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सूत्र ७० ॥७४
आयार- पण्णत्ति
आवारधम्मपणिही -
७०. आधारणिहि लहूं, जहा कायव्य भिक्खुणा मेहरिस्तामि आसुिह मे ॥
आधारप्पयारा
- द. मा. १
१.पण तं जहा
(१) बाणावारे (२) दंसणावारे (३) परिवारे (४) तवायारे, (५) बीरियारे ।
---टाणं. अ. ५, उ. २, सु. ४३३
पंचमनुतरा
७२. फेलिस णं पंच अनुसरावण्णा, तं जहा
(१) अरे माने (२) अत्तरेस (२) अमरे चरिते, (४) अणुसरे तवे, (५) अणुतरे वीरिए । -ठाणं ५, उ. १, सु. ४१०
बडविशेषजमणं
७३. ममगई तच्चं सुणेह जिणभासियं । जु नागवणलक्खणं ॥ माणंच बंसणं देव, चरितं च तवो तहर एस मासि पन्नत्तो, जिहि वरदसिंहिं ॥ नागं च दंसणं चैव चरितं व तो सहा एवं मम्ममनुपता जीवा गच्छन्ति सोग्गहूँ ।
पांच प्रकार के आधार
नाग जाई भावे, रंग व सह परिनिष्हिाद बेग परि
- उत्त. अ. २८ गा. १-३
उत्स. अ. २५, गा. ३५
आराहणापधारा
७४. तिविद्दा आराहणा पद्मत्ता तं जहाराणा वाराहगा चरिताराहणा गाणाराहणा तिविहा पद्मत्ता, से जहा
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आचार - प्रज्ञप्ति
आधार-प्रति ५१
आचार धर्म प्रविधी
७०. आचार - प्रणिधी को पाकर भिक्षु को जिस प्रकार (जो ) करना चाहिए यह मैं तुम्हें कहूँगा। अनुक्रमपूर्वक मुझसे सुनो।
आचार के प्रकार-
७१. आचार गांव प्रकार का कहा गया है। जैसे - (१) जानावार (२) नाचार, (३) पारियाचा (४) तपाचार, (५) वीर्याचार |
पांच उत्कृष्ट
७२. केवली के पांच स्थान अनुत्तर (सर्वोत्तम अनुपम ) कहे गये हैं, जैसे
(१) अनुसर ज्ञान, (२) अनुत्तर दर्शन, (३) अनुत्तर पारिय (४) अनुसार सच, (५) अनुत्तर धीरं ।
चार प्रकार का मोक्ष मार्ग --
७२. चार कारणों मे संयुक्त वन-दर्शन वाली निभाषित मोक्ष मार्ग की गति को सुनो।
ज्ञान दर्शन, चार और यह मोक्षमार्ग है. ऐसा वरदर्शी (श्रेष्ठ द्रष्टा ) अहंतों ने प्ररूपित किया ।
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप- इस मार्ग को प्राप्त करने यामीन सुमति में जाते हैं।
जीव ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारि से विश् करता है और तप से युद्ध होता है।
आराधना के प्रकार
७४. आराधना तीन प्रकार की कही गई है, यथाज्ञान आराधना, दर्शन आराधना और चारित्र आराधना । ज्ञान आराधना तीन प्रकार की कही गई है
१ दुबिछे आयारे पलते तं जहा णाणायारे, चेव नोनाणायारे चैव । मोनापाया दुनिहेप तं जायायावरे नोदसणारे दुबिहे पत्तं त जड़ा-चरितायारं चैव नोरितायारे चेव 1 गो चरिताया दुविहे पत्ते तं जहा तवायारे चैव वीरियायारे चेव ।
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