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________________ सूत्र ७५-७६ wwwwww एवं मन्झिमि परि प० अहप्रियं णं भंते नाथाराहर्थ आराहता कतिहि सिति जायत करेति ? - उ०- गोमा ! अत्थेगतिर तच्चेणं भवरगहणणं सिजनह पुण माइक्कम | एवंणारा पि एवं परिचाणं पि । तिविहा बोही७६. तिमिहाबोधी पता ह जाबोधी सणबोधी चरिबोधी'। तिविहा बुद्धा तिथिले मोहे७७. तिविहे मोहे पण्णत्ते, गाणमोहे सणमो तिविहा बुद्धा पण्णत्ता तं जहापाणबुडा, सणवारा। — -अर्थ. अ. ३, उ. २, सु. १६४ -- प्रा. अ. ३, उ. ४, गु. १६४ तं जहा परिम - वि. श. उ. १०, सु. १०-१० कहना चाहिए। -- तीन प्रकार की बोधि ठाणं. अ. ३, उ. २, सु. १६४ तिविहा मूढा जय तिविहा मूढा पण्णता, तं जहानागमूढा दंसणमूढा, चरिता 1 १. ठाणं. व. २, उ. ४, सु. ११५ ३. ठा. अ. २, उ. ४, सु. ११५. - ठा. अ. ३, उ. २, सु. १६४ आधारसमाही ७६. चविवहा खलु आवारसमाही भव में जहा १. मोहोट्टयाए आया रमहिदुज्जा, २. नो परोया आपारमहिण्या ३. नोोगाए आपार महिमा, २. ४ इसी (पूर्वोक्त) प्रकार से चारित्र को मध्यम आराधना के (फल के विषय में कहना चाहिए। प्र० -- भगवन् ! ज्ञान की जघन्य आराधना करके जीव कितने भव ग्रहण करके सिद्ध होता है,मासदुःखों का अन्त करता है ? आचार-प्रति [2 उ०- पीतम कितने ही जीव तीसरा भव ग्रहण करके सिद्ध होते है.पात्करते हैं। परन्तु सात-आठ भव का अतिक्रमण नहीं करते। इसी प्रकार जघन्य दर्शनाराधना के ( फल के विषय में समझना चाहिए । इसी प्रकार जघन्य चारित्राराधना के फल के विषय में भी तीन प्रकार की बोधि- ७६ तीन प्रकार की कही गई है (१) ज्ञानबोधि (२) दर्शनवोधि, (३) नारित्रबोधि । तीन प्रकार के बुद्ध- ७६. बुद्ध तीन प्रकार के कहे ये हैं (१) ज्ञानबुद्ध, (२) दर्शनबुद्ध, (३) चारित्रबुद्ध | तीन प्रकार के मोह ७७. मोह तीन प्रकार का कहा गया है-(१) शाम (२) दर्शनमोह (३) चारिनमोह तीन प्रकार के मूर्ख ७८. मूढ़ तीन प्रकार का कहा गया है(१) ज्ञानमूढ़, (२) दर्शन अ. अ. २, उ. ४, सु. ११५ ठाणं. अ. २, उ. ४, सु. ११५ । (३) चारित्रमूह | आचार समावि ७६. आवार समाधि के चार प्रकार हैं, जैसे (१) दहलोक के निमित्त आचार का पालन नहीं करना । (२) परलोक के निमित्त आचार का पालन नहीं करना । (३) कीति, वर्ण, शब्द और श्लोक के निमित्त आचार का पालन नहीं करना ।
SR No.090119
Book TitleCharananuyoga Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages782
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size23 MB
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