SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४] चरणानुयोग कल्पस्थिति (आचार-मर्यादा) सूत्र ७६.८० ४. नन्नत्य मारहतेहि हेऊहिं आयारमहिज्जा , (४) आहत-हेतु के अतिरिक्त अन्य किसी भी उद्देश्य से घउत्थं पयं मसह। आचार का पालन नहीं करना—यह चतुर्थ पद है। भवद य इत्य सिलोगो यहाँ (आचार-समाधि के प्रकरण में) एक श्लोक हैजिणवयणरए अतितिणे परिपुरणाययमाययदिए । जो जिनवचन में रत होता है, जो प्रलाप नहीं करता, जो आयारसमाहिसंवुडे भवह य दंते भावसंधए ॥ सूचार्य से प्रतिपूर्ण होता है, जो अत्यन्त मोक्षार्थी होता है, वह ---दस. अ.६, उ. ४, मु. ४, गा.५ आचार-समाधि के द्वारा मवृत होकर इन्द्रिय और मन का दमन करने वाला तथा मोक्ष को निकट करने वाला होता है। कप्पट्टिई कल्पस्थिति (आचार-मर्यादा)-- ५०. छभिवहा कप्पट्टिई पणत्ता, तं जहा ८०. कल्पस्थिनि (निर्ग्रन्थों और निधियों की आचार मर्यादा) छह प्रकार की होती है । यथा१. सामाइय-संजय-कम्पट्ठिई, (१) सामायिकसंधतकल्पस्थिति-सामायिक चारित्र सम्बन्धी मर्यादा । २. छेओवट्ठावणिय-संजय कप्पढिई. (२) छदोपस्थापनीय संयतकल्पस्थिति-यावज्जीवन की सामायिक स्वीकार करते समय अथवा व्रत भंग होने पर पुनः पान महावतों के आशेषण रूप पारित्र की मर्यादा । मिजिकमा कहिल, (३) निविश्यमान कल्पस्थिति---गरिहारविशुद्धि तप स्वीकार करने वाले की आजार मर्यादा। ४. निस्विटुकाय कप्पदिई, (४) निविष्टकायिक कल्पस्थिति–पारिहारिक तप पूरा करने वाले की आचार मर्यादा । ५. जिणकप्पट्टिई, (५) जिनकल्पस्थिति-गच्छ से बाहर होकर तपस्यापूर्वक जीवन बिताने वाली आचार मर्यादा । ६. थेरकापट्टिई। (६) स्थविरकल्पस्थिति गच्छ के आचार्य की आचार -कप्प. स. ६. सु.२० मर्यादा। CO
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy