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________________ सूत्र ८१-८४ चार प्रकार की शुत समाधि मानाचार ५५ णाणायारो ज्ञानाचार चब्धिहा सुयसमाही चार प्रकार की श्रुत समाधि-- ८१. चम्विहा पतु सुयसमाहो भवइ तं जहा ११. श्रुत-समाधि के चार प्रकार हैं, जैसे१. सुयं मे भविस्तइति अज्माइयथ्य भवन (१) "मुझे धुत प्राप्त होगा", इसलिए अध्ययन करना चाहिए। २. एगरगचिसो भविस्सामि ति बन्झाइयहवं भवन (२) "मैं एकाग्र-चित्त होऊँगा", इसलिए अध्ययन करना चाहिए। ३. अम्याण ठावहस्सामि सि अज्झाइयध्वं भवह (३) "मैं आत्मा को धर्म में स्थापित करूगा।", इसलिए अध्ययन करना चाहिए। ४. ठिओ पर ठामस्सामिति अजमाइयवं भषाद । (1) "मैं धर्म में स्थित होकर दूसरों को उसमें स्थापित चउस्य पयं भवह। करूंगा", इसलिए अध्ययन करना चाहिए। मह चतुर्थ पद है भवद य इत्य सिलोगो और यहाँ (श्रुत-समाधि के प्रकरण में) एक श्लोक है-- नाणमेगगचित्तो य, ठिओठावयाई परे। अध्ययन के द्वारा ज्ञान होता है चित्त की एकाग्रता होती है, सुथाणि य अहिज्जित्ता, रओ सुयसमाहिए ॥ धर्म में स्थित होता है और दूसरों को स्थिर करता है तथा -दस. अ., उ. ४, सु. ७, ८ अनेक प्रकार के श्रुत का अध्ययन कर श्रुत-समाधि में रत हो जाता है। अविहो णाणायारो आठ प्रकार के जानाचार१२. काले विगए बहुमाणे, उवहाणे तहा अनिम्हणे । ८२. जानाचार आठ प्रकार का है-- वंजग-अत्थ-दुभए, अविहो माणमायारो ॥ यथा-(१) कालाचार, (२) विनमाचार, (३) बहुमाना--आचारांग टीका अ. १, ३. १, गा. ७, चार, (४) उपशनाचार, (५) अनिन्हवाचार, (६) व्यंजनावार, (७) अर्थाचार, (८) तदुभयाचार । णाणुप्पण्णाणकूलो षयो-- , ज्ञान की उत्पत्ति के अनुकूल वय-- ५३. तो क्या पण्णता, तं जहा ८३. वय (काल-कृत अवस्था-भेद) तीन कहे गये हैंपडमे वए, मज्झिमे बए, पच्छिमे बए। यथा--प्रथम वय, मध्यम वय और अन्तिम बय । तिहिं वह अश्या केवलमाभिगिजोहियणाण उप्पाडेजा, तीनों ही वयों में आत्मा विशुद्ध आभिनिवोधिक ज्ञान को प्राप्त करता है-जाव–तिहि वएहि आया केवलनाणं उप्पाडेजा, -यावत्-तीनों ही क्यों में आत्मा विशुद्ध केवलज्ञान को तं जहा-- प्राप्त करता हैपढमे वए, मज्झिमे वए, पच्छिमे वए। यथा-प्रथम वय में, मध्यम वय में और अन्तिम वप में। पाणुप्पण्णाण फूलो कालो ज्ञान की उत्पत्ति के अनुकूल काल-- ६. तमो जामा पण्णत्ता, तं जहा ५४. तीन (वाम) प्रहर कहे गये हैंपहमे जामे, मजिसमे जामे, पच्छिमे जामे । यथा-प्रथम याम, मध्यम याम, अन्तिम याम । १. आगमों में ज्ञानाचार विषयक यत्र तत्र जितने सूत्र हैं उनका वर्गीकरण करने के लिए ज्ञानाचार के इन आठ भेदों का कथन यहां निर्देश किया है। आगे क्रमसः ज्ञानाचार के आठ भेदों का वर्णन है।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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