैपहमे जामे, मनिझमे जामे, पछिमे जामे । यथा-प्रथम याम में, मध्यम वाम में और अन्तिम वाम में । --ठाणं, अ. ३, 3. २, सु. १६३ जिणपवयणं सोच्चा आमिणिबोहियणाणस्स जाव केवल- जिनप्रवचन सुनकर आशिनिबोधिक ज्ञान-यावत्नाणस्स उप्पत्ति-अणुप्पत्ति केवलज्ञान को उत्पत्ति और अनुत्पत्ति - ८५.५०सोच्चा गं भंते ! फेवलिस वा -जाव-तपक्खिय- ८५. प्र० भन्ते ! केवली से यावत् -- केवली पाक्षिक उपा उवासियाए वा केवलं आभिणियोहियनाणं-जाव -- निका रो सुनकर कोई जीप आभिनिबोधिकज्ञान-पावत् - केवलनाणं उत्पाज्जा ? केवलज्ञान प्राप्त कर सकता है? उ०-गोयमा ! सोच्याण केवलिस्त वा-जाव-सप्पक्खिय- उ...गौतम ! केवली से --यावत् -केवली पाक्षिक उपा उवासियाए वा अरपत्तिए केवतं आभिणियोहिय- सिका से सुनकर कई जीव आभिनिवाधिकज्ञान -यावत् -केवलनाणं-जाव-केवलसाणं उप्पाडेज्जा, अस्थेत्तिए ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं और कई जीव आभिनिबोधिकज्ञान केवलं आभिणिनोहियनागं-जान-केबलनाणं नो -यावत् - केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं। अप्पाज्जा । 4०-से केणटुंणं भंसे ! एवं बुचड़ प्र० - भन्ते ! विस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैसोच्चा णं केवलिस्त वा-जात्र-तपरिषयउवासि- केवली से-यावत्-केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर याए वा अत्थेगसिए केवलं आभिणियोहियनाणं कई जीव आभिनिबोधिक ज्ञान -यावत् – केवलज्ञान प्राप्त कर - जाव–फेवलनाणं उप्पाज्जा, अत्येत्तिए फेवस सवाते हैं और कई जीव आभिनिवाधिक शान -यावत् – केबलआमिणिरोहियनाणं-जाव.-केबलनाणं नो उत्पा- ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकते हैं? डेज्जा ? 30---गोयमा | जस्प्त णं आमिणियोहियनाणावरगिजाणं 3०-गौतम ! जिसके आभिनियोधिक ज्ञानावरणीय कर्मों कम्माणं-जाब--केवलनाणावरणिज्जाणं कम्मागं का -यावस्–केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ है खाओवसमे को भवद से णं सोच्चा केलिस्स वा वह केवली से -पावत्-केवती पाक्षिक उपासिका से सुनकर -जाव-तपक्खियउवासियाए वा केवलं आभिणि- कई जीव आभिनिबोधिकज्ञान - यावत् केवलज्ञान प्राप्त कर बोहियनाणं-- जाब-फेचलनाचं उप्पाडेज्जा। सकते हैं। अस्स में आभिणियोहियनाणावरणिज्जाणं कम्माणं जिसके आभिनिवोधिक ज्ञानाबरणीय कर्मों का -यावत—जावः केवलनाणावरणिज्जाणं कम्मरणं खीवसमे केवलज्ञानावरणीय कर्मो का क्षयोपशम नहीं हुआ है वह केवली नो कदे भवाह से गं सोचा केवलिस्स वा-जाद-से-यावत् -केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर कई जीव तप्पक्खियउदवासियाए या केवलं आमिणियोहियनागं आभिनिबोधिकज्ञान-यावत-केवलज्ञान प्राप्त नहीं कर -जाव----केवलनाणं नो उप्पारेन्जा। गकते हैं। से तेणढणं गोपमा ! एवं युच्चइ . गौतम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता हैजस्स में आमिणिबोहियनाणावरगिजागं कम्माणं जिसके आभिनिबोधिक जानावरणीय कर्मों का यावत् - -जाव-केवलनाणावरणिम्जाणं कम्माणं खोयसमे केवलज्ञानावरणीय कर्मों का क्षयोपशम हुआ है वह केवली से को भवन से गं सोचचा केबलिस्स चा-जाब-तप- -यावद--केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर कई जीव विसयउबासियाए वा फेवलं आमिणिबोहियनाणं आभिनिवोधिक-यावत-केवलज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। -जाव-केवलनाणं उप्पाडेकमा ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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